अब अखिलेश यादव भी 'राम भरोसे', लोकसभा चुनाव से पहले ये संयोग या सियासी प्रयोग? समझिए समीकरण
Lok Sabha Chunav: समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के तेवर इन दिनों बदले-बदले नजर आ रहे हैं। एक वक्त था कि अयोध्या के राम मंदिर पर कोई भी सियासी पार्टी बोलना भी नहीं पसंद करती थी, आज उन्हीं नेताओं में से एक अखिलेश यादव राम नाम जप रहे हैं। समझिए सियासी मायने।
राम मंदिर पर अखिलेश यादव।
Akhilesh Yadav On Ram: देश की सियासत में एक कहावत बड़ी मशहूर है, कहते हैं कि 'दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी से होकर ही जाता है...' इसका मतलब ये है कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें देश में सरकार बनाने सबसे अहम होती हैं। लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है। हाल के दिनों में अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई है। योगी सरकार ने इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया। भाजपा के चुनावी वादों में शामिल राम मंदिर का मुद्दा पूरा हो चुका है, ऐसे में विपक्षी दलों के पास अब क्या विकल्प बचा है इसे अखिलेश के बयान से समझा जा सकता है।
अखिलेश यादव ने आखिर क्यों बदल लिया अपना सुर?
उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं, ऐसे में अखिलेश यादव की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर वो खुद को और अपनी पार्टी सपा को मजबूत करें, मगर राम मंदिर का मुद्दा इस बार के चुनाव में काफी अहम भूमिका निभाएगा। भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भाजपा अपनी पीठ थपथपा रही है, तो वहीं विपक्षी दल तरह-तरह से इसका विरोध कर रहे हैं। अब सभी पार्टियां जानती हैं कि अब वर्ष 1992 की तरह हालात नहीं है, चुनाव में राम मंदिर का मु्द्दा निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है।
जब राम मंदिर और अयोध्या के बारे में साधते थे चुप्पी?
एक वक्त था कि अयोध्या और राम मंदिर का नाम लेना और कोई भी टिप्पणी करना कई सियासी पार्टियों को रास नहीं आता था, क्योंकि उन्हें ये डर सताता था कि कहीं एक विशेष समुदाय का वोटबैंक उनसे झिटक ना जाए। मगर अब जब राम मंदिर का निर्माण हो गया, तो पहले निमंत्रण पर सियासीकरण हुआ, जब निमंत्रण मिला तो इसे सियासी कार्यक्रम बताकर कई नेताओं ने वहां जाने से मना कर दिया था। इन नेताओं में अकिलेश यादव भी शामिल थे, मगर अब अखिलेश यादव बार-बार राम का नाम ले रहे हैं। इसकी वजह है लोकसभा चुनाव
अखिलेश यादव? समझिए ये संयोग है या सियासी प्रयोग
अखिलेश यादव ने शनिवार को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी ने यह दावा करके भगवान राम का अपमान किया है कि वह राम को अयोध्या में मंदिर में ‘लेकर आई’, जबकि हिंदू देवता तो हमेशा लोगों के दिलों में हैं। विधानसभा में यूपी सरकार द्वारा पेश किए गए बजट पर चर्चा करते हुए यादव ने कहा, 'जब भगवान राम दिल में बसते हो तो फिर नाम लेने की क्या जरूरत है? राम पहले भी थे, आज भी हैं और हमेशा रहेंगे।' उन्होंने कहा, 'जब हम आप नहीं थे, प्रभु राम तब भी थे और जब हम आप नहीं रहेंगे प्रभु राम तब भी रहेंगे। इसलिए ऐसा कहना कि आप प्रभु राम को लाये हैं, ऐसा कह कर आप प्रभु राम का अपमान तो कर ही रहे हैं, साथ ही साथ धर्म को भी अपमानित कर रहे हैं।'
उन्होंने कहा, 'याद रखिए प्रभु राम अजर हैं, अमर हैं और सबके हैं। प्रभु राम के नाम पर राजनीति करना बंद करिए।' यादव ने कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण से यह मालूम हुआ कि सरकार ने अयोध्या को संजाने संवारने में 31 हजार करोड़ रूपये खर्च किये।
विपक्षी दलों के नेता जब राम मंदिर पर उठाते थे सवाल
जब भाजपा अपने चुनावी मुद्दों में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा शामिल करती थी, तब अखिलेश यादव समेत कई विपक्षी दलों के नेता ये पूछते थे कि 'मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख कब बताएंगे?' मगर अब ऐसे सभी नेताओं के सुर बदल चुके हैं और इसके पीछे की वजह जगजाहिर है- चुनाव और सियासत। अब अखिलेश यादव समझ रहें हैं कि राम मंदिर का विरोध नहीं कर सकते हैं। अयोध्या में कारसेवकों पर जब गोलियां चलवाई गई, तब अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह की सरकार थी और वो उन्हीं के आदेश पर कार्रवाई हुई थी। इस मुद्दे पर भाजपा आज भी सपा और अखिलेश को घेरती है। ऐसे में अखिलेश अब कोई भी गलती या अपनी कमी नहीं छोड़ना चाहते हैं, यूं कहे वो चुनाव से पहले किसी तरह का रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं।
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आयुष सिन्हा author
मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो...और देखें
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