भारत के वो प्रधानमंत्री, जिन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा तो बैलगाड़ी से किया प्रचार... मां से छिपाए रखा बड़ा सच

Siyasi Kissa: जब लाल बहादुर शास्त्री ने आजाद भारत में अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ा तो उन्होंने बैलगाड़ी से प्रचार किया, पैदल घूम-घूमकर लोगों से संवाद और जनसंपर्क किया। चुनावी परिणाम आए तो उनके प्रतिद्वंदी चारो खाने चित हो गए। वाराणसी से ताल्लुक रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने का किस्सा भी बड़ा रोचक है।

लाल बहादुर शास्त्री कैसे बने प्रधानमंत्री?

Lal Bahadur Shastri: भारत की स्वतंत्रता के बाद से सियासत के न जाने कितने स्वरूप देखे गए। प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए शह और मात का खेल देखा गया, लेकिन इस बीच देश की सत्ता के सिंहासन पर ऐसे दिग्गज विराजमान हुए जिनकी मिसाल आज भी दी जाती है। ऐसे ही एक प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने आजादी के बाद जब अपने सियासी जीवन में पहली बार चुनाव लड़ा तो प्रचार करने बैलगाड़ी से पहुंच गए। उन्होंने रेल मंत्री रहते हुए अपनी मां से सबसे बड़ा झूठ बोला था। वाराणसी से ताल्लुक रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री के पीएम बनने का किस्सा भी बड़ा रोचक है।

बैलगाड़ी से प्रचार कर सियासत में कायम की मिसाल

आजादी को अभी कुछ ही वर्ष बीते थे, साल 1951 की बात है जब लाल बहादुर शास्त्री पहली बार प्रयागराज के सोरांव से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे। इस चुनाव में उन्होंने बैलगाड़ी से और पैदल ही प्रचार किया। चुनावी परिणाम आए तो उनके प्रतिद्वंदी चारो खाने चित हो गए। शास्त्री ने न सिर्फ 70 फीसदी वोट अपने नाम कर लिया बल्कि लाल बहादुर सिंह नाम के दिग्गज नेता को इतनी बुरी तरह मात दी कि उनकी झोली में महज 10 प्रतिशत वोट गए। प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) से लाल बहादुर शास्त्री का बहुत गहरा नाता था। जब वो पहली बार विधायक बने तो पं. वल्लभ भाई पंत की सरकार में उनको मंत्री बनाया गया। इसके बाद शास्त्री का सियासी कद लगातार बढ़ता चला गया।

लाल बहादुर शास्त्री।

लाल बहादुर शास्त्री कैसे बने प्रधानमंत्री? पढ़ें रोचक किस्सा

27 मई, 1964 यही तारीख थी जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन हो गया। उनके उत्तराधिकारी को लेकर बहस छिड़ गई। इस बीच नेहरू की जगह पीएम बनने की चाहत रखने वाले नेताओं की लंबी कतार खड़ी हो गई। इन दावेदारों में लाल बहादुर शास्त्री का कहीं नाम नहीं था। ये संयोग ही था कि अपने अंतिम दिनों में नेहरू ने प्रधानमंत्री रहते हुए शास्त्री को कई अहम जिम्मेदारियां देनी शुरू कर दी थी। पार्टी को भी ये एहसास होने लगा था कि शास्त्री को नेहरू देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर तैयार कर रहे हैं। इसके बावजूद उनकी राह आसान नहीं रहने वाली थी। उस वक्त कुर्सी की दौड़ में गुलजारी लाल नंदा, जय प्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई जैसे नेता शामिल थे। शास्त्री को टक्कर देने वालों में गुलजारी लाल नंदा को सबसे अहम माना जा रहा था। दरअसल, वो नेहरू की सरकार में गृह मंत्री थे जो सरकार में दूसरे स्थान पर शुमार थे। मोरारजी देसाई ने मंत्रिमंडल के बाहर के नेताओं को अपनी ओर कर रखा था। जबकि जय प्रकाश नारायण को करिश्माई व्यक्तित्व वाला नेता माना जाता था।

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