बदले-बदले से अब वरुण गांधी के अंदाज, हाईकमान के खिलाफ तेवरों में नरमी का क्या राज?
किसान प्रदर्शन सहित कई मुद्दों पर सरकार के खिलाफ तीखे तेवर रखने वाले वरुण के अंदाज में अब नरमी दिख रही है। आखिर क्या है इसकी वजह ?
वरुणा गांधी के तेवरों में नरमी
Varun Gandhi: लोकसभा चुनाव 2024 नजदीक आ रहे हैं और सियासी नजारा बदला-बदला सा नजर आ रहा है। तीसरी बार सत्ता में आने के लिए भारतीय जनता पार्टी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है। इस बीच चर्चा वरुण गांधी की भी हो रही है जो इन दिनों बदले-बदले अंदाज में दिख रहे हैं। किसान प्रदर्शन सहित कई मुद्दों पर सरकार के खिलाफ तीखे तेवर रखने वाले वरुण के अंदाज में अब नरमी दिख रही है। हाईकमान को लेकर उनके रवैये में साफ अंतर नजर आ रहा है। तो क्या ये 2024 चुनाव के लिए उनकी नई रणनीति का संकेत है।
किसानों का खुलकर किया था समर्थन
वरुण गांधी ऐसे कुछ भाजपा सांसदों में से थे, जो प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन में सामने आए थे। उन्होंने लखीमपुर खीरी घटना के बाद अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की थी और ज्वलंत मुद्दों सहित अपनी ही पार्टी की सरकार की नीतियों की आलोचना की। बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था को लेकर भी सरकार पर सवाल उठाए। लेकिन लगता है कि 2024 में पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी के तेवर नरम पड़ गए हैं। उनके रुख में बदलाव साफ नजर आ रहा है।
पीएम मोदी को धन्यवाद दिया
केंद्र में मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक 43 वर्षीय वरुण गांधी ने पिछले हफ्ते अपने संसदीय क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद दिया। पिछले साल दिसंबर से वरुण ने ऐसा कोई भी बयान देने से परहेज किया है जिसे राज्य या केंद्र में भाजपा सरकार की आलोचना के रूप में देखा जा सके। इस साल फरवरी तक वरुण गांधी का रुख भाजपा और मोदी के प्रति काफी बदल गया।
भारत रत्न पर फैसले को सराहा
उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों चौधरी चरण सिंह, पी.वी. नरसिम्हा राव के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन को भारत रत्न दिए जाने के फैसले के लिए सरकार की सराहना भी की। 26 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने 'अमृत भारत स्टेशन योजना' शुरू की, जिसके तहत केंद्र सरकार मेरठ, बुलंदशहर और पीलीभीत सहित 554 रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास करने जा रही है। वरुण ने इसे लेकर भी सरकार को सराहा। उन्होंने पीलीभीत में नए रेलवे स्टेशन की आधारशिला रखने के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद दिया। गांधी इस कार्यक्रम में निजी रूप से शामिल हुए, जबकि पीएम मोदी वर्चुअली मौजूद थे।
भाजपा की सूची में पीलीभीत सीट की घोषणा नहीं
भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए 195 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची घोषित कर दी है, लेकिन अभी तक पीलीभीत सीट से अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। पार्टी में कई लोगों ने संकेत दिया है कि वरुण गांधी के इस सीट से चौथी बार मैदान में उतारने की संभावना नहीं है। वरुण और मां मेनका गांधी 2004 में भाजपा में शामिल हुए थे। 2009 में वरुण ने अपना पहला लोकसभा चुनाव पीलीभीत से लड़ा और तब से उन्होंने इस सीट को बरकरार रखा है। 2013 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया था। धीरे-धीरे वह हाशिए पर चले जाते गए। 2019 में भी असमंजस के बीच उन्हें पार्टी ने टिकट दिया। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वह सरकार के खिलाफ मुखर हो गए और खुलकर आलोचना करने लगे।
मंत्रिमंडल विस्तार में हुई अनदेखी
वरुण गांधी 2021 तक तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे किसानों के समर्थन में सामने आए। उस समय कई लोगों ने उनके गुस्से को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर प्रतिक्रिया करार दिया था। मंत्रिमंडल विस्तार जुलाई 2021 में किया गया था और उन्हें इसमें नजरअंदाज किया गया। किसानों के आंदोलन को उनका समर्थन उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले आया था, जहां योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा दूसरे कार्यकाल की उम्मीद कर रही थी।
वरुण-मेनका को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाया
उस साल अक्टूबर में वरुण और मेनका दोनों को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटा दिया गया था। हालांकि, वरुण ने हमेशा पीएम मोदी या योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कोई भी निजी टिप्पणी करने से परहेज किया है। कुछ महीने पहले खबर आई थी कि उन्हें इस बार पीलीभीत से टिकट नहीं दिया जाएगा। इसके साथ ही हाल ही में कयास लगे कि वरुण अमेठी से कांग्रेस-सपा के समर्थन से चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन इन खबरों पर मुहर कभी नहीं लगी।
दोनों पर BJP का मंथन
अब चर्चा इस बात पर है कि क्या इस बार दोनों को मैदान में उतारा जाएगा या दोनों को ही नजरअंदाज किया जाएगा। या फिर दोनों में से एक को टिकट दिया जाएगा। बीजेपी में एक परिवार एक टिकट के नियम को देखते हुए पार्टी को इस मुद्दे पर मंथन करना है। लेकिन सच यह भी है कि दोनों मजबूत और जिताऊ उम्मीदवार हैं और इन्होंने अपनी सीट से अब तक कोई चुनाव नहीं हारा है। ऐसे में पार्टी हाईकमान के लिए इन्हें नजरअंदाज करना भी आसान नहीं होगा। हाईकमान इन पर क्या फैसला लेता है, इस पर सियासी पंडितों की भी नजरें हैं।
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