Rae Bareli Election: जो अमेठी में हुआ था वो इस बार रायबरेली में भी होगा? राहुल गांधी के सामने ये हैं चुनौतियां
Rae Bareli Chunav: खुद रायबरेली इस सीट से लंबे वक्त तक सांसद रही सोनिया गांधी ने रायबरेली में जनसभा को संबोधित करते हुए ये ऐलान किया कि मैं आप सबको अपना बेटा सौंप रही हूं। तो क्या कांग्रेस पिछले चुनाव में उत्तर प्रदेश की अपनी एकलौती सीट को बचा पाने में कामयाब हो पाएगी या नहीं। राहुल की चुनौतियों को समझिए।
दिनेश प्रताप सिंह vs राहुल गांधी।
Battle of Rae Bareli: पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस की जो दुर्गति अमेठी में हुई थी, क्या वैसा ही हश्र रायबरेली में भी होने वाला है? ये सवाल कई सियासी पहलुओं को समझाने के लिए अहम है। हालांकि इस बार राहुल का सामना स्मृति ईरानी जैसे बड़े हाई प्रोफाइल चेहरे से नहीं हो रहा है। इसके बावजूद वो अपनी मां की सीट से पहली बार मैदान में हैं। राहुल को रायबरेली से शिकस्त देने के लिए अमित शाह समेत भाजपा के कई दिग्गजों ने क्षेत्र में जान फूंकी, योजनाएं बनाई, एड़ी चोटी का जोर लगाया। इन सबके इतर खुद इस सीट से लंबे वक्त तक सांसद रही सोनिया गांधी ने रायबरेली में जनसभा को संबोधित करते हुए ये ऐलान किया कि मैं आप सबको अपना बेटा सौंप रही हूं। तो क्या कांग्रेस पिछले चुनाव में यूपी की अपनी एकलौती सीट को बचा पाने में कामयाब हो पाएगी या नहीं।
अमेठी की तरह रायबरेली में भी गोलबंदी करने की कोशिश
2019 के चुनाव में स्मृति ईरानी से मिली हार के बाद राहुल गांधी ने इस सीट से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। 2014 में स्मृति ईरानी ने उनके खिलाफ ताल ठोका, लेकिन उन्हें उस वक्त मुंह की खानी पड़ी थी। हालांकि ईरानी को मोदी सरकार 1.0 में मंत्री बनाया गया और अहम मंत्रालयों का जिम्मा सौंपा गया। हार के बावजूद स्मृति अमेठी जाती रहीं और लोकसभा चुनाव 2019 में उन्होंने अपनी हार का बदला ले लिया और पहली बार राहुल को हार झेलनी पड़ी। हालांकि उन्हें पहले ही इस बात की आशंका थी, जिसके चलते उन्होंने केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा था। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ने इस बार भी रायबरेली के साथ-साथ वायनाड से चुनावी मैदान में हैं। वहीं अगर भाजपा की बात की जाए तो वो इस कोशिश में है कि जैसे राहुल को अमेठी से पराजित किया, वैसे ही रायबरेली में भी मात दी जाए। यही वजह है कि पार्टी के दिग्गजों ने जमकर गोलबंदी की।
अमित शाह ने खुद संभाली कमान, राहुल पर सीधा निशाना
भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज ये समझते हैं कि राहुल की राजनीतिक छवि उभरने नहीं देना है, इसके लिए सबसे जरूरी है कि चुनाव में उन्हें पटखनी दी जाए। रायबरेली में उन्हें हराने की कमान खुद अमित शाह ने संभाली। यही वजह रही कि वो खुद सपा के बागी विधायक मनोज पांडेय के घर पहुंच गए थे। भाजपा ने जिस उम्मीदवार को 2019 में सोनिया के खिलाफ मैदान में उतारा था, इस बार भी उसी दिनेश प्रताप सिंह को टिकट दिया है। फिलहाल वो योगी सरकार में मंत्री हैं।
रायबरेली लोकसभा सीट से मैदान में कौन-कौन उम्मीदवार?
क्रमांक | उम्मीदवार का नाम | पार्टी |
1 | ठाकुर प्रसाद यादव | बहुजन समाज पार्टी |
2 | दिनेश प्रताप सिंह | भारतीय जनता पार्टी |
3 | राहुल गांधी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
4 | दिलीप सिंह | अखिल भारतीय अपना दल |
5 | मो मोबिन | अपना दल (कमेरावादी) |
6 | हिंद रोहिताश | मानवतावादी समाज पार्टी |
7 | सुदर्शन राम | भारतीय पंचशील पार्टी |
8 | होरीलाल | निर्दलीय |
कितना रोचक रहा रायबरेली का सियासी उठापटक
अमेठी और रायबरेली को गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ माना जाता रहा है, हालांकि पिछले चुनाव में भाजपा ने अमेठी में सेंधमारी कर ली थी। सोनिया गांधी ने रायबरेली में कांग्रेस का कब्जा कायम रखा था। उस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह को सोनिया गांधी ने 1 लाख 67 हजार वोटों से हराया था। दिनेश प्रताप खुद एक वक्त कांग्रेस का हिस्सा रहे हैं। इसके अलावा मनोज पांडेय भी तकनीकी रूप से सपा के विधायक हैं, जो बागी हो गए हैं। वहीं अदिति सिंह भी कांग्रेस से ही भाजपा में आई हैं। वो एक वक्त प्रियंका और राहुल की खास मानी जाती थी। रायबरेली में भाजपा के पास कोई भी ऐसा दमदार नेता नहीं है जिसका उसके विरोधियों से ताल्लुक न रहा हो।
रायबरेली में भी अमेठी वाला खेल हो पाता है या नहीं ये तो 4 जून को चुनावी नतीजे आने के बाद ही मालूम पड़ेंगे। लेकिन राजनीति में किसी बात का कोई भरोसा नहीं होता है, ये सियासत है... जहां कभी भी कुछ भी हो सकता है। यदि राहुल की चुनौतियों का जिक्र करें तो उनके सामने यूपी में कांग्रेस की जो एकलौती सीट बची है, उसे बचाकर रखना ही सबसे बड़ी चुनौती है। इसके बाद की चुनौती ये होगी कि वो वायनाड और रायबरेली में से कौन सी सीट चुनते हैं।
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