गुजरात चुनाव में राहुल की एंट्री, मोदी की आक्रामक स्ट्रैटेजी के आगे साइलेंट लड़ाई कितनी कारगर
Gujarat Assembly Election 2022: कांग्रेस एक बार फिर KHAM राजनीति पर जोर दे रही है, जिसने उसे गुजरात में 1980 में 51.04 फीसदी वोट दिलाए थे। लेकिन जिस तरह भाजपा ने पाटीदार की नाराजगी को मैनेज किया है और नो रिपीट फॉर्मूले को अपनाया है, उससे यह राह आसान नहीं दिख रही है।
गुजरात चुनाव में राहुल की एंट्री में कितना दम !
- 2017 में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देने के लिए राहुल गांधी की अगुआई में हिंदुत्व कार्ड, पाटीदारों की नाराजगी और GST को बड़ा मुद्दा बनाया था।
- कांग्रेस इस बार 2017 की तरह आक्रामक रणनीति पर चुनाव प्रचार नहीं कर रही है
- भाजपा के लिए आदिवासी वोट इस बार भी चुनौती हैं।
Gujarat Assembly Election 2022: भारत जोड़ो यात्रा की वजह से हिमाचल प्रदेश चुनाव से दूर रहे, राहुल गांधी की गुजरात चुनाव में एंट्री हो गई है। सोमवार को उन्होंने सूरत में रैली की, जहां पर उनका फोकस आदिवासी समुदाय पर रहा। कांग्रेस इस बार 2017 की तरह आक्रामक रणनीति पर चुनाव प्रचार नहीं कर रही है, और उसका फोकस साइलेंट प्रचार पर है। उसे उम्मीद है कि इसके जरिए वह गुजरात में 27 साल से चली आ रही भाजपा की सत्ता को हटा पाएगी। हालांकि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की दूसरे नेताओं ने आक्रामक रणनीति अपनाई है, उसे देखते हुए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए राह आसान नहीं दिख रही है। ऐसे में वे भाजपा को कितना टक्कर दे पाएंगे,इसका पता तो 8 दिसंबर को पता चल पाएगा।
कांग्रेस का KHAM पर फोकस
गुजरात में कांग्रेस किस रणनीति पर काम कर रही है, उसका अंदाजा, राहुल गांधी की 21 नवंबर को हुई रैली से लगाया जा सकता है। राहुल ने सूरत जिले के महुवा में अपनी पहली चुनावी रैली में आदिवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आदिवासियों के अधिकारों को छीनने के लिए काम कर रही है।गांधी ने कहा, 'वे आपको वनवासी कहते हैं। वे यह नहीं कहते कि आप भारत के पहले मालिक हैं, बल्कि यह कहते हैं कि आप जंगल में रहते हैं। आपको फर्क दिखता है? इसका मतलब है कि वे नहीं चाहते कि आप शहरों में रहें, वे नहीं चाहते कि आपके बच्चे इंजीनियर बनें, डॉक्टर बनें, विमान उड़ाना सीखें, अंग्रेजी बोलें।' यही नहीं उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि आप जंगल में रहें, लेकिन वहां रुकें नहीं। उसके बाद वे आपसे जंगल छीनने लगते हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो अगले 5-10 वर्षों में सारे जंगल दो-तीन उद्योगपतियों के हाथ में हो जाएंगे, और आपके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं होगी, शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरी नहीं मिलेगी।'
असल में कांग्रेस एक बार फिर KHAM राजनीति पर जोर दे रही है, जिसने उसे गुजरात में 1980 में 51.04 फीसदी वोट दिलाए थे। और उसकी सीटों की संख्या 141 हो गई थी। और वह 1985 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर KHAM राजनीति ने कमाल किय था। इन चुनावों में कांग्रेस को 55.55 फीसदी वोट मिले और उसकी सीटों की संख्या रिकॉर्ड 149 पर पहुंच गई।
इसके तहत क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय की गोलबंदी की। और उसी का असर रहा कि कांग्रेस को इतनी बड़ी मात्रा में वोट मिले। अब कांग्रेस के एक बार उसी राजनीति को आजमाने की कोशिश में है।
पाटीदार और GST जैसे मुद्दे को भाजपा ने कर लिया मैनेज
2017 में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देने के लिए राहुल गांधी की अगुआई में हिंदुत्व कार्ड, पाटीदारों की नाराजगी और GST को बड़ा मुद्दा बनाया था। लेकिन इसके बावजूद वब 77 सीटों तक ही पहुंच पाई और भाजपा को बहुमत पाने से नहीं रोक पाई थी। पिछले 5 साल में भाजपा ने केवल पाटीदार आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे रहे हार्दिक पटेल को अपने पाले में ले लिया है, बल्कि पाटीदार आंदोलन को भी मैनेज कर लिया है। इसके अलावा इस बार चुनावों में कांग्रेस हिंदुत्व कार्ड से भी, अभी तक दूर है।
नो रिपीट फॉर्मूले पर भाजपा को भरोसा
पिछले 27 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा, 2002 में पहली बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ी थी। और उसी समय से पार्टी नो रिपीट फॉर्मूले को आजमा रही है। पार्टी हर चुनावों में सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर विधायकों के टिकट काटती रही है। जिसका उसी से हर बार फायदा मिला है। साल 2002 में उने 18 विधायकों के टिकट काट दिए थे।इसके बाद 2012 में भी भाजपा ने एक तिहाई से ज्यादा विधायकों के टिकट काट दिए। फिर उसने 2017 और 2022 में भी ऐसा ही किया है।
और इस बार पार्टी ने असत्ता विरोधी लहर को दबाने के लिए चुनाव से एक साल पहले ही सीएम का इस्तीफा लेकर पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया।और भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया । लेकिन उसने पूरे चुनाव की धूरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बना रखा है, जो उसका ट्रंप कार्ड है।
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