राजस्थान चुनाव में BJP खेमे से वसुंधरा राजे ने बटोरी सबसे अधिक सुर्खियां, समझें 3 सियासी फैक्टर

Rajasthan Chunav: वसुंधरा राजे के नाम को लेकर ये चर्चा हो रही थी कि भाजपा ने उन्हें दरकिनार कर दिया। शुरुआती दौर के चुनावी अभियान में उनकी अनुपस्थिति चर्चा को और मजबूत कर रही थी, हालांकि अचानक वसुंधरा के नाम की गूंज तेज हुई और वो फिर सुर्खियों में आ गईं। आपको इनसाइड स्टोरी समझाते हैं।

राजस्थान चुनाव में भाजपा के लिए क्या रही वसुंधरा की भूमिका?

Vasundhara Raje News: राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री किस पार्टी का होगा, इसका फैसला ईवीएम मशीन में कैद हो चुका है। आगामी 3 दिसंबर को चुनावी नतीजों में सारी तस्वीरें साफ हो जाएंगी। अगर भाजपा खेमे का जिक्र किया जाए तो माना जा रहा था कि वसुंधरा राजे कोई खास तवज्जो नहीं मिल रहा है, लेकिन अचानक राजे की हवा बदली और वो मजबूत होती चली गईं। आपको सिलसिलेवार तरीके से उन पांच फैक्टर को समझाते हैं, जिसके जरिए चुनावी रणभूमि पर अचानक हवा वसुंधरा सुर्खियों में आ गईं।

विधानसभा चुनाव में अचानक उभरीं वसुंधरा राजे!

भाजपा के कई केंद्रीय नेता और स्थानीय नेताओं ने परिवर्तन यात्रा में हुंकार भरी तो उस वक्त वसुंधरा राजे नजर नहीं आ रही थीं। सवाल उठने लगे कि क्या राजे को साइडलाइन कर दिया गया है। हालांकि वसुंधरा ने चुनावी अभियान में अपनी अलग ही छाप छोड़नी शुरू कर दी। देखते ही देखते हवा बदलने लगी और चुनाव के बाद वसुंधरा की निस्वार्थता और एकता की चर्चा होने लगी। उन्होंने अपनी ताकत झोंकते हुए ये साबित करने की कोशिश की कि सूबे के भाजपा नेताओं में उनके मुकाबले का फिलहाल शायद कोई और नहीं है। मगर भाजपा अलग तरह की राजनीति के लिए जानी जाती है, जहां कुछ भी हो सकता है।

अंदरूनी मतभेदों की चर्चाओं पर लगाया पूर्णविराम!

राजस्थान चुनाव के बीच भाजपा में अंदरूनी कलह की काफी चर्चा होती रही। दावा किया जाता रहा कि वसुंधरा खेमे को दरकिनार करने की कोशिश है और टिकट वितरण को लेकर भी काफी मतभेद है। कहा ये भी गया कि चुनावी जंग के बीच भाजपा में कई गुट बन गए हैं। वसुंधरा राजे को लेकर भी कहा गया कि उनके समर्थकों में भाजपा के प्रति भारी नाराजगी है। हालांकि वोटिंग से ठीक पहले तक वसुंधरा ने कई जिलों में चुनाव प्रचार किया, रैलियों में हिस्सा लिया और भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में लोगों के पास पहुंचकर वोट मांगा। जनसभाओं में वसुंधरा ने अपनी उपलब्धियों को गिनाने के बजाय पार्टी और उम्मीदवारों के कामों का जिक्र किया और ये संदेश देने की कोशिश की कि भाजपा में किसी तरह का अंदरूनी मतभेद नहीं है।

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