Rajasthan Election: दिल में टीस लिए फिर से चुनावी मैदान में हैं सबसे गरीब उम्मीदवार तीतर सिंह, 20 हार के बाद भी हौंसले बुलंद
Rajasthan Election: राजस्थान के करणपुर विधानसभा क्षेत्र से तीतर सिंह मैदान में हैं। तीतर सिंह एक मनरेगा मजदूर हैं। ये पंच, सरपंच से लेकर लोकसभा तक हर चुनाव लड़ चुके है लेकिन ये अलग बात है कि जिन हकों की लड़ाई के लिए वह सत्तर के दशक में चुनाव मैदान में उतरे थे, वह उन्हें आज तक नहीं मिले।
नामांकन भरने के दौरान तीतर सिंह
Rajasthan Election: राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 के सबसे गरीब उम्मीदवार तीतर सिंह ने आज नामांकन भर दिया। तीतर सिंह 20 बार कई तरह के चुनाव हार चुके हैं, लेकिन आज भी वो चुनावी मैदान में उतरने से नहीं हिचके। इसकी वजह कोई रिकॉर्ड नहीं, बल्कि वो टीस, जिसके कारण वो हर चुनाव लड़ते हैं, लेकिन कभी जीते नहीं। उन्हें नाम मात्र की जनता ने चुनाव में सपोर्ट किया है। आज भी जब वो नामांकन दाखिल करने निकले, तो गिने-चुने लोग ही थे, जिसमें उनकी पत्नी और परिवार के लोग शामिल थे।
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क्यों लड़ते हैं चुनाव
राजस्थान के करणपुर विधानसभा क्षेत्र से तीतर सिंह मैदान में हैं। तीतर सिंह एक मनरेगा मजदूर हैं। ये पंच, सरपंच से लेकर लोकसभा तक हर चुनाव लड़ चुके है लेकिन ये अलग बात है कि जिन हकों की लड़ाई के लिए वह सत्तर के दशक में चुनाव मैदान में उतरे थे, वह उन्हें आज तक नहीं मिले। तीतर सिंह ने बताया कि वह अब तक लोकसभा के दस, विधानसभा के दस, जिला परिषद डायरेक्टर के चार, सरपंची के चार व वार्ड मेंबरी के चार चुनाव लड़ चुके हैं। नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे के अनुसार, इस समय उनकी उम्र 78 साल है। हार तय है तो चुनाव क्यों लड़ते हैं? यह पूछने पर तीतर सिंह ने बुलंद आवाज में कहते हैं- "क्यों न लड़ें। सरकार जमीन दे, सहूलियतें दें... साडी हक दी लड़ाई है ये चुनाव।"
परिवार की हालत खराब
राजस्थान के करणपुर विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव 25 एफ में रहने वाले तीतर सिंह पर चुनाव लड़ने का जुनून सत्तर के दशक में तब सवार हुआ, जब वह जवान थे और उन जैसे अनेक लोग नहरी इलाकों में जमीन आवंटन से वंचित रह गए थे । उनकी मांग रही कि सरकार भूमिहीन और गरीब मजदूरों को जमीन आवंटित करे। इसी मांग और मंशा के साथ उन्होंने चुनाव लड़ना शुरू किया और फिर तो मानों उन्हें इसकी आदत हो गयी। एक के बाद, एक चुनाव लड़े। हालांकि व्यक्तिगत स्तर पर जमीन आवंटित करवाने की उनकी मांग अब भी पूरी नहीं हुई है और उनके बेटे भी दिहाड़ी मजदूरी करते हैं।
न मकान न खेत
उनके पास जमा पूंजी के नाम पर 2500 रुपए की नकदी है। बाकी न कोई जमीन, न जायदाद, न गाड़ी- घोड़े। उन्होंने बताया कि इस उम्र में भी वह आम दिनों में सरकार की रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’(महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं या जमींदारों के यहां काश्तकारी । लेकिन चुनाव आते ही उनकी भूमिका बदल जाती है। वह उम्मीदवार होते हैं, प्रचार करते हैं, वोट मांगते हैं और बदलाव का वादा करते हैं। पिछले कई दशकों से ऐसा ही हो रहा है।
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