Election 2024: एक ऐसी सीट जिसकी सीमा तय नहीं, वोटर और उम्मीदवार भी खास लोग

हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ देश है। यहां इतनी विविधता है कि कई बार हम स्वयं चौंक जाते हैं। अब चुनाव को लेकर ही बात करें तो देश में एक ऐसी सीट भी है, जिसकी सीमाएं तय नहीं हैं और वोटरों की संख्या 3000 के करीब है। यकीन नहीं हो रहा ना... चलिए जानते हैं -

एक अनोखी सीट की कहानी

देश इस समय चुनाव के रंग में रंगा हुआ है। एक तरफ सात चरणों वाले लोकसभा चुनाव 2024 (Loksabha Election 2024) के लिए प्रचार जोरों पर है, तो दूसरी तरफ कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं। लोकसभा चुनाव का पहला चरण 19 अप्रैल को होगा, जबकि अंतिम चरण का मतदान 1 जून को होगा। इसी तरह आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव भी हैं। आंध्र प्रदेश और ओडिशा में 13 मई को विधानसभा के लिए मतदान होगा, जबकि 04 जून लोकसभा चुनाव की मतगणना के साथ विधानसभा चुनाव की मतगणना भी होगी। उधर अरुणाचल में और सिक्किम में 19 अप्रैल को मतदान होगा और दोनों ही राज्यों की विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना 2 जून को हो जाएगी। इनके अलावा कुछ राज्यों की विधानसभाओं के लिए उपचुनाव भी होंगे। आज हम एक ऐसी सीट के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं है। चलिए जानते हैं -

सीट का नाम क्या है

जिस सीट के बारे में हम यहां बात कर रहे हैं वह सिक्किम विधानसभा की 32 सीटों में से एक है। इस सीट का नाम संघा विधानसभा क्षेत्र है। यह विधानसभा सीट सिक्किम लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। 2014 और 2019 में इस सीट पर सोनम लामा को जीत मिली थी। सोनम को 2024 में 1096 और 2019 में 1488 वोट मिले थे।

क्यों खास है ये सीट

ये सीट इसलिए खास है, क्योंकि इसकी कोई भौगोलिक सीमाएं नहीं हैं। आमतौर पर देश की सभी विधानसभा और लोकसभा सीटों की एक भौगोलिक सीमा होती है। जिसके अंदर के लोगों को उस विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र के मतदाता माना जाता है। लेकिन संघा विधानसभा क्षेत्र एक आरक्षित सीट है, जिस पर बुद्धिस्ट मोनास्टिक कम्युनिटी (संघा) के मोंक और नन ही चुनाव लड़ सकते हैं। इस सीट से चुनाव लड़ने और मतदान करने का अधिकार राज्य में रजिस्टर्ड 111 मॉनेस्ट्रीज के मोंक और ननों को ही है।

कब अस्तित्व में आई यह सीट

सिक्किम स्टेट काउंसिल के लिए संघा विधानसभा सीट साल 1958 में तब अस्तित्व में आई, जब मॉनेस्ट्री एसोसिएशनों ने चोग्याल से इसके लिए दर्ख्वाश्त की। 1958, 1967, 1970, 1973 और 1974 में यहां इसी पैटर्न पर मतदान हुआ। इसके बाद साल 1975 में सिक्किम का भारत में विलय हो गया। लेकिन इस व्यवस्था को आगे भी जारी रखा गया। 1993 में इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी लगाई गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस अर्जी को खारिज कर दिया।
हमारे देश में ऐसी विधानसभा सीटें भी हैं, जिनमें मतदाताओं की संख्या 2-3 लाख तक है और हार-जीत का अंतर भी एक लाख के करीब पहुंच जाता है। वहीं संघा जैसी विधानसभा सीट भी है, जहां पर मतदाताओं की संख्या महज 3000 के करीब है और जीतने वाले उम्मीदवार सैकड़ों में वोट पाकर विधानसभा पहुंच जाते हैं।
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