सियासी किस्सा : ग्वालियर में अटल की हार और हंसी का राज...कांग्रेस की चाल ने यूं किया था हक्का-बक्का

कांग्रेस की रणनीति विपक्ष के दिग्गजों को उन्हीं के इलाकों में घेरने की थी। इसी के तहत ग्वालियर में नामांकन दाखिले के आखिरी क्षण में कांग्रेस की चाल ने विपक्ष को हक्का-बक्का कर दिया।

जब अटल को मिली थी करारी हार

Atal Bihari Vajpayee Defeat in Gwalior: साल 1984 का आम चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक था। खास तौर पर ग्वालियर में हो रहा चुनाव देश भर के अखबारों और टीवी चैनलों पर छा गया था। वजह थी उस समय के भाजपा के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी और ग्वालियर रियासत के पूर्व महाराज माधवराव सिंधिया के बीच का मुकाबला। उस चुनाव के दौरान ग्वालियर में हुई हर छोटी-बड़ी घटना ने राष्ट्रीय अखबारों में सुर्खियां बटोरीं। इस चुनाव में सिंधिया ने अपनी ताकत दिखाते हुए वाजपेयी को बड़े अंतर से हराया था। आज भी वो किस्सा लोगों को भुलाए नहीं भूलता।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चुनाव

यह देश का आठवां लोकसभा चुनाव था और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के माहौल में हुआ था। अंगरक्षकों द्वारा इंदिरा गांधी की हत्या से पूरा देश हिल उठा था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में जबर्दस्त सहानुभूति लहर थी। इसी की बदौलत कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था। इस चुनाव में खास चर्चा रही ग्वालियर और भिंड सीट की। ग्वालियर में माधवराव सिंधिया ने भाजपा के दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी को बड़े अंतर से हराया। वहीं, भिंड में वसुंधरा राजे कांग्रेस के श्रीकृष्ण जूदेव से हार गई थीं। सिंधिया राजघराने के किसी सदस्य की अपने ही इलाके में यह पहली हार थी। इसके बाद वसुंधरा राजे ने राजस्थान का रुख किया और कई बार यहां की मुख्यमंत्री रहीं।

कांग्रेस ने चली जबरदस्त सियासी चाल

बात करें ग्वालियर की तो यहां कांग्रेस ने जबरदस्त सियासी चाल चली। यहां अटल के खिलाफ कांग्रेस ने विद्या राजदान को अपना उम्मीदवार बनाया। अटल जैसे दिग्गज के सामने विद्या राजदान की उम्मीदवारी से कांग्रेसी खेमा निराश हो गया। लोग कहने लगे कि कांग्रेस ने यह सीट भाजपा को तश्तरी में रखकर दान कर दी है। लेकिन माजरा कुछ और ही निकला, जिसने हर किसी को हक्का-बक्का कर दिया।
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