2024 चुनाव: यूपी में बिछी बिसात, अखिलेश-जयंत आए साथ, कांग्रेस का होगा क्या?
2024 Elections: अखिलेश ने जयंत से हाथ मिलाकर बता दिया कि वह अपनी रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं। कांग्रेस अभी भी बातचीत में ही व्यस्त है।
यूपी में अखिलेश-जयंत के बीच समझौता
2024 Elections: आम चुनाव 2024 के लिए चुनावी बिसात बिछना शुरू हो गई है। सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश पर सबकी नजरें हैं। इंडिया गठबंधन में अभी सीट शेयरिंग पर बातचीत का दौर जारी है, और इस बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने एक कदम आगे भी बढ़ा लिया है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल ने शुक्रवार सीट-बंटवारे की दिशा में अहम समझौता करते हुए आगामी आम चुनावों में भाजपा के खिलाफ विपक्ष को मजबूत करने की दिशा में पहला कदम उठाया।
यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा सीट शेयरिंग पर इन दिनों कांग्रेस के साथ बातचीत कर रही है। खबरें हैं कि कांग्रेस नेराज्य की 80 लोकसभा सीटों में से एक बड़े हिस्से की मांग की है। इसे लेकर पेच फंसा हुआ है। बातचीत का दौर फिलहाल जारी है। इस बीच अखिलेश ने जयंत से हाथ मिलाकर बता दिया कि वह अपनी रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं।
दोनों पार्टियों की विरासत एक जैसी
हालंकि, सपा-आरएलडी समझौता कोई हैरत की बात नहीं है क्योंकि दोनों पार्टियों की विरासत एक जैसी और उनका वोट आधार भी कमोबेश ऐसा ही है। यादव, मुस्लिम और जाट किसान इस गठबंधन के मुख्य वोट हैं। इस राजनीतिक गठबंधन को पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस विरोधी राजनीति के दिग्गज नेता चौधरी चरण सिंह ने 1970 के दशक में यूपी में सफलतापूर्वक बनाया था। भले ही 2013 की सांप्रदायिक हिंसा ने इस समीकरण को नष्ट कर दिया, लेकिन गठबंधन पश्चिमी यूपी में प्रभावशाली बना हुआ है। 2019 के आम चुनावों में सपा-आरएलडी-बीएसपी गठबंधन ने इस क्षेत्र से सात सीटें जीती थीं।
बसपा की खलेगी कमी
इस बार गठबंधन को बहुजन समाज पार्टी की कमी खलेगी, जो इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण असर रखती है। मायावती ने फिलहाल इंडिया गुट से दूरी बनाकर रखी है। कांग्रेस, सपा-आरएलडी गठबंधन के अहम साथी है, लेकिन वह बसपा की भरपाई शायद ही कर सके। कांग्रेस विधानसभा चुनावों की तुलना में आम चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करती है, हालांकि वह इस राज्य में अपनी परछाई मात्र बनकर रह गई है जो 1980 के दशक तक उसका गढ़ था।
1990 में बीजेपी का उभार
यूपी में 1990 के दशक और उसके बाद मंडल और मंदिर की राजनीति के बाद भाजपा, सपा और बसपा का उदय हुआ और कांग्रेस का पतन हुआ। राम मंदिर के केंद्र में आने के बाद से बीजेपी का उभार हुआ, नए बने सामाजिक समीकरण से सपा-बसपा मजबूत हुई होने लेकिन कांग्रेस हाशिए पर जाती रही। आज स्थिति ऐसी बन गई है कि कांग्रेस पिछले चुनाव में यूपी में महज एक ही सीट ही जीत सकी। आज वह सपा के सामने चंद सीटों की गुजारिश करने पर मजबूर है।
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