जब वोटर लिस्ट में महिलाओं ने लिखवा दिया था 'फलाने की औरत', चक्कर में पड़ गया था चुनाव आयोग
Lok Sabha Elections: एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के पहले चुनाव में देश में तकरीबन आठ करोड़ महिला मतदाताओं में से करीब 28 लाख महिलाएं अपने सही नामों का खुलासा करने में विफल रहीं थीं। ऐसे सभी मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और विंध्य प्रदेश राज्यों से आए थे।
चुनावी किस्सा
Lok Sabha Elections: देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनाव आयोग की ओर से इसको लेकर सभी तैयारियां पूर कर ली गई हैं, लोगों से अपना नाम वोटर लिस्ट में जुड़वाने के लिए अपील की जा रही है। मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी चल रहे हैं, लेकिन एक समय ऐसा था जब महिलाओं के कारण चुनाव आयोग को असमंजस का सामना करना पड़ा था।
यह वक्त था देश के पहले चुनाव का, जब कुछ राज्यों में कई महिला मतदाताओं ने अपने नाम के बजाए अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ अपने संबंधों के आधार पर अपना पंजीकरण कराया था। इसको लेकर चुनाव आयोग की ओर से जागरूकता फैलाने के लिए कई प्रसास किए गए। यहां तक कि महिला मतदाता 1951-52 के चुनाव के लिए मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा सकें, इसके लिए विशेष तौर पर समयावधि भी बढ़ायी गयी थी।
28 लाख महिलाओं ने नहीं बताया था सही नाम
पहले आम चुनाव पर 1955 में प्रकाशित एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, तब देश में तकरीबन आठ करोड़ महिला मतदाताओं में से करीब 28 लाख महिलाएं अपने सही नामों का खुलासा करने में विफल रहीं थीं और मतदाता सूची से उनसे संबंधित जानकारियों को हटाना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि व्यावहारिक रूप से ऐसे सभी मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और विंध्य प्रदेश राज्यों से आए थे। 1951-52 के लोकसभा चुनाव पर निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट में लिखा था, मतदाता सूची तैयार करते वक्त निर्वाचन आयोग के संज्ञान में आया है कि कुछ राज्यों में बड़ी संख्या में महिला मतदाता अपने नाम से नहीं बल्कि अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ उनके संबंधों (उदाहरण के लिए मां, पत्नी आदि) के आधार पर पंजीकृत हैं। इसकी वजह यह है कि स्थानीय परंपराओं के अनुसार, इन क्षेत्रों में महिलाएं अजनबियों को अपना सही नाम बताने से कतराती हैं।
जब चुनाव आयोग की जानकारी में आाया मामला
जैसे ही यह मामला निर्वाचन आयोग के संज्ञान में आया तो निर्देश दिए गए कि मतदाता की पहचान के आवश्यक हिस्से के रूप में उसका नाम मतदाता सूची में दर्ज किया जाए और किसी भी मतदाता को बिना नाम के पंजीकृत न किया जाए। रिपोर्ट में कहा गया है, बिहार में ऐसे आवेदन भरने के लिए एक महीने का विशेष विस्तार दिया गया ताकि महिला मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हटाने से रोका जा सके। इस विस्तार का अच्छा इस्तेमाल किया गया और राज्य में मतदाता सूची में काफी सुधार आया। हालांकि, राजस्थान में भी समयावधि विस्तार दिया गया लेकिन वहां परिणाम खराब रहे।
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