सियासी किस्सा: जब उपचुनाव में सीटिंग CM गए हार, एक घटना से बदल गई चुनावी फिजा
Kissa Chunav Ka : 1971 में गोरखपुर के मानीराम उपचुनाव में हुआ। इस सीट पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह ने उपचुनाव लड़ा लेकिन उन्हें कांग्रेस-आई के रामकृष्ण द्विवेदी ने हरा दिया। इस नतीजे का असर राज्य एवं देश की राजनीति पर हुआ।
जब उपचुनाव हारे तो सीटिंग सीएम थे टीएन सिंह।
Kissa Chunav Ka : भारतीय राजनीति में आम तौर पर यह माना जाता है कि उपचुनाव के नतीजे सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में जाते हैं। खासतौर से जब उपचुनाव खुद मुख्यमंत्री लड़ रहा हो तो नतीजे में किसी तरह का संदेह नहीं रह जाता। राजनीतिक इतिहास भी इसकी ताकीद करता है। लेकिन कभी-कभी उपचुनाव के नतीजे चौंकाने वाले भी रहे हैं। ऐसा 1971 में गोरखपुर के मानीराम उपचुनाव में हुआ। इस सीट पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह ने उपचुनाव लड़ा लेकिन उन्हें कांग्रेस-आई के रामकृष्ण द्विवेदी ने हरा दिया। उपचुनाव के इस नतीजे का असर राज्य एवं देश की राजनीति पर हुआ। इस नतीजे ने देश की राजनीति पलट दी।
मानीराम सीट से 5 बार विधायक रहे महंत अवैद्यनाथ
गोरखपुर का मानीराम सीट हाई शुरू से ही हाई प्रोफाइल रही है। इस सीट से गोरक्षनाथ मंदिर के मठाधीश महंत अवैद्यनाथ 1962, 1967, 1969, 1974 और 1977 में विजयी हुए। अवैद्यनाथ के गुरु दिग्विजय नाथ गोरखपुर से सांसद थे लेकिन 1969 में उनके निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ। इस उपचुनाव में महंत अवैधनाथ जीते और लोकसभा पहुंचे। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मनिराम सीट से अवैद्यनाथ ने इस्तीफा दे दिया।
यह भी पढ़ें : निषाद पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद पर हमला
किसी सदन के सदस्य नहीं थे टीएन सिंह
इसी बीच, सूबे की सियासत में बदलाव हुआ और कांग्रेस (O) के नेता त्रिभुवन नारायण सिंह अक्टूबर 1970 में जब सीएम बने तो वह न तो विधानसभा और न ही विधान परिषद के सदस्य थे। इसी बीच, महंत अवैद्यनाथ के इस्तीफे के बाद खाली पड़ी सीट पर उन्हें उपचुनाव लड़ने का मौका मिला। खास बात यह है कि इस उपचुनाव में महंत अवैद्यनाथ ने सिंह की उम्मीदवारी का समर्थन किया। इस सीट पर कांग्रेस-आई के उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी से उन्हें चुनौती मिली और रोचक मुकाबले में द्विवेदी ने त्रिभुवन नारायण सिंह को हरा दिया। इस हार की वजह से सिंह को अप्रैल 1971 में यूपी के सीएम पद से इस्तीफा देने के लिए बाध्य होना पड़ा।
कौन थे त्रिभुवन नारायण सिंह
त्रिभुवन नारायण सिंह वाराणसी के रहने वाले थे। उन्होंने पहली बार 1952 में चंदौली से लोकसभा का चुनाव लड़ा। 1957 के चुनाव में उन्होंने इसी सीट से दिग्गज समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया को हराया। 60 के दशक में वह केंद्र सरकार में उद्योग और फिर लौह और इस्पात मंत्री बने। यूपी में 17 दिन के राष्ट्रपति शासन के बाद त्रिभुवन नारायण सिंह को संयुक्त विधायक दल के नेता के तौर पर 18 अक्टूबर, 1970 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई गई थी। उन्हें भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस (O) का समर्थन प्राप्त था।
यह भी पढ़ें - अफजाल अंसारी के सामने कौन हैं पीडीएम उम्मीदवार सूबेदार
इंदिरा गांधी से दुर्व्यवहार बना हार का कारण
दरअसल त्रिभुवन नारायण सिंह की इस हार के पीछे एक घटना का जिक्र किया जाता है। चुनाव प्रचार के दौरान सिंह के पक्ष में चुनावी माहौल था लेकिन कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की चुनावी सभा में कुछ लोगों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया जिसकी वजह से चुनावी हवा पूरी तरह से टीएन सिंह के खिलाफ हो गई। खास बात यह है कि चुनाव परिणाम तब आया जब सदन में राज्यपाल का अभिभाषण चल रहा था। टीएन सिंह ने भाषण के दौरान अपने इस्तीफे का ऐलान करके सबको चौंका दिया।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | इलेक्शन (elections News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |
करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें
Delhi Voter List: दिल्ली वोटर लिस्ट मामले को लेकर ERO के पास पहुंची AAP, दी चेतावनी
इसी सत्र में आ सकता है 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल, आम सहमति की तैयारी में सरकार; JPC भी ऑप्शन में!
दिल्ली विधानसभा चुनाव में झुग्गी निवासियों की समस्याओं का मुद्दा कितना अहम? BJP ने AAP सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए BJP ने बना लिया प्लान, ‘अब नहीं सहेंगे, बदल कर रहेंगे’ का दिया नारा
Maharashtra Assembly Session: शिवसेना यूबीटी विधायक आज नहीं लेंगे शपथ, EVM पर संदेह होने से किया इनकार
© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited