चुनाव आते ही महिला नेताओं के खिलाफ क्यों होने लगती है बेतुकी बयानबाजी? कंगना, हेमा ही नहीं... बड़ी लंबी है कतार
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग में कुछ दिनों का वक्त अभी बचा है, इस बीच महिला नेताओं के खिलाफ अभद्र बयानबाजी का सिलसिला जारी है। कभी कंगना रनौत तो कभी हेमा मालिनी... कतार में सिर्फ यही दो नेता नहीं हैं, बल्कि ममता, सोनिया समेत कई नेता इसका निशाना बन चुकी हैं।
महिला नेताओं के खिलाफ क्यों होती है बदजुबानी?
Dirty Politics: महिला नेताओं के खिलाफ बदजुबानी करने वालों को क्या अपने घर, अपनी मां, अपनी बहन, अपनी पत्नी या अपनी बेटी की याद नहीं आती है? ये सवाल भले ही तीखा हो, लेकिन 100 टका वाजिब है, क्योंकि चुनाव आते ही महिला नेताओं के खिलाफ अभद्र बयानबाजी का सिलसिला शुरू हो जाता है। ऐसा ही कुछ 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी देखने को मिल रहा है, जिसमें भाजपा की चर्चित उम्मीदवारों-हेमा मालिनी, कंगना रनौत और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी को निशाना बनाया जा चुका है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब महिलाओं के खिलाफ बेतुकी बयानबाजी की जा रही हो, इससे पहले के चुनावों में भी इस तरह की करतूतें देखी जा चुकी हैं।
चुनाव आते ही शुरू हो गया अभद्र बयानबाजी का सिलसिला
कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने हेमा मालिनी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करके अपनी पार्टी और नेताओं को मुश्किल में डाल दिया, जिसके बाद राष्ट्रीय महिला आयोग तुरंत उनके खिलाफ निर्वाचन आयोग पहुंच गया। पिछले महीने हरियाणा में एक रैली में की गई सुरजेवाला की टिप्पणी को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। भाजपा ने आरोप लगाया कि विपक्षी दल कांग्रेस इस 'निम्नस्तरीय, लैंगिक' टिप्पणी से एक नए निचले स्तर पर पहुंच गया है। वहीं, सुरजेवाला ने कहा कि उन्होंने उसी वीडियो में यह भी कहा था कि हेमा मालिनी का बहुत सम्मान किया जाता है क्योंकि उन्होंने 'धर्मेंद्र जी से शादी की है और वह हमारी बहू हैं।'
लालू यादव ने हेमा मालिनी के बारे में की थी आपत्तिजनक टिप्पणी
कई साल पहले, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू यादव ने हेमा मालिनी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए दावा किया था कि वह बिहार की सड़कों को उनके गालों जितनी चिकनी बना देंगे। महिला अधिकार कार्यकर्ता रंजना कुमारी ने कहा, 'केवल प्रतिद्वंद्वी दलों के बीच नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों के अंदर भी सभी महिला नेताओं को अपने पुरुष सहयोगियों से लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। आप किसी भी महिला नेता से पूछ सकते हैं और वह आपको यही बताएगी।'
दिल्ली विश्वविद्यालय के जीसस एंड मैरी कॉलेज में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर सुशीला रामास्वामी ने कहा कि आधुनिक समाज के लिए आवश्यक लैंगिक समानता और बहुलवाद 'भारत में अभी भी नवजात व महत्वहीन हैं।' उन्होंने कहा, 'महिलाओं का प्रतिनिधित्व कई अन्य लोकतांत्रिक देशों की तुलना में बहुत कम है। वहां महिलाएं विशेषाधिकार प्राप्त और अच्छे परिवारों से हैं।'
सुप्रिया श्रीनेत और सुरजेवाला की टिप्पणी तक सीमित नहीं...
सुरजेवाला से पहले, उनकी पार्टी के नेता सुप्रिया श्रीनेत और एच.एस. अहीर अपने सोशल मीडिया हैंडल पर रनौत व उनके निर्वाचन क्षेत्र मंडी को जोड़कर पोस्ट करने के लिए निशाने पर आ गए थे। श्रीनेत ने यह कहते हुए आपत्तिजनक टिप्पणी हटा दी थी कि संबंधित पोस्ट उन्होंने नहीं किया था। इसके अलावा, कर्नाटक से कांग्रेस के विधायक शमनूर शिवशंकरप्पा ने भाजपा की गायत्री सिद्धेश्वरा के बारे में कहा कि वह केवल "खाना बनाने के लायक" हैं। भाजपा के दिलीप घोष ने बनर्जी के वंश पर टिप्पणी के लिए माफी मांगी।
निर्वाचन आयोग ने श्रीनेत और घोष को नोटिस जारी किया, लेकिन ऐसा लगता है कि इस चुनावी मौसम के लिए इस तरह की टिप्पणियों के लिए पहले से तैयारी की गई थी। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी, मायावती, ममता बनर्जी, स्मृति ईरानी, जयाप्रदा और प्रियंका गांधी वाद्रा जैसी दिग्गज हस्तियां किसी न किसी समय आपत्तिजनक लैंगिक टिप्पणी का निशाना बनीं।
जब जयाप्रदा के खिलाफ आजम खान ने की थी शर्मनाक बात
समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने 2019 में भाजपा नेता जयाप्रदा के बारे में अभद्र टिप्पणी की थी। उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक रैली के दौरान खान ने कहा था, “मैं उन्हें (जयाप्रदा को) रामपुर लेकर आया। आपको उनका असली चेहरा पहचानने में 17 साल लग गए लेकिन मुझे 17 दिन में पता चल गया कि वह खाकी अंडरवियर पहनती हैं।”
इस टिप्पणी के बाद उस वक्त की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर लिखा था कि 'मुलायम भाई - आप पितामह हैं समाजवादी पार्टी के. आपके सामने रामपुर में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा हैं। आप भीष्म की तरह मौन साधने की गलती मत करिये।'
भारतीय राजनीति में स्त्री द्वेष पर चर्चा करते हुए महिला अधिकार कार्यकर्ता रंजना कुमारी ने कहा कि “किसी महिला के शरीर पर टिप्पणी करके उसे नीचा दिखाना” एक आम मानसिकता है। उन्होंने कहा कि हालांकि ऐसे मामलों में आरोपी महिलाएं अंततः माफी मांग लेती हैं, लेकिन पुरुष शायद ही कभी ऐसा करते हैं।
जब भाजपा नेता विनय कटियार ने पार कर दी थी सारी हदें
इसी तरह की घटनाएं 2019 के आम चुनाव के दौरान देखी गईं जब राजनीतिक दिग्गजों ने अपनी महिला प्रतिद्वंद्वियों के बारे में अभद्र टिप्पणी करके उन्हें निशाना बनाया। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को “घूंघट” के पीछे रहने की सलाह दी थी। वहीं, भाजपा के एक अन्य नेता विनय कटियार ने कथित तौर पर पूछा था कि क्या कांग्रेस नेता सोनिया गांधी राहुल गांधी को सबूत दे पाएंगी कि उनके पिता राजीव गांधी थे। कटियार ने प्रियंका गांधी वाड्रा को भी निशाना बनाते हुए कहा था कि 'राजनीति में पहले ही बहुत ज्यादा खूबसूरत स्टार प्रचारक हैं।'
दयाशंकर सिंह ने मायावती के खिलाफ की थी ओछी बयानबाजी
उसी वर्ष, अभिनेत्री से नेता बनीं उर्मिला मातोंडकर लैंगिक टिप्पणी का निशाना बनीं जब भाजपा के गोपाल शेट्टी ने कहा कि उन्हें उनके रंग-रूप के कारण टिकट दिया गया। भाजपा के दयाशंकर सिंह ने 2016 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती को “वेश्या से भी बदतर” कहा था। सिंह ने आरोप लगाया था कि मायावती ने पैसे लेकर टिकट बेचे थे।
उस वक्त अरुण जेटली को मायावती से मांगनी पड़ी थी माफी
पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के तत्कालीन उपाध्यक्ष सिंह की टिप्पणी के परिणामस्वरूप केशव प्रसाद मौर्य और अरुण जेटली जैसे भाजपा नेताओं को संसद में मायावती से माफी मांगनी पड़ी थी। 2022 में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने पर पुलिस ने कांग्रेस नेता अजय राय के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
दिग्विजय सिंह ने किसे कहा था "सौ टका टंच माल"?
राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर लैंगिक और अपमानजनक टिप्पणियां करना कोई नयी बात नहीं है, लेकिन कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अपनी ही पार्टी की नेता के बारे में अभद्र टिप्पणी करके निशाने पर आ गए थे। साल 2013 में, दिग्विजय सिंह ने मंदसौर की तत्कालीन सांसद मीनाक्षी नटराजन को "सौ टका टंच माल" कहा था, जिसके परिणामस्वरूप कई दलों ने उनकी तीखी आलोचना की थी।
सवाल ये है कि आखिर सियासत में चंद फायदे की खातिर कोई किस हद तक गिर सकता है, क्या ऐसे नेता ये तक भूल जाते हैं कि उन्हें भी किसी मां ने जन्म दिया है, जो एक महिला हैं। क्या वो ये भी भूल जाते हैं कि उनकी बहन भी एक महिला ही है, उनकी पत्नी और बेटी भी एक महिला ही है। आखिर इत तरह की ओछी राजनीति पर पूर्णिवाराम कब लगेगा?
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