Lok Sabha elections: अमेठी छोड़ राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने के क्या मायने, मास्टरस्ट्रोक या सियासी मजबूरी?
Rahul Gandhi Files Nomination From Raebareli: सवाल है कि कांग्रेस का यह फैसला उसका मास्टरस्ट्रोक है या सियासी मजबूरी। राहुल के रायबरेली से लड़ने की खबर ने हर किसी को चौंकाया है। लेकिन क्या हैं इसके मायने।
रायबरेली से लड़ेंगे राहुल
Rahul Gandhi Contesting From Rae Bareli: लोकसभा चुनाव 2024 गहमागहमी के बीच आखिर कांग्रेस ने सबसे बड़ा पत्ता फेंक दिया। लंबी चर्चा और असमंजस की स्थिति के बीच रायबरेली से राहुल गांधी की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ। अमेठी और रायबरेली को लेकर वह सस्पेंस बरकरार रखने में पूरी तरह कामयाब रही। कांग्रेस के इस फैसले ने सियासी पंडितों को भी चौंकाया। लेकिन राहुल को रायबरेली से चुनाव मैदान में उतारने के मायने क्या हैं। क्या इससे कांग्रेस और राहुल को फायदा होगा, या ये एक कमजोर रणनीति साबित होगी? इससे लोगों के बीच क्या संदेश गया है? जानने की कोशिश करते हैं कि कांग्रेस का कदम एक मास्टरस्ट्रोक है या उसकी सियासी मजबूरी।
2019 में वायनाड ने बचाई थी साखइस बार भी राहुल केरल के वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 में उन्हें अमेठी से करारी हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन वायनाड ने उनकी साख बचाई। अमेठी में स्मृति ईरानी ने राहुल को उनके ही गढ़ में हार का स्वाद चखाया। इसके बाद राहुल अमेठी से दूर होते गए। पिछले पांच वर्षों में उनके दौरे वायनाड में ही होते रहे। ऐसा लगा जैसे राहुल ने अमेठी में बीजेपी को हमेशा के लिए वॉकओवर दे दिया। गांधी परिवार के चाहने वाले अमेठी में राहुल का रास्ता देखते रहे, लेकिन वह नहीं आए। इस बार भी वह आखिरी वक्त तक वायनाड से ही चुनाव लड़ने के मूड में दिखे।
लंबे मंथन के बाद चौंकाऊ फैसला
2024 चुनाव के लिए प्रचार का पारा चढ़ते-चढ़ते अमेठी-रायबरेली पर चर्चा जोर पकड़ने लगी। चर्चा उड़ी कि अमेठी से राहुल और रायबरेली से प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लड़ सकती हैं। 2004 से रायबरेली से चुनाव जीत रहीं सोनिया गांधी ने इस बार राज्यसभा का रास्ता चुना तो इस चर्चा को और बल मिला। कार्यकर्ताओं की मांग के बीच कांग्रेस में मंथन का दौर शुरू हो गया। इस बीच कयासबाजी का दौर भी चलता रहा। तब खबर आई कि राहुल और प्रियंका ने अमेठी-रायबरेली से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। कयासों का सिलसिला कई दिनों तक चला। फिर 2 मई को ये खबर सामने आई कि राहुल ही अमेठी से लड़ेंगे और ऑनलाइन नामांकन पर्चा खरीद लिया गया है। लेकिन 3 मई की सुबह सभी कयास खारिज हो गए। कांग्रेस ने रायबरेली से राहुल की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया।
रायबरेली से राहुल
मास्टरस्ट्रोक है या सियासी मजबूरी?
अब सवाल है कि कांग्रेस का यह फैसला उसका मास्टरस्ट्रोक है या सियासी मजबूरी। राहुल के रायबरेली से लड़ने की खबर ने हर किसी को चौंकाया है। जीते तो अपनी मां सोनिया गांधी की विरासत संभालेंगे। लेकिन क्या उनके लिए इतना ही काफी होगा। इससे जनता के बीच क्या संदेश गया? राहुल ने अमेठी से लड़ने का फैसला क्यों नहीं लिया। अमेठी में स्मृति ईरानी के लिए मैदान खाली क्यों छोड़ दिया। अगर वह अमेठी से लड़ते तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच जोश अलग ही नजर आता। लेकिन लगता है जैसे उन्होंने रायबरेली को चुनकर सेफ गेम खेला है। अमेठी में उनके सामने बेशुमार चुनौतियां थीं। 2019 का चुनाव हारने के बाद वह बमुश्किल ही अमेठी पहुंचे थे। अब सवाल उठना लाजिमी है कि क्या किसी से नहीं डरने की बात कहने वाले राहुल खुद डर गए।
रायबरेली की जंग
रायबरेली से सोनिया गांधी 2004 से लेकर 2024 तक सांसद रहीं। 2014 और 2019 चुनाव में मोदी लहर के बावजूद सोनिया ने इस सीट को बचाए रखा। यानि ये सीट कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए साफ तौर पर सबसे सुरक्षित सीट है। राहुल ने यूपी में वापसी के लिए इसी सीट को चुना। जाहिर है कि वह कोई खतरा नहीं उठाना चाहते। अमेठी में उनका रास्ता अब भी मुश्किलों भरा है, इसीलिए रायबरेली की राह पकड़ी। लेकिन यहां से जीत उन्हें कहां लेकर जाएगी। अगर वह वायनाड में भी जीत जाते हैं तो कौन सी सीट अपने पास रखेंगे। जिस मुश्किल वक्त में वायनाड ने सहारा दिया, क्या उसे छोड़ना आसान होगा। भले ही कांग्रेस का फैसला चौंकाने की पूरी ताकत रखता है, लेकिन ये उसका मास्टरस्ट्रोक कम, उसकी सियासी मजबूरी अधिक लगता है। अमेठी या रायबरेली से गांधी परिवार के किसी न किसी सदस्य का लड़ना जरूरी था। अन्यथा इसका गलत संदेश जाता। वैसे भी अमेठी में 25 साल में पहली बार गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है। कम से कम रायबरेली में तो परंपरा बरकरार रखी जाए। हार का अंदेशा था इसलिए अमेठी से दूरी बनाई गई।
रायबरेली में दिनेश प्रताप सिंह से मुकाबला
रायबरेली में राहुल के सामने बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह मुकाबले में होंगे। राहुल का यहां भी इम्तेहान होगा।दिनेश प्रताप पहले कांग्रेस में ही थे। बीजेपी ने दूसरी बार उन्हें गांधी परिवार के गढ़ से टिकट दिया है। उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी को टक्कर देने की अच्छी कोशिश की थी। दिनेश प्रताप सिंह 2018 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। दिनेश प्रताप यहां की एक दमदार शख्सियत हैं और राहुल को चुनौती देने का पूरा माद्दा रखते हैं। यानि राहुल के सामने मैदान खाली नहीं है। उन्हें यहां भी मेहनत करनी होगी। बीजेपी हमलावर है और राहुल को घेरने में जुट गई है। खुद पीएम मोदी ने राहुल को घेरते हुए कहा कि शहजादे हार के डर से रायबरेली पहुंच गए हैं।
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