Exclusive: निर्देशक आदित्य कृपलानी की Not Today को ऑडियंस तक पहुंचने में लगे 5 साल, बोले- अच्छे कॉन्टेंट के बावजूद...

डॉयरेक्टर आदित्य कृपलानी ने अपनी फिल्म नॉट टूडे को लेकर टाइम्स नाऊ से खास बात चीत की। उन्होंने बताया कि उनकी फिल्म को ऑडियंस तक पहुंचने में 5 साल का समय क्यूं लग गया। इसी के साथ आदित्य ने बताया कि कैसे उनकी फिल्म का सब्जेक्ट सबसे यूनिक कैसे है?

Aditya Kriplani Not Today movie poster (credit Pic: Instagram)

आज के समय में हम सभी लोग मानसिक स्वास्थ्य को ज्यादा महत्व देते हैं। मेंटल हेल्थ अगर ठीक ना हो तो हमें स्ट्रेस, एंजाइटी और डिप्रेशन जैसी बीमारियां हो जाती है। डिप्रेशन और स्ट्रेस की वजह से कई लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। इन घटनाओं को कम करने के लिए जरूकता बढ़ाने की जरूरत है। सुसाइड जैसे गंभीर मुद्दे पर निर्देशक आदित्य कृपलानी फिल्म 'नॉट टूडे' लेकर आ रहे हैं। 5 साल के स्ट्रगल के बाद 'नॉट टूडे' को यूट्यूब पर रिलीज किया गया है। इस फिल्म को Asian Competition में बेस्ट फिल्म और Fipresci International Critics Award से सम्मानित किया गया है। ये भी पढ़ें-The Buckingham Murders Box Office Collection: दमदार एक्टिंग के बावजूद करीना की फिल्म हुआ बुरा हाल, जानें 7वें दिन की कमाई
आदित्य ने नॉट टूडे के रिलीज होने के बाद खास बात चीत की। निर्देशक से पूछा गया कि नॉट टूडे के रिलीज होने पर आप कैसा महसूस कर रहे हैं? आदित्य ने कहा, मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं। ये मेरे लिए बहुत ही साइकोलॉजिक्ल प्रोसेस है, जैसे कि आप लंबे समय तक किसी खास भावना को अपने अंदर दबाए रखते हैं और जब वो चीज दुनिया के सामने आती है तो आपको हल्का महसूस होता है। इसके रिलीज होने से 5-6 साल पहले तक मैं ठीक से सो नहीं पाता था। पूरे दिन बेचैन रहता था। जब से मुझे लोगों से पॉजटिव रिस्पॉन्स मिल रहा है तो वास्तव में चीजें पहले से बेहतर हुई है। ऐसा हमारी लाइफ में बहुत कम होता है।
आदित्य कृपलानी ने नॉट टूडे को लेकर की खुलकर बात
निर्देशक से पूछा गया कि आत्महत्या की रोकथाम जैसे संवेदनशील मुद्दे पर फिल्म बनाने का आइडिया कैसे आया? उन्होंने कहा, श्वेता और मैंने दोनों ने ही आत्महत्या के कारण लोगों को खोया है। मैं आपसे इस बारे में गहन चर्चा नहीं कर सकता हूं क्योंकि लोग नहीं चाहते हैं कि उनका नाम इन चीजों में आए। मैं खुद भी डिप्रेशन से गुजर चुका हूं। मैंने जब इसके बारे में ज्यादा जानने की कोशिश की तो मुझे पता चला कि सुसाइड प्रिवेंशन काउंसलर भी होते है जो हर दिन इस तरह की समस्या से निपटते हैं। मुझे इन लोगों के बारे में जानने में दिलचस्पी थी कि ये लोग कैसे काम करते हैं। हम में से ऐसे बहुत कम लोग हैं जो इस तरह की नौकरी में है। अगर आप अपने काम में असफल होते हैं तो कोई मर जाएगा। ये बहुत ही मुश्किल काम है। शायद डॉक्टर ही इस स्थिति से गुजरते हैं लेकिन वो सर्जरी के दौरान मरीज से बात नहीं करते हैं। इस नौकरी में आप किसी के साथ कॉल पर हैं और अगर आप उसे समझाने में नाकमयाब रहे तो अगले पल वो व्यक्ति मौजूद नहीं रहेगा। ये बहुत ही अलग अनुभव है जिससे सुसाइड प्रिवेंशन काउंसलर हर दिन गुजरता है। ये जानना दिलचस्प था कि उनके जीवन में क्या होता है। अगर आपने फिल्म देखी है तो आपको 20 मिनट के अंदर ही पता चला जाएगा कि दूसरी तरफ जो आदमी है वो 15 साल तक सुसाइड प्रिवेंशन काउंसलर रह चुका है। ये बात ट्रेलर में नहीं दिखाई गई है।
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