मुस्लिम होने की वजह से अधूरी रह गई साहिर लुधियानवी की मोहब्बत, कलम उठा टूटे दिल से लिखा- अभी ना जाओ छोड़कर...
Untold story of Sahir Ludhianvi : 1957 में आई नया दौर फिल्म का गाना 'आना है तो आ' हो या 1961 की फिल्म हम दोनों का गाना अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं, ये गाने साहिर ने ही लिखे और हिंदी सिनेमा को समृद्ध बनाने का काम किया।
मुख्य बातें
8 मार्च 1921 को लुधियाना में पैदा हुए थे साहिर लुधियानवी
25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था निधन
मोहब्बत के गीत लिखने के लिए जाने जाने थे गीतकार साहिर
25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था निधन
मोहब्बत के गीत लिखने के लिए जाने जाने थे गीतकार साहिर
Sahir Ludhianvi Death Anniversary: हिंदी सिनेमा समृद्ध बनाने में गीतकारों का अहम योगदान है। फिल्मों से ज्यादा गीतों को पसंद और याद किया जाता है। हिंदी सिनेमा समृद्ध बनाने वाले जाने माने गीतकार साहिर लुधियानवी की आज पुण्यतिथि है। साहिर के बारे में कहा जाता है है कि एक ऐसा गीतकार जिनके गीतों ने मोहब्बत की गहराई बताई और हर इश्क करने वाले को उसे बयां करने की जुबां दी। 59 वर्ष की अवस्था में 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से साहिर लुधियानवी का निधन हो गया। 1957 में आई नया दौर फिल्म का गाना 'आना है तो आ' हो, 1976 में आई फिल्म कभी कभी का गाना मैं पल दो पल का शायर हूं हो, 1970 की फिल्म नया रास्ता का गाना ईश्वर अल्लाह तेरे नाम हो या 1961 की फिल्म हम दोनों का गाना अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं, ये गाने साहिर ने ही लिखे।
साहिर लुधियानवी को दो बार उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। साल 1964 में फिल्म ताजमहल के गाने जो वादा किया, वो निभाना पड़ेगा के लिए और साल 1977 में कभी कभी फिल्म के गाने 'कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है' के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। वहीं भारत सरकार ने साल 1971 में पद्मश्री पुरस्कार ने नवाजा था। लंबे अंतराल तक साहिर लुधियानवी की कलम चली और उनकी कलम से निकले ऐसे सदाबहार गीत, जो आज भी गुनगुनाए जाते हैं।
प्रेम गीत लिखे लेकिन मुकम्मल नहीं हुई मोहब्बत
जन्म 8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में पैदा हुए साहिर के पिता का उनकी मां के साथ अलगाव था और इस कारण साहिर को मां के साथ रहना पड़ा और बचपन गरीबी में गुजरा। लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में शिक्षा के दौरान उनकी मुलाकात अमृता प्रीतम से हुई और दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। साहिर की कलम का जादू अमृता प्रीतम पर हो गया था। जब ये बात बाहर आई कि अमृता एक मुस्लिम से प्यार करने लगी हैं तो अमृता के पिता ने साहिर को कॉलेज से निकलवा दिया।
इसके बाद साहिर ने कुछ समय तक छोटी मोटी नौकरी की और 1943 में लाहौर चले गए। यहां वह एक मैगजीन के संपादक बने और 1949 में फिर भारत आए। इसी साल फिल्म आजादी की राह पर के लिए पहली बार साहिर ने गीत लिखे और उसके बाद नौजवान, बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी कभी जैसे लोकप्रिय फिल्मों के लिये गीत लिखकर लोकप्रियता पाई। अमृता प्रीतम के बाद उन्हें सुधा मल्होत्रा से इश्क हो गया लेकिन वह भी असफल रहा। यही कारण था कि साहिर आजीवन अविवाहित रहे।
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कुलदीप राघव author
कुलदीप सिंह राघव 2017 से Timesnowhindi.com ऑनलाइन से जुड़े हैं।पॉटरी नगरी के नाम से मशहूर यूपी के बु...और देखें
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