Atushmati Geeta matric pass Review: सिंपल सी स्टोरी में मिलेगा खूब सारी कॉमेडी और रोमांस, जानें कैसी है फिल्म?
Ayushmati Geeta Matric Pass Movie Review in Hindi
Atushmati Geeta matric pass Review: गांव की जिंदगी की तरह ही वहां की कहानियां भी काफी सिंपल होती है। वहीं बॉलीवुड में सामाजिक मुद्दों पर बनने वाली फिल्मों का चलन काफी पुराना है। कई फिल्में सच में सीधा दिल पर उतर आती हैं तो कई दर्शकों के पल्ले भी नहीं पड़तीं। बड़े पर्दे पर रिलीज हुई प्रदीप खैरवार की फिल्म 'आयुष्मति गीता मैट्रिक पास' भी एक ऐसी कहानी दिखा रही है, जो सिंपल तो है पर एंटरटेनिंग भी। यह फिल्म महिला सशक्तिकरण और महिला शिक्षा की बात करती है। फिल्म में लीड रोल में कशिका कपूर हैं। फिल्म में कुंदन और गीता की प्रेम कहानी भी नजर आने वाली है जो सीधा दिल को छू जाती है।
कहानी
यह कहानी पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गांव की हैं जहां पर गीता के पिता विधाधर (अतुल श्रीवास्तव ) चाहते हैं की उनकी बिटिया गीता ( कशिका कपूर ) शादी से पहले मैट्रिक ( हाईस्कूल ) पास हो जाये। गीता पढ़ने में बहुत तेज हैं साथ ही बहुत सुंदर भी हैं। अपने दोस्त की शादी में कुंदन (अनुज सैनी) पहली नजर में ही अपना दिल गीता पर हार जाता हैं गीता भी कुंदन को पसंद करती हैं। पर कुंदन अपनी माँ (अलका अमीन) के पास गीता के साथ शादी की बात करने पहुंच जाता हैं। गीता के पिता विद्याधर त्रिपाठी अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार नहीं होते हैं और कहते हैं जब तक कि गीता मैट्रिक पास न कर ले वह उसकी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकते। अब ये सिंपल सी कहानी कैसे एक रोमांटिग और ड्रामा से भरपूर मोड़ लेती है। इसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
एक्टिंग और परफॉर्मेंस
कशिका कपूर ने गीता के किरदार को काफी बेहतरीन अंदाज से निभाया है। उनकी एक्टिंग काफी रियल लग रही है। एक गांव की लड़की जिसे अपने पिता से बहुत प्यार हैं साथ ही वह अपनी मैट्रिक की पढ़ाई को लेकर बहुत संजीदा हैं। यह उत्तरप्रदेश की कहानी है और उन्होंने गीता के किरदार में खुद को ढाल लिया है। अपने बाबा की लाडली है, संस्कारी बेटी है, सामाजिक बाधाओं से घिरी हुई है मगर शिक्षा को लेकर बहुत पैशनेट है। वहीं अनुज सैनी ने कुंदन के किरदार में बहुत ही नेचुरल अभिनय किया हैं एक आठवी पास लड़के के भोलेपन को उनकी एक्टिंग में देखा जा सकता हैं । वहीं फिल्म में अतुल श्रीवास्तव, गीता के पिता विद्याधर के किरदार में परफेक्ट हैं। फिल्म की बाकी स्टारकास्ट ने भी अच्छा काम किया है।
म्यूजिक और निर्देशन
फिल्म का एक और मजबूत पक्ष इसका बेहतरीन म्यूजिक है। इससे फिल्म की कहानी और डायलॉग में चार चांद लग जाते हैं। मूवे के डायलॉग्स भी काफी बेहतरीन तरीके से लिखे गए हैं। जिसे, 'जब से गीता को देखा है दिमाग मे वही चेहरा प्रिंट हो गया है।' निर्देशक प्रदीप खैरवार ने अपनी डेब्यू फिल्म में अच्छा काम किया है। उनकी फिल्म में इमोशनल सीन दिल को छू लेते हैं।
फिल्म देखें या नहीं?
अगर आपको सिंपल कहानियों वाली फिल्में देखना पसंद है। वहीं ऐसी फिल्में जिनके एक सामाजिक मुद्दों भी दिखाया जाता है। तो आपको यह फिल्म यकीनन देख लेती चाहिए। फिल्म का फ्रेश और नयापन वाली फीलिंग देती है।
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आर्टिकल की समाप्ति
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