Bhagwan Bharose Review
क्रिटिक्स रेटिंग
3.5
Jul 2, 2021
Bhagwan Bharose Movie Review: गांव की असली कहानी दिखाती है फिल्म, ऐसे छीनी जाती है बच्चों की मासूमियत
कहानी-
शिलादित्य बोरा के निर्देशन में बनी पहली फिल्म कुछ अनोखी कहानी है। भगवान भरोसे फिल्म को गांव और वहां के आसपास के वातावरण में बड़े अच्छे से ढ़लते दिखाया गया है। फिल्म को दो छोटे लड़कों, भोला और शंभू के इर्द-गिर्द घूमते देखा जा सकता है। फिल्म साल 1989 में एक गांव की कहानी दिखाती है। जहां ये दोनों बच्चे अपने भोले-भाले कारनामों करते दिखते हैं, इस फिल्म को देखकर आपको लगेगा की इस समय जैसी फिल्में लगातार आ रही हैं, उनके एक ब्रेक तो यकीनन मिल गया है। आइए अब फिल्म के रिव्यू पर एक नजर डालते हैं।
एक्टिंग और निर्देशन
बोरा ने अपने स्टोरी पर ज्यादा फोकस करते हुए एक ऐसे एक्टर्स की कास्टिंग की है, जिन्हें ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं और शायद इसी वजह से यह फिल्म और भी बेहतरीन बन पाई है। इस फिल्म को कोई स्टार पॉवर की वजह से भले ही न देखना चाहे। हालांकि फिल्म की कहानी एक दम हटके हैं। गाँव का वातावरण काफी अच्छी तरह से दिखाया गया है। यहां मौजूद लोग पर्यटकों को ज्यादा पसंद नहीं करते हैं। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि वह मेहमानों का स्वागत नहीं करते।
क्यों देखें फिल्म?
शिलादित्य बोरा ने फिल्म को ग्रामीण भारत के का पिछड़ा हुआ रूप दिखाने की जगह एक नए अंदाज में कहानी पेश की है। वह न ही इन दोनों लड़कों की जिंदगी में आने वाली मुश्किलों पर फोकस करते हैं और न ही गांव की मुश्किल जिंदगी को लेकर क्योंकि अभी तक ज्यादातक निर्देशक यही करते आ रहे हैं। फिल्म की जान विनय पाठक को भी माना जाता है। नाना बाबू के रूप में उन्हें वापस लौटते हुए देखना दर्शकों के लिए खुशी की बात है। जो अपने परिवार को एक साथ रखने की कोशिश कर रहे हैं, बच्चों को पतंग उड़ाने में व्यस्त रखते हैं, जबकि उनका एक और बेटा शहर में पैसे कमाने के लिए चला गया है।
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निष्कर्ष
इस गांव की जिंदगी आम नहीं है। फिल्म में भोला और शंभू को भगवान से बिजली के लिए प्रार्थना करते हुए देखा जा सकता है, क्योंकि वह टीवी पर अपना फेवरेट शो देखना चाहते हैं जो 9 बजे आता है। फिल्म के आखिर तक भोला और शंभू, जिसका किरदार सत्येन्द्र सोनी और स्पर्श सुमन ने निभाया है, वह पड़ोसी गांव में जाते हैं जहां उन्हें बताया गया है कि दूसरे समुदाय के 'दुश्मन' रहते हैं।
संदेश पर ज़ोर दिए बिना, बोरा की फिल्म मासूम सी कहानी दिखाती है। कैसे हमारे देश में लोग बच्चों की मासूमियत को भी नहीं छोड़ते और उसमें भी जहर घोलने की कोशिश में लग जाते हैं। सिनेमाप्रेमियों के लिए यह एक अच्छी फिल्म है, क्योंकि फिल्म की कहानी यूनीक होने के साथ ही बोरिंग नहीं है। एक्टर्स ने भी अपना बेहतरीन प्रदर्शन दिया है।
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