Gangs of Godavari Review: पैसों की बर्बादी है विश्वक सेन की ‘गैंग्स ऑफ गोदावरी’, मेकर्स ने किरदारों संग नहीं किया न्याय, पढ़ें रिव्यू
Gangs of Godavari Review: विश्वक सेन की गैंग्स ऑफ गोदावरी आज रिलीज हो गई है। अगर आप भी इस फिल्म को देखने जाने का मन बना रहे तो इससे पहले आपको ये रिव्यू पढ़े लेना चाहिए। आइए जानते हैं फिल्म के बारे में हर अपडेट।
कास्ट एंड क्रू
Gangs of Godavari Review: विश्वक सेन की गैंग्स ऑफ गोदावरी की डेट कई बार टलने के बाद आज आखिरकार फिल्म रिलीज हो गई है। फिल्म को 700 स्क्रीन्स पर रिलीज किया है। फैंस इस फिल्म को पसंद कर रहे हैं। अगर आप भी इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं तो आप इससे पहले एक बार ये रिव्यू पढ़ लीजिए।
रत्नम (विश्वक सेन) एक साधारण लेकिन बहुत कुछ इच्छा रखने वाला व्यक्ति है। गैंग्स ऑफ गोदावरी रत्नम की इलीगल एक्टिविटी से लेकर एक शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्ति तक की यात्रा है, जो एक विधायक की ताकत का सामना करता है। रत्नम बुज्जी (नेहा शेट्टी) के साथ प्रेम और शादी करता है, लेकिन बाहर उसका अंजलि के साथ संबंध होता है। फिल्म की कहानी इस बारे में है कि रत्नम का पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ आखिरकार कैसे समाप्त होती है, जिसमें उसके गिरोह के सदस्यों के साथ संघर्ष भी शामिल है। जिसमें उनका राउडी अंदाज देखने को मिलेगा।
परफॉर्मेंस
रत्नम की भूमिका निभा रहे विश्वक सेन को एक बहुत बड़ी भूमिका मिली है। यह एक बड़ी छलांग है। अभिनेता के लिए उनकी ऑन-स्क्रीन उम्र और छवि को देखते हुए एक भारी भूमिका है। इस किरदार को उन्होंने बहुत अच्छे से निभाया, जिसे लोग पसंद भी कर रहे हैं। फिल्म में नेहा शेट्टी हीरो की प्रेमिका हैं, जिससे स्वाभाविक रूप से लगता है कि उनकी मौजूदगी ज्यादा है, लेकिन ऐसा नहीं है, खासकर फिल्म के पहले भाग में। वे मूवी में दिखने में अच्छी लग रही हैं और एक गाने उनका कातिलाना अंदाज देखने को मिल रहा है। फिल्म में अंजलि का किरदार अच्छा है। वह एक झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली लड़की का किरदार निभाती हैं। फिल्म में उन्होंने अपनी भूमिका को बखूबी से निभाया है। गोपाराजू रमण, नासिर, आदी, पेम्मी साई और अन्य ने अपनी-अपनी भूमिकाओं में सहयोग दिया।
कैसी है कहानी
पहले पार्ट में कहानी को अच्छे तरह से दिखाया गया है। हालांकि इसमें पुरानी फिल्म एम धर्मराजू एमए की झलक है, लेकिन गैंग्स ऑफ़ गोदावरी की अपनी कमियां हैं। पहले पार्ट में अपहरण कॉमेडी और पुलिस स्टेशन में लड़ाई जैसे कुछ अच्छे हिस्से हैं। कई बार अचानक कट्स की वजह से कहानी की निरंतरता टूट जाती है और इससे कई दृश्यों का असर खत्म हो जाता है। इससे पहले कि कोई दृश्य दर्शकों पर असल डाले लोग उसको फील कर पाए उसके पहले अचानक से अगला दृश्य कूद जाता है। ज्यादा कट्स ने मजा खराब कर दिया।
दूसरे पार्ट की कहानी बुहत हल्की है। दृश्य ज़्यादातर जल्दबाजी में दिखाए गए लगते हैं। मौजूदा विधायक को सड़क पर उपद्रवी मानकर उसकी हत्या करने की साजिश करना बनावटी लगता है। प्री-क्लाइमेक्स और क्लाइमेक्स को भी इस पार्ट में अच्छे से नहीं दिखाया गया है।
गैंग्स ऑफ गोदावरी की शुरुआत दिलचस्प तरीके से होती है, लेकिन दृश्यों में गहराई की कमी के कारण ग्राफ जल्दी ही नीचे गिर जाता है। ड्रामा उस जगह पर फीका पड़ जाता है, जहां उसे और ऊपर जाना चाहिए था। कुछ झगड़ों और कुछ डॉयलॉग्स के अलावा, गैंग्स ऑफ गोदावरी में प्रभावित करने के लिए कुछ खास नहीं है।
एडिटिंग कैसी थी
गैंग्स ऑफ गोदावरी की एडिटिंग और स्क्रीनप्ले कमजोर है। शुरुआती हिस्से अच्छे लग रहे थे, लेकिन जल्द ही निराशाजनक हो गए। सिनेमेटोग्राफी ठीक है। गाने बढ़िया नहीं हैं। आयशा खान के साथ आइटम सॉन्ग भी बढ़िया नहीं है। पहले हाफ में कुछ अच्छे डायलॉग और एक एक्शन ब्लॉक है जिसे अच्छी तरह से शूट किया गया है।
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आर्टिकल की समाप्ति
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