Pippa Movie Review: रियल कहानी में ईशान खट्टर की रियल मेहनत, राजा कृष्ण की फिल्म पिप्पा की असली जगह ओटीटी नहीं सिनेमाघर है
ईशान खट्टर की फिल्म पिप्पा रिलीज हो गई है। यह फिल्म सिनेमाघरों की जगह डायरेक्ट ओटीटी पर रिलीज हुई है। इसमें ईशान के अलावा प्रियांशु पेन्युली और मृणाल ठाकुर भी अहम रोल में हैं। आप भी पढ़ें इस फिल्म का रिव्यू और जानिए क्यों देखना चाहिए यह फिल्म।
pippa review in hindi.
कास्ट एंड क्रू
शरणार्थी, यह शब्द इन दिनों आम हैं। ऐसा क्यों? क्योकि पिछले 2 सालों में हम चार देशों के बीच युद्ध देख रहे हैं। पहले रूस-यूक्रेन और अब इजराइल-हमास जंग। इनसे प्रभावित हुईं लाखों जिदंगियां कहें या परिवार, जो अपने घर देश छोड़ को छोड़ दूसरे देश जाकर शरण ले रहे हैं। यह कोई आज की ही तस्वीर नहीं हैं। आज से ठीक 52 साल पहले पाकिस्तान और ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के बीच जब तनाव बढ़ा, तो वहां के लोगों ने अपने परिवार की जान बचाने के लिए भारत को चुना। कुछ लोग इन शरणार्थियों के लिए गुस्से की भावना भी रखते हैं कि क्यों यह हमारे यहां आ रहे हैं? ईस्ट पाकिस्तान से लगे बंगाल के पास इन लोगों ने शरण ली। जब तनाव बढ़ा तो भारत ने इसमें दखलंदाजी देने की सोची। ऐसे में तब के फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को इसकी जिम्मेदारी दी गई।
मेहता परिवार के साहस की कहानी
उस दौरान 45 कैलेवरी नाम की एक रेजिमेंट थी, जिसमें अधिकतर जवान युवा थे। इसमें एक नाम सबसे अहम रहा, कैप्टन बलराम मेहता का। यह 45 कैवेलरी टैंक स्क्वाड्रन में कैप्टन थे, उम्र 26 साल थी। उनका जोश और नटखटपन भी वैसा ही था। मस्ती मस्ती में कई बार सीनियर की बात नहीं मानते थे। पिता भी आर्मी थे, लेकिन युद्ध से वापस नहीं लौटे। बलराम का बड़ा भाई राम भी आर्मी में मेजर है और 1965 की जंग का हीरो था। सब बलराम को राम की तरह बनने की सलाह देते थे। क्योंकि लोग उसे हल्का और नाकारा समझते हैं। हालांकि बलराम की बहन भी कोड ट्रांसक्रिप्ट करना जानती है, उसे भी आर्मी की कम्युनिकेशन विंग में जॉइन करवा लिया जाता है। ईस्ट पाकिस्तान में तनाव बढ़ता है और जंग का ऐलान होता है। बलराम को डिस्पलिन की वजह से आर्मी हेडक्वाटर में रहना पड़ता है। यहां मानेकशॉ की नजर बलराम पर पड़ती है, वह उसे एक टास्क देते हैं। यहां से उसे फ्रंट पर जाने का मौका मिल जाता है। इसी बीच घर पर चल रही चर्चा के दौरान बलराम अपनी मां से कहते हैं कि शरणर्थियों को सिर्फ भारत ही मिला था। तब मां उन्हें कहती है कि हम भी ऐसे ही पाकिस्तान से आए थे और भारत में बस गए थे।
ईशान, प्रियांशु और मृणाल ने उठाई फिल्म, सपोर्टिंग कास्ट भी कमाल
कैप्टन बलराम मेहता का किरदार ईशान खट्टर ने निभाया है। ईशान जब इस फिल्म की शूटिंग कर थे, तब वह 26 साल के थे। इसके अलावा भी उन्होंने बलराम के किरदार को समझने की कोशिश की है। यह हमें फिल्म में दिखता भी है। टैंक के लिए उनके द्वारा की गई मेहनत भी दिखती है। ईशान का काम पिप्पा में बढ़िया है। राम का किरदार निभा रहे प्रियांशु पेन्यूली का काम भी बढ़िया हैं। उन्होंने अपनी पर्सनालिटी को आर्मी के रूप रंग में उतार लिया है। मृणाल ठाकुर ने अपने रोल को बड़े ही संजीदगी से निभाया है। सोनी राजदान ने मां की भूमिका में को अच्छी तरीके से निभाया है। फिल्म में चंद्रचूर्ण राय का काम भी अच्छा और देखने लायक है। सैम मानेकशॉ के रोल को कमल सदाना ने सधे हुए तरीके से निभाया है। वहीं, सोहम मजूमदार का काम देखने लायक है। इसके अलावा भी फिल्म पिप्पा के बाकी सहयोगी कलाकारों ने अपने हिसाब भी बढ़िया काम किया है।
राइटिंग टीम और डायरेक्शन ने फिल्म को बनाया कमाल
फिल्म की कहानी ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता की पुस्तक ‘द बर्निंग चैफीज’ पर बेस्ड है। चैफीज पाकिस्तानी टैकों का नाम था और युद्ध में पिप्पा ने इनको जला कर नष्ट कर दिया था। ब्रिगेडियर की किताब का नाम इसे से पड़ा है। फिल्म को रविंदर रंधावा तन्मय मोहन और राज कृष्ण मेनन ने मिलकर लिखा है। राइटिंग के हिसाब से फिल्म ठीक है, इसकी पेस जिस नोट से शुरू हुई उसी पर खत्म हुई। डायरेक्शन राजा कृष्ण मेनन का है। उनकी एक खासियत है वह अपने फिल्मों में रिश्तों पर जोर ज्यादा देते हैं। यहां भी उन्होंने इतने महीन तरीके से उसे दिखाया है कि उनका यह सिग्नेचर स्टाइल है। राजा ने करियर में कम लेकिन यादगार फिल्में बनाई हैं। इसके अलावा उन्होंने फिल्म में 1971 की जंग में बचे, पीटी-76 को रियल यूज में लिया है। हमारी पीढ़ी ने फिल्म में जो उभयचर (एम्फीबियस टैंक) देखा है यह आखिरी था, क्योंकि शूटिंग के दौरान वह जल समाधि ले चुका है। वहीं, राजा ने रियल लोकेशन दिखाने के लिए भी रेकी टीम की अच्छी मदद ली है।
प्रिया और राजा की तालमेल का जादू, टेक्निकल टीम का जबरदस्त
फिल्म को प्रिया सेठ ने शूट किया है। प्रिया को अंडरवॉटर शूटिंग का लंबा अनुभव है, धोबी घाट और मर्दानी 2 के वॉटर सीन शूट किए हैं। इसके अलावा प्रिया और राजा की जोड़ी पुरानी है। राजा की 5 में 4 फिल्मों को प्रिया ने शूट किया है। दोनों की जोड़ी का अनुभव यहां दिखता है। तालमेल भी निखर कर आता है, प्रिया ने अपने काम को मजबूती से किया है। वहीं, हेमंती सरकार ने एडिट किया है, उनका काम भी बढ़िया है। वहीं, प्रोडक्शन डिजाइन के लिहाज से भी फिल्म जोरदार है। इसका प्रोडक्शन मुस्तफा स्टेशनवाला ने डिजाइन किया है। 70 के दशक की दिल्ली की खूबसूरती और जंग का मंजर उन्होंने बेहतरीन तरीके से दिखाया है।
म्यूजिक ने लगाए चार चांद
फिल्म का म्यूजिक ए आर रहमान ने दिया है। ऐसी कालखंड वाली फिल्मों के लिए रहमान ने हमेशा अपना अच्छा संगीत ही दिया है। यहां वह इन सबसे आगे निकल गए हैं, फिल्म के बोल शेली ने लिखे हैं। जिस फीलिंग्स के साथ शेली ने गानों को लिखा है, म्यूजिक सुनने के बाद ऐसा लगता है कि रहमान ने इसे हू बा हू उतार दिया है।
पिप्पा का क्रिटिक कनक्लूजन
फिल्म पिप्पा एक वॉर और रियल लाइफ मैन की कहानी पर बेस्ड है। ईशान का काम भी बढ़िया है, सन 71 में क्या हुआ था यह भी फिल्म के माध्यम से जान सकते हैं। फिल्म अच्छी बन पड़ी है, दिवाली के वीकेंड में आप इसे अपने परिवार के साथ देख सकते हैं। हालांकि इस फिल्म को देखने के बाद यह एहसास हुआ कि इसकी असली जगह तो सिनेमाघर है, जहां इसे पहले रिलीज होना चाहिए।
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आर्टिकल की समाप्ति
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