JNU Movie Review: राजनीति की गहरी दलदल को उजागर कहती जहाँगीर नेशनल यूनिवर्सिटी, पढ़ें कैसी है फिल्म?
Jahangir National University Movie Review
Jahangir National University Movie Review in Hindi: जहांगीर नेशनल यूनिवर्सिटी कई सालों से विवादों में है। यूनिवर्सिटी को लेकर चर्चा अक्सर बनी रहती है। अब आखिरकार इस मसले को लेकर फिल्म की रिलीज हो गई है। ट्रेलर की रिलीज के बाद से ही फिल्म जहांगीर नेशनल यूनिवर्सिटी फिल्म को लेकर अच्छी खासी हाइप थी। फिल्म को सेंसर बोर्ड ने भी लंबे समय तक सर्टिफिकेट के लिए भी रोक कर रखा था जिसके बाद फिल्म से कुछ सीन हटाए गए और आखिरकार मूवी को आज 21 जून 2024 को रिलीज कर दिया गया है।
फिल्म 'जहाँगीर नेशनल यूनिवर्सिटी' एक बेहतरीन पॉलिटिकल ड्रामा है। मूवी की कहानी कुछ साल पहले दिल्ली की एक यूनिवर्सिटी में हुई कुछ विवादित घटनाएं के आसपास नजर आती है जिनको मीडिया में बहुत सुर्खियां मिली थी। निर्माता ने इस घटना पर एक बढ़िया फिक्शन स्टोरी और ड्रामा को फिल्म के तौर पर दिखाया है।
कहानी
फिल्म जहाँगीर नेशनल यूनिवर्सिटी एक छोटे शहर के रहने वाले सौरभ शर्मा (सिद्धार्थ बोडके) की कहानी है जो इस विश्वविद्यालय का छात्र है। वहाँ वह वामपंथी छात्रों की गतिविधियों से बेचैन हो जाता है जो राष्ट्र-विरोधी हैं और उनके खिलाफ आवाज उठाता है। सौरभ को अखिलेश पाठक उर्फ बाबा (कुंज आनंद) का सहयोग मिलता है जो यूनिवर्सिटी में वामपंथी वर्चस्व का विरोध करने में उसका मार्गदर्शन करते हैं। इस रास्ते पर सौरभ को ऋचा शर्मा (उर्वशी रौतेला) एक सहायक रूप में मिलती है। वामपंथी गिरोह को सौरभ ने कड़ी चुनौती दी, जिससे वे बेचैन हो गए क्योंकि सौरभ ने यूनिवर्सिटी में एक इतिहास रचते हुए चल रहे चुनावों में से एक जीतकर जेएनयू की राजनीति में प्रवेश किया। काउंसलर के पद पर रहते हुए, वह वामपंथियों के राष्ट्र-विरोधी एजेंडे का विरोध करता है और यूनिवर्सिटी के छात्रों के पक्ष में काम का समर्थन करता है; जिससे उसे छात्रों के बीच लोकप्रियता हासिल होती है। बाबा के सपोर्ट से सौरभ उनके सभी राष्ट्र-विरोधी प्रदर्शनों और संस्थान में हो रही सभी गलत गतिविधि का विरोध करता रहता है। 2014 में, सौरभ विश्वविद्यालय के जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर हावी वामपंथी पार्टी के खिलाफ चुनाव जीतता है। 2019 में, जब जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष के रूप में आरुषि घोष के छात्रों की फीस बढ़ाने के फैसले की घोषणा सरकार द्वारा की गई थी, वामपंथी छात्रों द्वारा जबरदस्त विरोध किया गया। फीस में बढ़ोतरी का समर्थन करने वाले छात्रों को बुरी तरह से पीटा गया, जिसमें एबीवीपी के छात्र भी शामिल थे। बाद में, यूनिवर्सिटी में एक रात एबीवीपी के छात्र एकजुट हुए और वामपंथ के खिलाफ कार्रवाई की।
एक्टिंग और परफॉर्मेंस
जहां तक अभिनय की बात करें तो किसना कुमार के रोल में अतुल पांडेय और सौरभ शर्मा के चरित्र में सिद्धार्थ बोकडे ने गज़ब की अदाकारी की है। बाबा के रोल को कुंज आनंद ने बखूबी निभाया है। दरअसल यह फ़िल्म ढेर सारे किरदारों से भरी है और सभी एक्टर्स ने अपने हिस्से का काम शानदार ढंग से निभाया है। गुरु जी के रूप में पीयूष मिश्रा ने गहरा असर छोड़ा है। रवि किशन और विजय राज की जोड़ी ने हास्य का रंग भरा है। सायरा के रोल को शिवज्योति राजपूत, नायरा के रोल को जेनिफर और युवेदिता मेनन की भूमिका रश्मि देसाई ने निभाई है। सोनाली सहगल की मात्र झलकियां नज़र आई हैं।
निर्देशन और डायरेक्शन
फ़िल्म का निर्देशन विनय शर्मा ने बेहतर किया है। सभी कलाकारों से उनका बेस्ट परफॉर्मेंस निकलवाने में वह सफल रहे हैं। फ़िल्म का बैकग्राउंड म्युज़िक और डायलॉग इसके हाइलाइट्स हैं। यूनिवर्सिटी की गंदी राजनीति के चक्कर मे निराश होकर जब एक छात्र खुदकुशी कर लेता है तो गुरु जी पीयूष मिश्रा का संवाद जानदार है कि लोग कहते हैं कि नेता अच्छा नहीं है और जब खुद राजनीति के मैदान में उतरने की बात होती है तो..'
फिल्म देखें या नहीं?
अगर आपको भी पॉलिटिक्स ड्रामा देखना पसंद है तो यह फिल्म आपके लिए ही है। मूवी में आम लोगों की कहानी दिखाई गई है, जिससे आप कनेक्ट कर सकते हैं। मूवी का स्क्रीनप्ले भी कसा हुआ है, यह आपको बोर नहीं होने देगी।
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आर्टिकल की समाप्ति
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