Mission Grey Review in Hindi

​Mission Grey House

क्रिटिक्स रेटिंग

3.5

Suspense,Thriller

Jul 2, 2021

Mission Grey House Review: एक जबरदस्त सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है के साथ ईमोशनल ड्रामा, चौंकाता हैं क्लाइमेक्स

Mission Grey House Review: फिल्मों के जॉनर के हिसाब से दर्शकों का बटवारा किया जाए तो सस्पेंस एक ऐसा जॉनर है जिसके दर्शक सबसे अधिक मिलेंगे। ऐसी फिल्में दर्शकों के द्वारा खूब पसंद की जाती हैं। इस शुक्रवार को सिनेमागृहों में रिलीज होने वाली एक ऐसी ही फिल्म है 'मिशन ग्रे हाउस'। इस रिव्यू में आइए जानते हैं कैसी है फिल्म 'मिशन ग्रे हाउस'।

कहानी

फिल्म की कहानी शुरू होती है रात के सन्नाटे में घने पेड़ों के बीच खड़े एक बंग्लो नुमा घर से जिसे ग्रे हाउस का नाम दिया गया है। घर के अंदर एक मिस्टीरियस व्यक्ति की एंट्री होती है जो रेन कोट जैसे कपड़े में सर से पाँव तक पूरा ढका होता है उसके एक हाथ में टॉर्च और दूसरे हाथ में मैग्नीफ़ाइंग ग्लास होती है। यही मिस्टीरियस व्यक्ति घर के अंदर एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति की टॉर्च से मार कर बेरहमी से हत्या कर देता है। बस यहीं से शुरुआत होती है उस रहस्य की जिसका खुलासा पूरी फिल्म देखने के बाद ही हो पाता है। एक 20 -22 साल का लड़का है कबीर राठौड़ (अबीर खान) जिसको पुलिस ऑफिसर बनना है इसी शौक में वह पुलिस की वर्दी पहन कर आए दिन गुंडों बदमाशों से भिड़ता रहता है इसी बीच उसकी दोस्त कियारा (पूजा शर्मा) से जो कबीर को अपने पिता यशपाल सिंह(राजेश शर्मा) से मिलवाती है।
यशपाल सिंह जो कि एक बड़े पुलिस अधिकारी हैं, कबीर के सामने एक शर्त रखते हैं कि अगर कबीर ग्रे हाउस में हो रही हत्याओं की मिस्ट्री सॉल्व कर देगा तो वह उसको पुलिस ऑफिसर बना देंगे। इस मिशन पर कबीर को कियारा के साथ भेज देता हैं। कबीर खुश होता और अपने मिशन को पूरा करने के लिए ग्रे हाउस पहुंचता है लेकिन वहाँ पर एक के बाद एक हत्याओं का सिलसिला जारी रहता है। ग्रे हाउस में हो रही इन हत्याओं के साथ ही आगे बढ़ती है फिल्म की कहानी और होता है बहुत सारा ऐक्शन। पूरी फिल्म की कहानी कबीर राठोर, यशपाल सिंह और कियारा के इर्द गिर्द घूमती है। जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है एक के बाद एक हर व्यक्ति रहस्यमय लगने लगता है और फिल्म पूरी होने से पहले सस्पेक्ट को ढूँढने की फितरत आपको खूब दिमागी कसरत कराएगी लेकिन आप सस्पेक्ट कर पता नहीं लगा पाएंगे। क्या कबीर अपने मिशन में कामयाब हो पाएगा? कौन है इन हत्याओं के पीछे? यह तो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा।

एक्टिंग और परफॉर्मेंस

कबीर राठौड़ के किरदार में अबीर खान इस फिल्म से डैब्यू करने जा रहे हैं यह फिल्म उनके लिए एन्ट्रेंस एग्जाम की तरह है। इस परीक्षा में उनको कितने मार्क्स मिलेंगे यह जिम्मेदारी दर्शकों की है लेकिन उन्होंने इस रोल के लिए कड़ी मेहनत की है यह साफ पता चल रहा है। कबीर राठौड़ के किरदार में अबीर खान जँच रहे हैं और जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है अबीर अपने किरदार में निखरते जाते हैं और यह निखार ना केवल उनके लुक में बल्कि उनकी ऐक्टिंग डायलॉग डिलीवरी और एक्सप्रेशन में साफ दिखता है जो फिल्म की कहानी के साथ मैच करता है। अबीर ने अपनी ऐक्टिंग स्किल से बता दिया है कि उनका भविष्य उज्जवल है।
पूजा शर्मा भी इस फिल्म से अपना डैब्यू कर रही हैं। कियारा के रोल को उन्होंने बखूबी निभाया है। राजेश शर्मा के पास ऐक्टिंग का लंबा अनुभव है और बहुमुखी अभिनय क्षमता होने करन इस फिल्म में भी उन्होंने सहजता से अपने रोल को निभाया है। विक्रांत राणा के किरदार में किरण कुमार एकदम सही चॉइस साबित हुए हैं उनके किरदार की मांग के अनुसार ही वह अपने एक्सप्रेशन और बोलती निगाहों से इम्प्रेस करते दिख रहे हैं। रजा मुराद, निखत खान और कमलेश सावंत के रोल छोटे लेकिन प्रभावशाली हैं। इन कलाकारों के होने मात्र से ही फिल्म का ड्रामा इंटरेस्टिंग हो जाता है।

डायरेक्शन

फिल्म के निर्देशक नौशाद सिद्धिकी एक सस्पेंस भरी कहानी को दिलचस्प तरीके से दर्शकों के सामने प्रदर्शित करने में कामयाब रहे है। यह नौशाद सिद्धिकी की योग्यता ही है कि पूरी फिल्म देखने के दौरान दर्शक पता नहीं लगा पाएंगे कि सस्पेक्ट कौन है। सस्पेंस को बरकरार रखने के लिए उन्होंने छोटी छोटी बारीकियों का खयाल रखा है। वह इंडस्ट्री के मंझे हुए कलाकारों राजेश शर्मा, रज़ा मुराद, किरण कुमार के साथ साथ अपना डैब्यू करने वाले अबीर खान और पूजा शर्मा से भी उनका बेस्ट निकलवाने में सफल रहे हैं।।

बैकग्राउंड म्यूजिक

फिल्म में 2 गाने हैं जिनमें से एक गाना लहू आवाज देता है अपनी जानी पहचानी सूफियाना आवाज में गया है सुखविंदर ने और दूसरा गाना गया है 'किंग ऑफ मेलोडी' शान ने जिसके बोल हैं यारियाँ यारियाँ काफी खूबसूरत है। गाने सुनते ही जुबान पर चढ़ जाते हैं। सस्पेंस और थ्रिलर फिल्म में बैकग्राउंड स्कोर का अच्छा होना उतना है जरूरी है जितना चाय में मिठास या खाने में नामक। एच रॉय ने इस पर अच्छा काम किया है और फिल्म के हर सीन को प्रेजेंटेबल बना दिया है।

देखें या नहीं?

फिल्म सस्पेंस से भरी हुई है जिसकी शुरुआत पहले सीन में हो जाती है और आखिरी सीन तक सस्पेंस बना रहता हैं यही इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है। दूसरा इस फिल्म में किसी भी सीन को जरूरत से ज्यादा खींचा नहीं गया है जो फिल्म की रफ्तार को बनाए हुए है जिससे फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती। सबसे जरूरी बात कि फिल्म आपको एंगेज कर के रखती है और अंत तक आपको कुर्सी से बांध कर रखेगी। अंत में हम कह सकते हैं कि एक जबरदस्त सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है जिसमें ऐक्शन और ईमोशनल ड्रामा भी है।
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