Salaar Movie Review: प्रभास के करियर के सालार बने फिल्म डायरेक्टर प्रशांत नील, लय में बहती कहानी में एक्शन है शानदार
Salaar Movie Review: साउथ सुपरस्टार की फिल्म सालार सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म का फैंस लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। उनका यह इंतजार अब खत्म हो गया है। फिल्म में जबरदस्त एक्शन और अच्छी कहानी देखने को मिलेगी। आप बिना स्पॉइलर वाला यह रिव्यू पढ़िए और जानिए कैसी है फिल्म।
Salaar Movie Review.
कास्ट एंड क्रू
दोस्ती शब्द में ही ताकत है, इस रिश्ते में बंधने वाला हर इंसान इसे निभाने की कोशिश करता है। दोस्त परिवार में भी घुले मिले रहते हैं। किसी ना किसी से जीवन में दोस्त बनाने की सीख मिलती है। दोस्तों में भी ऐसे दोस्त जो आपके लिए और आप उनके लिए हर परिस्थिति में खड़े रहो। दोस्ती के किस्से महापुराण में भी सुनने को मिले हैं। सबसे बड़ा दोस्ती का उदाहरण महाभारत में दुर्योधन और कर्ण का है। कर्ण को मालूम सबकुछ मालूम होते हुए भी दुर्योधन का ही साथ दिया। ऐसी दोस्ती के किस्से अब हम सुनते हैं या फिल्मों में भी देखते हैं।
दोस्ती में दुश्मनी की कहानी
दो बच्चे देवा और वर्धा हैं, दोनों में अटूट दोस्ती है। यारी ऐसी की देवा की मां खाना खिलाती तो पहले वर्धा को खिलाती और फिर बेटे देवा का नंबर आता है। वर्धा एक सरदार का बेटा है, रूद्रा नाम का लड़का एक दिन उसकी पहचान छीन लेता है। वर्धा की पहचान नथुनी होती है, यह उसका गौरव भी है। देवा इसी को वापस लेने रूद्रा के पास जाता है। यहां वह देवा के एक पहलवान को धोबी पछाड़ देने के लिए कहता है। देवा ऐसा कर देता है। एक दिन देवा के घर में हमला होता है और बदमाश उसकी मां से दुराचार करने की कोशिश करते हैं। इसी बीच वर्दा यहां पहुंचता है और बदमाशों को भगा देता है। वर्दा अपने दोस्त पर खतरा देख उसे दूसरी जगह भेज देता है। कहानी यहां बदलती है। देवा अब शांत बर्मा बॉर्डर के पास एक गावं में मां के साथ रहता है। वह कोयले की खान में काम करता है और फालतू किसी से मतलब नहीं रखता है। सबकी जिंदगी शांत हो रहती है, अब एक दिन आध्या कृष्णनन विदेश से अपनी मां की अस्थियां विसर्जित करने भारत आती है। यहां उसके पिता के पुराने दुश्मन पीछे लगते हैं। ऐसा पता चलते ही किसी प्रकार से आध्या को देवा के पास पहुंचाया जाता है। उन्हें मालूम है कि जबतक वह देवा के साथ है जिंदा रहेगी। आध्या यह पता करना चाहती है कि आखिर देवा कौन है। वह क्यों उसकी रक्षा कर रहा है? देवा और वर्धा दुश्मन कैसे बन जाते हैं? यह सब फिल्म में है।
प्रभास पर हावी पृथ्वीराज
देवा के किरदार में प्रभास हैं। वह सालार के पहले पार्ट में दिखे हैं, लेकिन बोलते कम हैं। उनके डायलॉग्स की जगह वह एक्शन और एक्सप्रेशन से बोलते हैं। डायरेक्टर ने उनका इंट्रोडक्शन सीन ही इतना तगड़ा किया है कि प्रभास को बहुत डायलॉग बोलने की आवश्यकता नहीं है। एक्शन और एक्सप्रेशन में प्रभास ने अच्छा काम किया है। प्रभास ने इनोसेंट से एक एग्रेशन बॉय बनने के ट्रांजिशन को भी अच्छे तरीके दिखाया है। हालाकि वह एक्शन करने में हल्के फीके दिखे हैं। वह शायद उनके घुटने की सर्जरी है। वर्धा बने पृथ्वीराज सुकुमारन अपने काम से चौंकाते हैं। उन्हें वर्धा के रोल में दो शेड में देखा जाता है। इन दोनों में ही उन्होंने अपना परफेक्ट काम दिया है। श्रुति हासन ने आध्या को किरदार निभाया है, उनके पास इस पार्ट में स्क्रीन टाइम बेहद कम है। इसके बाद भी उन्होंने अपने कैरेक्टर को पकड़ा है। शुद्ध हिंदी बोलने वाली लड़की अचानक अमेरिकन एक्सेंट में जब बोलती है, वह भी अच्छा लगता है। जगपति बाबू के पास स्क्रीन टाइम बेहद कम है, लेकिन उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। राधा के रोल में श्रिया रेड्डी को देखना, सुखद लगता है। उन्होंने राधा के रोल को समझ कर निभाया है। इसके अलावा फिल्म में मौजूद सभी कास्ट ने अपना काम बेहद अच्छी तरीके से किया है। जो कहानी में कहीं भी अटपटा नहीं लगता है।
एक लय में बहती है कहानी, यादगार डायलॉग नहीं
फिल्म प्रशांत नील की उग्रम पर बेस्ड है। इसे प्रशांत नील ने ही लिखा है। उन्होंने कहानी को ऐसे लिखा है कि स्क्रीन में वह एक गति से बहती हुई दिखती है। ना बहुत ज्यादा ढीलापन और ना ही ज्यादा कसावट इसमें कुछ भी नहीं दिखाता है। कहानी का एक लय में बहना और हूबहू स्क्रीन पर उकेरने का काम प्रशांत ने अपने स्टाइल में किया है। इसके डायलॉग्स संदीप रेड्डी बंडला, हनुमान चौधरी और डॉक्टर सूरी ने लिखे हैं। तीनों का काम अच्छा है, लेकिन पहले पार्ट में ऐसा कोई डॉयलगा नहीं मिला जो आपके साथ घर तक आए। इसके अलाावा प्रशांत के डायरेक्शन में केजीएफ वाली थीम नजर आती है। ट्रीटमेंट भी फिल्म का कुछ केजीएफ स्टाइल में ही है। एक्शन सीन को उन्होंने बहुत ही महीन तरीके से शूट किया है।
सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग का तालमेल
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी भुवन गोवडा ने की है, प्रशांत से उनका तालमेल उग्रम के समय का है। इसके साथ ही भुवन ने ही केजीएफ के दोनों पार्ट को शूट किया है। भुवन ने यहां भी फिल्म को बेहद सधा हुआ रखा है। साथ ही फिल्म की लाइट को हल्का डार्क रखा है। फिल्म का कलर पैलेट उन्होंने काला कर रखा है। जो इसपर खूब जमता है। उसका थीम भी कुछ ऐसा ही डिजाइन किया है। फिल्म को उज्जवल कुलकर्णी ने एडिट किया है। कम उम्र में ऐसा काम काबिल-ए-तारीफ है। प्रशांत ने जिस हिसाब से उनपर भरोसा रखते हुए फिल्में एडिट करवाते हैं, उज्जवल उसपर खरा उतरते हैं। फिल्म का म्यूजिक रवि बसरूर का है, वह सुखद है। हॉल में जब सीन के सिचुएशन के हिसाब से गाना आता है, वह उसे और मजूबत बनाता है।
एक्शन है अच्छा
प्रभास और प्रशांत नील की यह पहली फिल्म है। दोनों ने एक नई कहानी का अलग ट्रीटमेंट किया है। फिल्म में स्टार से ज्यादा सेकेंड लीड को महत्व दिया है। फिल्म की कहानी, एक्शन, म्यूजिक, एडिटिंग और कैरेक्टर के इंट्रोड्यूस करने की स्टाल के लिए भी देखी जानी चाहिए। फिल्म में एक्शन में हीरो विलेन को ऐसे काट रहा है जैसे गाजर मूली काट रहा हो। इस पार्ट को देख यह पता चलेगा कि प्रभास कौन है और वर्धा कौन है।
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आर्टिकल की समाप्ति
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