70 % हार्ट अटैक के मामले घरों में, CPR बचाएगा जान ! लेकिन 98 % भारतीयों को यूज करना नहीं आता
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रेल एंड प्रीवेंनशन (CDC) के अनुसार 10 में से 7 मरीज को हार्ट अटैक घरों में आता है। और अगर उनको समय से CPR दे दिया जाय तो उनके बचने की संभावना 2-3 गुना बढ़ जाती है। सीपीआर कोई भी व्यक्ति दे सकता है। और उसके लिए थोड़ी ट्रेनिंग की आवश्यकता है, जो एक वीडियो के जरिए भी ली जा सकती है।
क्या है सीपीआर तकनीकी
- 50 से कम उम्र के लोगों हार्ट अटैक के तेजी से शिकार हो रहे हैं।
- राजू श्रीवास्तव, सिद्धार्थ शुक्ला जैसे सेलिब्रेटी कम में हुए हार्ट अटैक के शिकार।
- सीपीआर देने पर मरीज की जान बचने की संभावना 2-3 गुना बढ़ जाती है।
World Heart Day: दुनिया में 10 में से 7 हार्ट अटैक (Heart Attack) के मामले घर में होते हैं। और 90 फीसदी लोग जिन्हें अस्पताल के बाहर हार्ट अटैक आता हैं, उनकी मौत हो जाती है। इससे भी परेशान करने वाली बात यह है कि दिल की बीमारी के 60 फीसदी मामले भारत में हैं। और 50 से कम उम्र के लोगों हार्ट अटैक के तेजी से शिकार हो रहे हैं। हार्ट अटैक आने पर अगर किसी व्यक्ति को CPR का इलाज तुरंत मिल जाए तो, मरीज की जान बचने की संभावना दो से तीन गुना बढ़ जाती है। लेकिन हैरानी का बात है कि भारत के 98 फीसदी लोग CPR देना नहीं जानते हैं। जिसका खामियाजा मरीज को उठाना पड़ता है।
क्या होता है CPR
CPR यानी कार्डियोपल्मोनरी रिसकसिटेशन (Cardiopulmonary Resuscitation ) है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रेल एंड प्रीवेंनशन (CDC) के अनुसार 10 में से 7 मरीज को हार्ट अटैक घरों में आता है। और अगर उनको समय से CPR दे दिया जाय तो उनके बचने की संभावना 2-3 गुना बढ़ जाती है। सीपीआर कोई भी व्यक्ति दे सकता है। अगर किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ा हो तो उसे सीधा लेटाकर, उसके सीने पर दोनों हाथों से जोर-जोर से प्रेशर देना चाहिए।
इसके अलावा मुंह से भी सांस देने का तरीका अपनाया जा सकता है। इसके तहत मरीज के मुंह को खोलकर, सीपीआर देने वाले व्यक्ति को अपना मुंह, मरीज के मुंह से लॉक कर देना चाहिए। और उसके बाद मुंह के जरिए तेजी से सांस देनी चाहिए। जिससे कि मरीज को ऑक्सीजन मिल सके।
ऐसा करने से मरीज के दिल और मस्तिष्क में खून का प्रवाह होने लगता है। इस बात का हमेशा ध्यान रखें, कि जब तक मरीज डॉक्टर की निगरानी में न आ जाय, तब तक उसे सीपीआर देते रहना चाहिए।
दुर्घटना के शिकार लोगों के लिए बेहद कामगार
हर्ट एंड स्ट्रोक फाउंडेशन (Heart And Stroke Foundation ) के अनुसार देश में 98 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिन्हें सीपीआर की जानकारी नहीं है। और वह सीपीआर नहीं दे सकते हैं। ऐसे में ज्यादातर लोगों को इसके प्रशिक्षण से बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई जा सकती है।
फाउंडेशन के अनुसार भारत में सड़क हादसे के शिकार 80 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिन्हें शुरूआती मेडिकल केयर नहीं मिल पाती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में भारत में 1.55 लाख लोगों ने सड़क हादसे में अपनी जान गंवाई है। ऐसे में अगर 80 फीसदी लोगों को सीपीआर जैसी शुरूआती मेडिकल केयर मिल जाती, तो उनकी जान बंचाई जा सकती थी।
कम उम्र के लोगों को ज्यादा खतरा
इंडियन हर्ट एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दुनिया की 20 फीसदी आबादी रहती है। लेकिन अगर दिल के मरीजों की बात की जाय तो 60 फीसदी मरीज भारत में हैं। यही नहीं दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में भारतीयों में कम उम्र में दिली की बीमारी होने का खतरा 33 फीसदी ज्यादा रहता है। और उनके मौत की भी खतरा दूसरे इलाकों की तुलना में कहीं ज्यादा होता है।
वहीं मेडिकल जनरल लॉन्सेट की रिपोर्ट के अनुसार साल 1990 से 2016 के बीच भारत में हार्ट अटैक और स्ट्रोक के मामलों में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट के अनुसार हर 100 में से 28.1 लोग हार्ट अटैक और स्ट्रोक से मर रहे हैं। इसमें से हार्ट अटैक से करीब 18 लोगों की मौत होती है। अहम बात यह है कि इसमें 50 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र 70 से भी कम है। इसमें भी एक बड़ी संख्या 50 के उम्र के आस-पास के लोगों की है। हार्ट अटैक और स्ट्रोक से महिलाओं की तुलना में पुरूषों की ज्यादा मौत होती है।
क्यों बढ़ रहे हैं मामले
भारत में दिल की बीमारी के मामले इतने ज्यादा क्यों हैं। इम्यून मित्र के प्रमुख डॉ प्रशांत राज गुप्ता ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं कि हार्ट अटैक होने की सबसे बड़ी वजह लोगों की लाइफ स्टाइल और खान-पान है। ये दोनों चीजों बहुत खराब हो चुकी है। लोग ठीक से नींद नहीं लेते हैं, रात में देर तक जगते हैं। खाने में जंक फूड, पॉम ऑयल का इस्तेमाल बढ़ गया है। जिसकी वजह से जोखिम बढ़ता जा रहा है। आज जो रिफाइन्ड तेल इस्तेमाल किया जा रहा है, उसमें पॉम आयल भी मिलाया जाता है। इसके अलावा भोजन में मैदे वाली चीजों की मात्रा बढ़ गई है। प्रीजरवेटिव फूड खाया जा रहा है। सब्जियों का इस्तेमाल कम हो गया है। जिससे भी जोखिम कहीं ज्यादा हो गया है।
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