अलाउद्दीन खिलजी की बेटी को किससे हो गई थी मोहब्बत? राजा ने रिश्ता ठुकराया तो छिड़ गई जंग
Alauddin Khalji vs Kanhadadeva: भारत के इतिहास में अनेकों वीर राजाओं की अनगिनत वीरगाथाएं हैं। आपको एक ऐसे पराक्रमी राजा कान्हड़देव की शौर्यगाथा से जुड़े किस्से बताते हैं, जिसने अलाउद्दीन खिलजी की सेना को दो-दो बार धूल चटाई। खिलजी की बेटी फिरोजा को कान्हड़देव के बेटे से 'मोहब्बत' हो गई थी। राजा ने अलाउद्दीन के प्रस्ताव को ठुकराया, तो जंग शुरू हो गई।
खिलजी की सेना को जिस राजा ने चटाई थी धूल।
Alauddin Khalji's Daughter Love Story: वो 12वीं शताब्दी का दौर था, जब भारत पर तुर्क जिहादी आक्रमण कर रहे थे। उन दिनों राजस्थान के जालौर के महाराजा सामंत सिंह के महल में एक वीर बालक ने जन्म लिया, जिसका नाम कान्हड़देव रखा गया। कान्हड़देव अपने बचपन से ही एक वीर योद्धा के पर्याय थे। आगे चलकर वह जालौर के राजा बन गए। प्राचीनकाल में राजस्थान के जालौर को जाबिलपुर के नाम से जाना जाता था। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि जालौर की मिट्टी में जन्म लेने वाले शूरवीर युद्ध के मैदान में कभी पीछे नहीं हटने के लिए प्रचलित थे। भारत के कई राज्यों पर दुश्मन लगातार हमला कर रहे थे, वहीं राजा कान्हड़देव के कुशल नेतृत्व में जालौर की सीमाओं का विस्तार हो रहा था। 1298 ईस्वी में जब अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर हमला कर दिया, लूटपाट और मारकाट करती हुई खिलजी की सेना आगे बढ़ रही थी। लुटेरों ने सोमनाथ मंदिर समेत कई दूसरे मंदिरों को नष्ट कर दिया और उसकी संपत्ति नष्ट कर दी। 1299 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने राजपूताने क्षेत्र में दस्तक दी। जालौर के आस-पास के कई राजाओं को परास्त करने के बाद अब खिलदी की नजर जालौर पर थी।
युद्ध के मैदान से दुम दबाकर भाग निकला खिलजी
जब राजा कान्हड़देव को ये खबर मिली की खिलजी ने सोमनाथ महादेव शिवलिंग तोड़ दिया है और बच्चों-महिलाओं को बंदी बना लिया है, तो कान्हड़देव ने मंदिर के पुनःनिर्माण और कैदियों को आजाद कराने का प्रण लिया। राजा ने रणनीति बनाई और आधी रात में साकरना गांव के पास डेरा डाला। सुबह का सूरज उगते ही राजा कान्हड़देव के नेतृत्व में 10 गुनी बड़ी सेना पर उन्होंने धावा बोल दिया। खिलजी की सेना अचालक हुए हमले में तितर-बितर हो गई और जंग के मैदान से दुम दबाकर सभी भाग गए। इस आक्रमण में अलाउद्दीन खिलजी का भतीजा मारा गया। औरतो-बच्चों को वीर कान्हड़देव ने अलाउद्दीन के चंगुल से मुक्त कराया और राजपुरोहितो के जरिए सोमनाथ मंदिर से लूटी हुई मूर्तियों को वापस भिजवा दिया।
कान्हड़देव के बेटे से खिलजी की बेटी को हुई मोहब्बत
उन दिनों कान्हड़देव के बेटे राजकुमार वीरमदेव की सुंदरता के चर्चे काफी मशहूर थे। कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में भी वीरमदेव की चर्चा होने लगी। जिनके बारे में सुनकर खिलजी की बेटी फिरोजा उनकी तरफ आकर्षित होने लगीं। अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी बेटी फिरोजा की जिद्द पर राजा कान्हड़देव के पास राजकुमार वीरमदेव से अपनी बेटी के निकाह का प्रस्ताव भेजा। राजा कान्हड़देव ने बिना देर किए उसे ठुकरा दिया। कान्हड़देव के इस कदम से अलाउद्दीन खिलजी आग बबूला हो उठा। बौखलाए खिलजी ने अपनी सेना को जालौर की सीमाओं को घेरने का आदेश दिया।
खिलजी को दूसरी बार कान्हड़देव से चटाई धूल
राजा कान्हड़देव के खिलाफ अलाउद्दीन खिलजी रणनीति तैयार कर रहा था। बेटी की मोहब्बत को ठुकराए जाने के कुछ दिनों बाद उसने जालौर पर आक्रमण करने के लिए अपने सेनापति नहर मलिक को सेना के साथ भेजा, मगर कान्हड़देव की राजपूत सेना के पराक्रमियों को आगे कोई टिक न सका, इस युद्ध में खिलजी का सेनापति नहर मलिक मारा गया।
खिलजी के 50 योद्धाओं को कान्हड़देव ने मार गिराया
दो बार परास्त होने के बाद अगली बार अल्लाउदीन खिलजी ने विशाल फौज के साथ जालौर पर आक्रमण कर दिया। इस बार युद्ध कई महिनों तक चला, खिलजी की फौज ने जालौर के किले को चारों ओर से घेर लिया। हजारों राजपूत अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे। इस युद्ध में खिलजी के 50 योद्धाओं को राजा कान्हड़देव ने मार गिराया और खुद वीरगति को प्राप्त हुए।
युद्ध के मैदान में भी वीरमदेव को मिला शादी का प्रस्ताव
राजा कान्हड़देव के बाद युद्ध का सारा भार उनके बेटे राजकुमार वीरमदेव और भाई मालदेव पर था। तीन दिन तक राजकुमार वीरमदेव युद्ध लड़ते रहे। बताया जाता है कि युद्ध के मैदान में वीर राजकुमार ने 40 तलवारें तोड़ी। युद्ध के दौरान खिलजी के सेनापति ने एक बार फिर राजकुमार वीरमदेव के सामने फिरोजा से शादी का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को इंकार करते उन्होंने कहा, 'जैसल घर भाटी लजै, कुल लाजै चौहाण। हुं किम परणु तुरकड़ी, पछम न उगै भांण।' इसका अर्थ है कि 'मामा जैसलमेर के भाटी और मेरा कुल चौहान दोनों लज्जित होंगे। मैं इस लड़की से उसी प्रकार विवाह नहीं कर सकता जिस प्रकार सूर्य पश्चिम से नहीं उग सकता।' रणभूमि पर लड़ते-लड़ते पिता के बाद राजकुमार वीरमदेव भी वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
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