'अध्यादेश' की चोट को सह न पाए केजरीवाल !, जो पहले नहीं थे पसंद उनके दर लगा रहे हैं चक्कर

Ordinance on IAS Transfer Posting: सियासी मजबूरी कहें या सियासी जरूरत या नैतिकता से समझौता या नैतिक बल के जरिए लड़ाई। अरविंद केजरीवाल जब राजनीति में आए तो इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया करते थे। लेकिन दिल्ली का बॉस कौन प्रकरण पर वो सियासी हमलों का सामना करने के लिए शायद अपने ही आदर्शों से हटकर वही राह चुन ली है जिसका वो विरोध किया करते थे।

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अध्यादेश के मुद्दे पर विपक्षी एकता की कोशिश में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल

Ordinance on IAS Transfer Posting: दिल्ली का बॉस कौन, सीएम या लेफ्टिनेंट गवर्नर। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुई। आप सरकार और एलजी के बीच टकराव की शुरुआत एलजी नजीब जंग से शुरू हुई और वर्तमान एलजी वी के सक्सेना(delhi lg v k saxena) के साथ चरम पर है। पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने कहा कि आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार है। उस फैसले के बाद केजरीवाल सरकार ने कुछ ट्रांसफर किए जिस पर एलजी की तरफ से आपत्ति जताई गई। पीठ के फैसले के एक दिन बाद केजरीवाल सरकार फिर से सुप्रीम कोर्ट(supreme court on ias transfer) पहुंची। उसके बाद केंद्र सरकार की अध्यादेश जारी किया गया। अब उसी अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों से मिलकर समर्थन जुटा रहे हैं ताकि अध्यादेश को राज्यसभा में पराजित किया जा सके। वो यह कह भी चुके हैं कि अगर राज्यसभा में अध्यादेश पराजित हुआ तो 2024 से पहले ही एक बड़ी लड़ाई मोदी सरकार के खिलाफ हम जीत जाएंगे। यहां हम बताएंगे कि केजरीवाल की मुहिम कहां तक पहुंची है।

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इन राज्यों के सीएम से मिले केजरीवाल

  • पश्चिम बंगाल- ममता बनर्जी
  • तमिलनाडु- एम के स्टालिन
  • झारखंड-हेमंत सोरेन

केजरीवाल को 10 विपक्षी दलों का समर्थन

अरविंद केजरीवाल को इस मुहिम में 10 विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है। लेकिन देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के समर्थन का इंतजार है। लखनऊ में बुधवार को जब अरविंद केजरीवाल, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव(akhilesh yadav) से मिले तो अखिलेश यादव ने कहा कि अध्यादेश असंवैधानिक है। इस बयान के साथ उन्होंने कहा कि राज्य सभा में उनकी पार्टी अध्यादेश का विरोध करेगी। नीचे टेबल के जरिए आप अरविंद केजरीवाल को मिले समर्थन के आंकड़ों को देख सकते हैं। वाम दलों की तरफ सीपीआई-एम ने भी समर्थन देने का फैसला किया है जिनके सदस्यों की संख्या 5 है। बता दें कि राज्यसभा में बीजेपी के 91 सदस्य हैैं।

पार्टी का नामराज्यसभा में सदस्यों की संख्या
टीएमसी12
बीआरएस7
झारखंड मुक्ति मोर्चा2
समाजवादी पार्टी4
डीएमके10
राष्ट्रीय जनता दल6
एनसीपी4
शिवसेना उद्धव गुट4
जेडीयू5
मई में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में, दिल्ली सरकार को GNCTD के साथ काम करने वाले या उससे जुड़े नौकरशाहों पर पूरा नियंत्रण दिया था। आठ साल की कानूनी लड़ाई के बाद केजरीवाल सरकार दिल्ली के सरकारी बाबुओं पर पूरा अधिकार कर पाती।हालांकि, एक हफ्ते बाद केंद्र सरकार ने अपने राष्ट्रीय राजधानी संवर्ग सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) अध्यादेश के जरिए दिल्ली की चुनी हुई सरकार से उन पूरे अधिकारों को छीन लिया। एनसीसीएसए के प्रावधानों ने फिर से दिल्ली एलजी को सेवा विभाग का "बॉस" बनने का अधिकार दिया। इसका मतलब यह था कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार का उनके अधीन काम करने वाले अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग पर पूर्ण नियंत्रण नहीं होगा।

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ललित राय author

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