केजरीवाल गए जेल, फिर भी AAP क्यों हुई फेल? नहीं मिली वोटर्स की सहानुभूति; जानें 3 कारण
तिहाड़ जेल से केजरीवाल अंतरिम जमानत पर बाहर आए तो उन्होंने रैलियों में भारी भीड़ जुटाई, लेकिन उनकी कोशिशें पूरी तरह से फेल हो गईं। अरविंद केजरीवाल दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) या कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नहीं दिला सके। इसके पीछे की 3 वजह आपको समझाते हैं।
क्यों नाकाम हुए अरविंद केजरीवाल?
Delhi Politics: अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का क्या होगा? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले जेल जाने के बावजूद अरविंद केजरीवाल मतदाताओं की सहानुभूति हासिल कर पाने में नाकाम हो गए। वो अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर आए, भीषण गर्मी में उन्होंने धुंआधार प्रचार किया, ताबड़तोड़ रैलियां कीं। उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ भी देखने को मिली, लेकिन इस भीड़ ने उनकी आम आदमी पार्टी पर भरोसा नहीं दिखाया।
क्यों फेल हो गए केजरीवाल, समझें 3 ठोस वजह
सीएम केजरीवाल 10 मई को तिहाड़ जेल से अंतरिम जमानत पर बाहर आए थे। उन्होंने रोड शो में भारी भीड़ जुटाई लेकिन, उनकी तमाम कोशिशें देश की राजधानी दिल्ली में भी फेल हो गई, जहां उनकी पार्टी सत्ता में है। वो खुद जेल से बाहर आकर भी दिल्ली में आप या कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नहीं दिला सके। आखिर इसके पीछे की असल वजह क्या है, आपको हम समझाते हैं।
1). जेल जाने पर केजरीवाल की छवि बनी पलटूराम
अपने ही बयानों पर कायम नहीं रहने वाले नेताओं का जिक्र होगा, तो शायग अरविंद केजरीवाल को सूची में अहम स्थान दिया जाएगा। उन्होंने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि वो कभी कांग्रेस या भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। केजरीवाल ने ये भी कहा था कि सरकार में आने के बाद वो सरकारी सुविधाएं नहीं लेंगे। उन्होंने अन्ना आंदोलन के वक्त ये तक दावा किया था कि वो कभी भी सियासत में कदम नहीं रखेंगे। हालांकि बार-बार अपनी ही बात से पलटने के चलते लोगों के बीच उनकी छवि पर गहरी चोट पहुंची।
2). खुद को कहा था कट्टर ईमानदार, अब घोटाले का आरोप
अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखने के साथ ये ऐलान किया था कि वो कट्टर ईमानदार नेता है। उन्होंने ये तक कहा था कि यदि उनकी पार्टी का कोई भी नेता घोटाला करेगा तो उसे सजा दिलाना, उनकी जिम्मेदारी होगी। उन्होंने एक मंच से ये दावा भी किया था कि यदि कभी उनकी पार्टी के किसी नेता या उनके उपर कोई घोटाले का आरोप लगता है तो सबसे पहले इस्तीफा देंगे। इन सभी बातों से अरविंद केजरीवाल पलट गए। उनके खिलाफ घोटाले का आरोप है, जिसके चलते वो जेल में हैं। हालांकि वो जेल से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे हैं। निश्चित तौर पर जनता की नजर में इसका काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा होगा।
3). अरविंद केजरीवाल से ज्यादा दिल्ली को BJP पर भरोसा
पिछले तीन लोकसभा चुनाव के नतीजों में ये साफ हो चुका है कि दिल्ली की जनता सूबे के सभी 7 सांसद के रूप में भाजपा को पहली पसंद मानती है। अरविंद केजरीवाल वर्ष 2013 से दिल्ली की सत्ता पर काबिज हैं, लेकिन लोकसभा के लिए उनकी पार्टी ने दिल्ली की अब तक एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई है। अरविंद केजरीवाल को लोगों ने बतौर मुख्यमंत्री को स्वीकार कर लिया, लेकिन वो उनकी पार्टी को दिल्ली की एक भी लोकसभा सीट से सांसद नहीं बनाना चाहते हैं।
अब AAP का क्या होगा? नहीं मिली मतदाताओं की सहानुभूति
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को शिकस्त देने की कोशिश में केजरीवाल ने न केवल ‘आप’ उम्मीदवारों के लिए बल्कि इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया) में सहयोगी दलों के उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार किया। दिल्ली के अलावा उन्होंने महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों की भी यात्रा की। लेकिन उनकी रैलियों में उमड़ी भारी भीड़ वोट में तब्दील नहीं हो सकी और दिल्ली ‘आप’ को भाजपा के हाथों करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।
किसी राज्य में नहीं चला अरविंद केजरीवाल का जादू
पंजाब में ‘आप’ ने 13 सीट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह सिर्फ तीन सीट ही जीत पाई। दिल्ली में उसकी सहयोगी कांग्रेस ने पंजाब में उसकी जीत की संभावनाओं पर नकेल कस दी और सात सीट अपने नाम कर ली। ‘आप’ ने देशभर में कुल 22 सीट पर चुनाव लड़ा था, जिनमें पंजाब की 13, दिल्ली की चार, गुजरात की दो, असम की दो और हरियाणा की एक सीट शामिल हैं। लेकिन पार्टी गुजरात, हरियाणा, दिल्ली और असम में एक भी सीट नहीं जीत पाई।
सुनीता केजरीवाल ने पति की गैरमौजूदगी में संभाली कमान
केजरीवाल को 21 मई को गिरफ्तार किया गया था। उनकी गिरफ्तारी के कारण ‘आप’ का चुनाव अभियान प्रभावित हो गया। पार्टी के घोषणापत्र, चुनाव लड़ने की रणनीति और लोगों से संपर्क साधने की गतिविधियों को लेकर निर्णय लेने में देरी हुई। हालांकि, केजरीवाल की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने नेतृत्व करने की कोशिश जरूर की। उनकी पार्टी के नेताओं ने कहा कि अंतरिम जमानत पर बाहर आने के बाद केजरीवाल बिना समय गंवाए पूरे जोश के साथ चुनाव प्रचार में कूद पड़े और उन्होंने पार्टी के अभियान में नयी ऊर्जा भर दी।
AAP का 'जेल का जवाब वोट से...' अभियान हुआ फेल
जेल से बाहर आने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को अपने पहले संबोधन में केजरीवाल ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘‘उत्तराधिकारी’’ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए वोट मांग रहे हैं क्योंकि मोदी 75 साल की उम्र में ‘‘रिटायर’’ हो जाएंगे। पार्टी नेताओं ने फिर से एकजुट होकर ‘जेल का जवाब वोट से’ अभियान शुरू किया, जिसके तहत इसके वरिष्ठ नेताओं ने समर्थन जुटाने के लिए कई जनसभाओं का नेतृत्व किया, हस्ताक्षर अभियान और अन्य गतिविधियां शुरू कीं।
केजरीवाल की सारी उम्मीदों पर पूरी तरह फिर गया पानी
‘आप’ को उम्मीद थी कि केजरीवाल की गिरफ्तारी से लोगों में सहानुभूति पैदा होगी और यह पार्टी के पक्ष में काम करेगा, लेकिन जाहिर तौर पर ऐसा नहीं हुआ। दिल्ली, हरियाणा और चंडीगढ़ में उनकी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा, लेकिन पंजाब में आम सहमति नहीं बन पाई। यह चुनाव केजरीवाल और ‘आप’ के लिए इस लिहाज से अहम था क्योंकि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद ‘आप’ का यह पहला लोकसभा चुनाव था।
केजरीवाल ने पहली बार 2013 में कांग्रेस से बाहरी तौर पर मिले समर्थन से दिल्ली में ‘आप’ की सरकार बनाई थी। लेकिन यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही चल पाई, क्योंकि केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में जन लोकपाल विधेयक पारित न करवा पाने के कारण इस्तीफा दे दिया। आप ने वर्ष 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की लेकिन लोकसभा चुनावों में उसे आज तक कोई सफलता नहीं मिली है।
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