पिछली बार सोनिया गांधी की जीत का अंतर घटा दिया था, इस बार राहुल हैं सामने, क्या इतिहास बनाएंगे दिनेश सिंह
Dinesh Pratap Singh Vs Rahul Gandhi : दिनेश प्रताप स्थानीय नेता हैं और रायबरेली इलाके में इनके परिवार की अच्छी पकड़ है। इनके परिवार से अन्य लोग भी राजनीति में हैं। दिनेश सिंह के भाई राकेश प्रताप सिंह भी विधायक रह चुके हैं जबकि इनके रिश्तेदार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं। सिंह 2010 और 2016 में एमएलसी चुने गए।
रायबरेली सीट से चुनाव लड़ रहे राहुल गांधी।
Dinesh Pratap Singh : रायबरेली सीट पर सस्पेंस खत्म करते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने गुरुवार को यहां से दिनेश प्रताप सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। हालांकि, पहले इस सीट पर वरुण गांधी को टिकट मिलने के कयास लगाए जा रहे थे। कांग्रेस के गढ़ और पारंपरिक सीट पर दिनेश सिंह का मुकाबला राहुल गांधी से होगा। तीन बार के एमएलसी दिनेश सिंह के लिए रायबरेली सीट नई नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर देते हुए उनकी जीत के अंतर को काफी कम कर दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में सोनिया इस सीट पर 3.52 लाख वोटों के अंतर से जीती थीं लेकिन 2019 में यह अंतर घटकर 1.67 लाख रह गया।
इलाके में दिनेश सिंह का अच्छा रसूख
दिनेश प्रताप स्थानीय नेता हैं और रायबरेली इलाके में इनके परिवार की अच्छी पकड़ है। इनके परिवार से अन्य लोग भी राजनीति में हैं। दिनेश सिंह के भाई राकेश प्रताप सिंह भी विधायक रह चुके हैं जबकि इनके रिश्तेदार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं। सिंह 2010 और 2016 में एमएलसी चुने गए। सौम्य स्वभाव वाले दिनेश सिंह का इलाके में अपना एक रसूख है।
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए
सिंह का नाता कांगेस से भी रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ आ गए। फिर भाजपा ने इन्हें सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा। इस चुनाव में सिंह ने सोनिया को कड़ी टक्कर दी। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली ही एक ऐसी सीट थी जिस पर सोनिया गांधी के रूप में कांग्रेस विजयी हुई।
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सोनिया के जीत के अंतर को काफी कम कर दिया
सिंह ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष को कड़ी टक्कर तो दी ही उनकी जीत के अंतर को भी काफी कम कर दिया। इस सीट पर किसी भाजपा प्रत्याशी का अब तक का यह सबसे अच्छा प्रदर्शन था। सिंह को इस प्रदर्शन का ईनाम भी मिला। भगवा पार्टी ने साल 2022 में उन्हें एक बार फिर एमएलसी बनाया। यूपी की सत्ता में योगी सरकार के दोबारा लौटने पर इन्हें बागवानी, कृषि विदेशी व्यापार एवं निर्यात का राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया।
'फर्जी गांधी' को उखाड़ फेकेंगे-सिंह
रायबरेली से दोबारा लोकसभा का टिकट मिल जाने के बाद सिंह अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं। इस बार उनके सामने सोनिया गांधी नहीं बल्कि राहुल गांधी है। टिकट मिलने और उन पर भरोसा जताने के लिए उन्होंने भाजपा को धन्यवाद दिया। सिंह ने कहा कि 'भरोसा तोड़ने से अच्छा वह मर जाना पसंद करेंगे'। दिनेश सिंह ने कहा है कि वह रायबरेली से 'फर्जी गांधी' को उखाड़ फेकेंगे।
ऐसा था 2019 का चुनाव रिजल्ट
2019 के चुनाव में रायबरेली सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 16,28,549 थी। इस सीट पर पुरुष मतदाताओं की संख्या 8,63,320 महिलाओं मतदाताओं की संख्या 7,65,184 है। चुनाव में यहां कुल वैध 9,48,304 वोट पड़े। नोटा का चुनाव 10,252 लोगों ने किया। सोनिया गांधी को 55.8 प्रतिशत के साथ 534,918 वोट मिले। दूसरे नंबर पर भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह रहे। सिंह को 38.4 फीसदी के साथ 367,740 वोट मिले। तीसरे स्थान पर आजाद भारत पार्टी के अशोक प्रताप मौर्य रहे। मौर्य को 9459 वोट मिले।
रायबरेली सीट पर कांग्रेस को 3 बार मिली हार
इसे इस बात से समझा जा सकता है कि 1952 से लेकर 2014 तक के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल तीन बार ही 1977, 1996 और 1998 में हारी। बाकी समय हर बार यह सीट कांग्रेस के खाते में गई। इस सीट पर गांधी परिवार से फिरोज गांधी, इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू और सोनिया गांधी सांसद रहे। चूंकि शुरुआत से ही इस सीट पर गांधी परिवार का कोई न कोई चुनाव लड़ता रहा, ऐसे में पार्टी के साथ यहां के लोगों को एक खास रिश्ता बन गया।
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1999 से लगातार अजेय रही है कांग्रेस
1977 तक इस सीट पर कांग्रेस की एकतरफा जीत होती रही। इसकी वजह गांव एवं कस्बों तक कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा मजबूत होता रहा। कांग्रेस सांसदों ने इस क्षेत्र में विकास के कई कार्य किए। फैक्ट्रियां लगीं जिससे लोगों को रोजगार मिला। आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में जनता पार्टी के राज नारायण तो इंदिरा गांधी को हराने में कामयाब रहे लेकिन तीन साल बाद 1980 में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी ने फिर वापसी की। इसके बाद 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस की हार हुई। इन दोनों चुनाव में भाजपा के अशोक कुमार सिंह विजयी हुए। 1999 के बाद से यह सीट एक बार फिर कांग्रेस के कब्जे में आ गई। यहां राजमाता विजयराजे सिंधिया, महिपाल शास्त्री, जनेश्वर मिश्र, सविता आंबेडकर जैसे चेहरे हारकर यहां से चले भी गए।
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