Census 2025: जाति, धर्म से कैसे अलग है संप्रदाय, जनगणना 2025 में नए कॉलम का क्या है मतलब

Census 2025: जाति और संप्रदाय में एक बड़ा अंतर यह होता है कि जाति आमतौर पर जन्म से तय होती है। वहीं, संप्रदाय किसी धर्म के भीतर से निकला एक विशिष्ट परंपरा होती है। अपने नागरिकों की स्थिति, संख्या एवं अन्य तरह की जानकारी पाने के लिए सरकारें जनगणना कराती हैं। भारत में जनगणना हर 10 साल के बाद होती आई है।

2025 में शुरू होगा जनगणना का काम।

Census 2025: सरकार देश में जनगणना कराने की तैयार में है। यह अगले साल यानी 2025 में शुरू होकर 2026 में सपन्न होगी। यह जनगणना 2021 में होनी थी लेकिन कोविड महामारी की वजह से इसमें विलंब होता गया। अब सरकार ने इसे कराने का मन बना लिया है। रिपोर्टों में सरकारी सूत्रों के हवाला से कहा गया है कि इस जनगणना में सरकार लोगों से उनका संप्रदाय भी पूछेगी। अब तक जनगणना में लोगों से उनका धर्म और वर्ग ही पूछा जाता रहा है लेकिन इस बार उन्हें अपना संप्रदाय भी बताना पड़ सकता है। विपक्ष जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रहा है लेकिन सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है।

जाति आम तौर पर जन्म से तय होती है

एनडीए के सहयोगी दल जद-यू, लोजपा, टीडीपी जातिगत गणना कराए जाने के पक्ष में हैं। जाति और संप्रदाय में एक बड़ा अंतर यह होता है कि जाति आमतौर पर जन्म से तय होती है। वहीं, संप्रदाय किसी धर्म के भीतर से निकला एक विशिष्ट परंपरा होती है। अपने नागरिकों की स्थिति, संख्या एवं अन्य तरह की जानकारी पाने के लिए सरकारें जनगणना कराती हैं। भारत में जनगणना हर 10 साल के बाद होती आई है। जनगणना में सरकारों को अपने नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, स्थिति, उनके धर्म (हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई) और वर्ग (सामान्य, पिछड़ा, दलित, आदिवासी) की जानकारी मिलती है। ये आंकड़े सरकार को अपनी नीतियां बनाने में मदद करते हैं।

भारत में हैं कई तरह के संप्रदाय

साथ ही बढ़ी हुई आबादी संसद, विधानसभाओं एवं स्थानीय निकायों के लिए नए सिरे से सीमांकन का आधार बनती है। रिपोर्टों के मुताबिक जनगणना में लोगों से उनका संप्रदाय पूछे जाने के बारे में राजनीतिक दलों में सहमति बन गई है। हिंदू, मुस्लिम सहित ज्यादातर धर्मों में कई संप्रदाय मिलते हैं। हिंदू धर्म में वैष्णव, शैव, कबीरपंथी, रविदासी, लिंगायत जैसे कई संप्रदाय हैं तो मुस्लिम धर्म में सुन्नी, शिया, बोहरा और अहमदी जैसे संप्रदाय हैं। कई राज्यों में गुरुओं, डेरों और संगत के नाम पर संप्रदाय या परंपरा चल रही है। इन संप्रदायों का अच्छा-खासा प्रभाव देखा जा रहा है। लोग बड़ी संख्या में इन संप्रदायों के अनुयायी हैं। माना जा रहा है कि संप्रदाय का आंकड़ा सामने आने पर नई सामाजिक तस्वीर सामने आ सकती है।

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