चाचा vs भतीजा: क्या फिर टूट जाएगा अखिलेश-शिवपाल का साथ? फूट डाल सकती हैं ये 3 गलतियां

Chacha vs Bhatija: क्या अखिलेश यादव और शिवपाल यादव एक बाद फिर जुदा होने वाले हैं? सत्तापक्ष के नेताओं के अंदाज से तो यही लग रहा है कि वो ये तहे दिल से चाहते हैं। चाचा-भतीजे के बीच यदि फिर दरार पड़ी तो किसे फायदा होगा और किसे नुकसान? तीन गलतियां सपा का सिरदर्द बढ़ा सकती हैं।

Akhilesh Yadav vs Shivpal Yadav

शिवपाल यादव vs अखिलेश यादव

Akhilesh Yadav Shivpal Yadav: सियासत में चाचा और भतीजे की लड़ाई भला किससे छिपी है। महाराष्ट्र के चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार के बीच का पंगा हो, बिहार के भतीजे चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस के बीच का उठापटक हो, या फिर यूपी के अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच की सियासी युद्ध हो। सभी के रिश्तों में कुर्सी की हनक को लेकर मनमुटाव आ ही चुका है। बड़े जतन के बाद तो अखिलेश और शिवपाल का मिलन हुआ, लेकिन एक बार फिर इन दोनों के बीच दरार पड़ती नजर आ रही है। यदि चाचा-भतीजे ने 3 गलतियां करने से खुद को नहीं रोका तो दोनों फिर से अलग हो सकते हैं। आपको इस लेख में समझाते हैं वो गलतियां कौन सी हैं।

1). भतीजे को करना होगा चाचा का सम्मान

उत्तर प्रदेश विधानसभा में इन दिनों 'गच्चा देने' (धोखा देने) का मुद्दा जोर पकड़ा हुआ है। सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर लगातार तंज कस रहे हैं। जबसे अखिलेश यादव ने कन्नौज का सांसद रहने का फैसला किया, तभी से एक सवाल खड़ा हो रहा था कि आखिर यूपी विधानसभा में विपक्ष का नेता कौन बनेगा। इस कुर्सी के लिए सभी की निगाहें अखिलेश पर टिकी थीं कि वो अपने चाचा शिवपाल को फिर से मजबूत कर सकते हैं। हालांकि माता प्रसाद पांडेय को यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। कुछ लोग इसे 2027 से पहले अखिलेश का मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं, लेकिन कई ऐसे भी फैक्टर हैं कि अखिलेश के घर में एक बार फिर अंदरूनी कलह शुरू हो सकती है।
चाचा शिवपाल को नजरअंदाज करके माता प्रसाद पांडेय पर भरोसा जताने के पीछे अखिलेश का जातीय समीकरण वाला फैक्टर हो सकता है। लेकिन इस कयास से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि शिवपाल को इससे जरूर ठेस पहुंची होगी। अब अखिलेश की सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि चाचा का सम्मान बरकरार रखते हुए वो उन्हें इस बार रूठने नहीं दें। सीएम योगी समेत सत्ताधारी पार्टियों के नेता चाचा शिवपाल की जमकर चुटकी ले रहे हैं। ऐसे में यदि अखिलेश इस चुनौती को नजरअंदाज करते हैं तो ये एक बड़ी गलती साबित हो सकती है। जो 2027 में सपा का सपना चकनाचूर करने के लिए काफी है।

2). चाचा शिवपाल को अभी रखना होगा धैर्य

खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक चाचा-भतीजे की ताकत को समझते हैं, जिसका असर हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों में भी साफ नजर आया था। ऐसे में सत्ताधारी पार्टी के दिग्गज इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते हैं। जहां सीएम योगी एक ओर माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की बधाई दे रहे हैं, वहीं बगैर नाम लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव पर तीखे तीर चला रहे हैं। योगी ने सदन में ये तक कह दिया कि आपके चयन के लिए बधाई देता हूं। ये अलग विषय है कि आपने चचा को गच्चा दे ही दिया। अब यहां ये समझना दिलचस्प हो जाता है कि आखिर योगी और भाजपा नीत एनडीए के नेताओं की असल कोशिश क्या है।
यूपी की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि 80 लोकसभा सीट वाले इस सूबे की क्षमता देश की सरकार बनाने और गिराने में अहम भूमिका है। फिलहाल शिवपाल यादव को समझना होगा कि वो उकसावे में आकर कोई बड़ी गलती ना कर बैठें, सत्ता पक्ष के नेता इसी फिराक में होंगे। हालांकि हाल ही में योगी के तंज पर अखिलेश के चाचा ने जो यूपी विधानसभा में जवाब दिया, उससे ये समझा जा सकता है कि शिवपाल को तोड़ पाना इतना भी आसान नहीं है। शिवपाल को यहां धैर्य रखने की जरूरत होगी, यदि वो अखिलेश के नेता प्रतिपक्ष वाले फैसले पर नाराज हो जाते हैं तो ये उनकी बड़ी गलती साबित हो सकती है।

3). अखिलेश-शिवपाल को लक्ष्य पर करना होगा फोकस

योगी आदित्यनाथ ने भले ही शिवपाल पर तंज कसा और चाचा-भतीजे के रिश्ते पर चुटकी ली, लेकिन शिवपाल ने भी माकूल जवाब दिया। योगी को जवाब देते हुए शिवपाल ने कहा था कि 'देख लेना 2027 में सपा सत्ता में आएगी और आपके जो डिप्टी चीफ मिनिस्टर हैं, वह आपको फिर गच्चा देंगे।' उन्होंने आगे योगी आदित्यनाथ पर तंज कसते हुए कहा कि 'तीन साल तो मैं आपके संपर्क में रहा हूं। गच्चा तो आपने भी दिया है।' मतलब साफ है, शिवपाल इस बात को समझ रहे हैं कि वो यदि अखिलेश से मुंह मोड़ते हैं तो उनके लिए ही मुश्किल होगी। खुद अखिलेश यादव भी ये जानते हैं कि चाचा शिवपाल यादव के आने से सपा काफी हद तक मजबूत हुई है।
ऐसे में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव को अपने लक्ष्य पर फोकस करना चाहिए। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन इन दिनों इस कोशिश में हैं कि उन्हें आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव में दमदार जीत हासिल हो। हालांकि लखनऊ की सत्ता पर काबिज होने में अभी ढाई साल से अधिक समय तक इंतजार करना ही होगा, लेकिन सत्ता हासिल करने के लिए चाचा-भतीजे को फिलहाल तंज को नजरअंदाज करते रहना होगा। यदि भाजपा और सत्ताधारी गठबंधन के नेताओं ने चाचा-भतीजे के रिश्ते में फूट डाल दी तो शायद फिर से 2027 के चुनावी नतीजे 2017 के तर्ज पर न आ जाए।
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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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