Chandrayaan 3 से चार साल पहले इंडिया इतिहास रचने से दो कदम रह था गया दूरः समझें- क्यों Chandrayaan-2 हुआ था फेल
Chandrayaan 3, What went wrong in Chandrayaan-2: हालांकि, इसरो चीफ एस सोमनाथ की ओर से कहा गया था कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने साल 2019 में अपने चंद्रयान -2 मिशन की आंशिक विफलता से मूल्यवान सबक सीखा है। यही वजह है कि हमने अपने चंद्रयान -3 मिशन में महत्वपूर्ण सुधार किए।
तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (क्रिएटिवः अभिषेक गुप्ता)
Chandrayaan 3, What went wrong in Chandrayaan-2: हिंदुस्तान ने चंद्रमा पर पहुंचने के लिए "चंद्रयान-3" से पहले अपने अंतरिक्ष अभियान चंद्रयान-2 को लॉन्च (22 जुलाई 2019 को) किया था। हालांकि, चार साल पहले किए गए उस बड़े प्रयास में भारत के हाथ मायूसी आई थी। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रयान-2 मिशन कुछ बुनियादी गड़बड़ियों के चलते फेल हो गया था। आइए, चलते हैं फ्लैशबैक में और जानते हैं कि तब क्या हुआ था?:
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"विक्रम" की लैंडिंग के दिन क्या हुआ था?दरअसल, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का विक्रम से संपर्क लैंडिंग के दिन तब टूट गया था, जब वह चंद्रमा की सतह से बमुश्किल 335 मीटर (0.335 किमी) दूर था। अंतरिक्ष एजेंसी के टेलीमेट्री ट्रैकिंग और कमांड सेंटर के शुरुआती आंकड़ों से पता चला कि विफलता विक्रम की यात्रा के अंतिम भाग (पांच किमी से 400 मीटर की ऊंचाई) में "फाइन ब्रेकिंग चरण" में हुई थी और यह तब शुरू हुई जब लैंडर चंद्रमा की सतह से महज पांच किमी की ऊंचाई पर था।
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केंद्र में लगी बड़ी स्क्रीन्स से पता चला था कि ग्रीन लाइन (हरी रेखा, जो लैंडर का प्रतिनिधित्व करती थी) उस समय से विचलन करना शुरू कर देती थी जब इसकी ऊंचाई दो किमी से ठीक ऊपर थी और उसने एक बिंदु पर रुकने से पहले विचलन जारी रखा जो स्पष्ट रूप से एक किमी की ऊंचाई से नीचे था और यह कहीं 500 मीटर के निकट या नीचे था। मॉड्यूल तब भी 59 मीटर प्रति सेकंड (या 212 किमी/घंटा) के ऊर्ध्वाधर वेग और 48.1 मीटर/सेकंड (या 173 किमी/घंटा) के क्षैतिज वेग के साथ आगे बढ़ रहा था। लैंडर उस समय चंद्रमा पर अपने निर्धारित लैंडिंग स्थान से लगभग 1.09 किमी दूर था।
चंद्रयान-2 का लैंडर चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने में क्यों विफल रहा?10 जून 2019 को मीडिया से बात करते हुए इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने तीन गलतियां बताई थीं, जिनके कारण विक्रम की "हार्ड लैंडिंग" हुई थी।
पहला- हमारे पास पांच इंजन थे, जिनका उपयोग वेग को कम करने के लिए किया जाता था, जिसे मंदता (Retardation) कहा जाता है। सोमनाथ के मुताबिक, ''इन इंजनों ने अपेक्षा से अधिक जोर विकसित किया।''उन्होंने आगे बताया कि अतिरिक्त जोर के कारण त्रुटियां जमा हो गईं, जिसके चलते सॉफ्ट लैंडिंग के लिए "कैमरा कोस्टिंग चरण" के दौरान लैंडर की स्थिरता से समझौता हुआ।
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यहीं पर दूसरी समस्या पनपी थी। वह बोले थे, “सभी त्रुटियां एकत्रित हो गई थीं, जो हमारी अपेक्षा से कहीं अधिक थीं। यान को बहुत तेजी से मोड़ना पड़ा। जब यह बहुत तेजी से मुड़ना शुरू हुआ, तो इसकी मुड़ने की क्षमता सॉफ्टवेयर द्वारा सीमित थी क्योंकि हमने कभी इतनी ऊंची दर आने की उम्मीद नहीं की थी।”
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तीसरी दिक्कत तब सामने आई जब लैंडर ने सतह के करीब होने के बावजूद अपना वेग बढ़ा दिया क्योंकि लैंडिंग स्थल काफी दूर था। सोमनाथ ने कहा था कि ऐसा आंशिक रूप से इसलिए हुआ क्योंकि लैंडिंग स्थल 500 मीटर x 500 मीटर का एक छोटा सा टुकड़ा था। वैसे, उन्होंने कहा था, “संक्षेप में चंद्रयान -2 में समस्या यह थी कि पैरामीटर फैलाव को संभालने की क्षमता बहुत सीमित थी।” अगर यह मिशन सफल हो जाता तो भारत ने उसी समय अंतरिक्ष जगत में नया कीर्तिमान रचते हुए इतिहास रच दिया होता।
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