समय की जरूरत है यूरोप से नजदीकी, PM मोदी के पोलैंड-यूक्रेन दौरे में बहुत कुछ छिपा है
PM Modi Poland-Ukraine Visit: पीएम मोदी का हालिया पोलैंड और यूक्रेन दौरा भी भारत की बदलती विदेश नीति का ही हिस्सा हो सकता है। पोलैंड मध्य यूरोप का एक बड़ा देश है। इस देश के साथ भारत के राजनयिक संबंध 1960 के दशक से है। पीएम मोदी से पहले भारत के तीन प्रधानमंत्री इस देश की यात्रा पर जा चुके हैं। सबसे पहले 1955 में पंडित नेहरू इस देश की यात्रा पर गए।
पीएम मोदी का यूरोप दौरा।
PM Modi Poland-Ukraine Visit: बीते बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का जिक्र करते हुए एक बयान दिया। उन्होंने कहा कि दशकों तक भारत की नीति सभी देशों से समान दूरी बनाकर रखने की रही लेकिन आज भारत की नीति सभी देशों के साथ करीबी संबंध बनाकर रखने की है। पीएम मोदी का यह बयान हाल के वर्षों में भारत की बदलती विदेश नीति और कूटनीति की ओर इशारा करता है। अमेरिका और रूस के साथ-साथ भारत उन सभी देशों के साथ अपना मेलजोल और करीबी बढ़ा रहा है जिनके हित उसके साथ जुड़ते हैं और जिनसे भारत को फायदा हो सकता है। यूरोप के ऐसे कई देश हैं जिनके साथ भारत के राजनयिक संबंध तो हैं लेकिन आपसी रिश्तों में उतनी गर्माहट और सहयोग में साझेदारी नहीं है।
भारत को आगे बढ़ने के लिए यूरोप का सहयोग चाहिए
कई दशकों पुरानी अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति से भारत को फायदा मिलता रहा है लेकिन यह तब था जब दुनिया दो ध्रुवीय थी यानी कि दुनिया के देश दो खेमों अमेरिका और रूस के नेतृत्व में बंटे हुए थे लेकिन अब दुनिया में कई पावर और सुपरपावर उभर रहे हैं और उभर चुके हैं। यूरोप में ऐसे कई देश हैं जो रक्षा, तकनीक, प्रौद्योगिकी, कृषि और अंतरिक्ष में काफी आगे निकल चुके हैं। भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए इन सभी देशों से कुछ न कुछ चाहिए। ऐसे में इन देशों से मदद और सहयोग आपसी संबंधों के बेहतर और रणनीतिक साझेदारी विकसित होने पर ही मिलेगी। प्रधानमंत्री मोदी इस बात को जानते हैं। इसलिए वे उन सभी देशों के साथ निकटता बढ़ा रहे हैं जिनसे भारत को फायदा हो सकता है। यानी भारत की विदेश नीति अपने हितों से तय होने लगी है न कि पहले के बने-बनाए सिद्धातों और धारणाओं से।
पोलैंड जाने वाले चौथे भारतीय पीएम हैं मोदी
पीएम मोदी का हालिया पोलैंड और यूक्रेन दौरा भी भारत की बदलती विदेश नीति का ही हिस्सा हो सकता है। पोलैंड मध्य यूरोप का एक बड़ा देश है। इस देश के साथ भारत के राजनयिक संबंध 1960 के दशक से है। पीएम मोदी से पहले भारत के तीन प्रधानमंत्री इस देश की यात्रा पर जा चुके हैं। सबसे पहले 1955 में पंडित नेहरू इस देश की यात्रा पर गए। इसके 12 साल बाद 1967 में इंदिरा गांधी और फिर 1979 में मोरारजी देसाई ने पोलैंड की यात्रा की। इसके बाद भारत का कोई पीएम पोलैंड नहीं गया। इससे आपसी रिश्तों में धूल की एक परत जम गई थी। 45 साल पीएम मोदी ने इस रिश्ते में नई जान फूंकी है। बीते दशकों में पोलैंड ने खूब तरक्की की है।
1991 से पहले सोवियत यूनियन का हिस्सा था यूक्रेन
गौर से देखें तो विगत दशकों में भारत का ज्यादा जोर यूरोप के चार बड़े और ताकतवर देशों रूस, जर्मनी फ्रांस और इटली के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाने पर रहा है। मध्य एवं पूर्वी यूरोप के साथ द्विपक्षीय संबंधों में वह ताजगी और रवानगी नहीं रही जो इन चार देशों के साथ थी लेकिन भारत अब मध्य एवं पूर्वी यूरोप के देशों के साथ अपनी निकटता बढ़ी रहा है। पोलैंड और यूक्रेन दोनों मध्य एवं पूर्वी यूरोप के बड़े देश हैं। 1991 में सोवियत रूस से टूटकर जो 15 देश अलग हुए उनमें से एक यूक्रेन भी है। 1992 में इस देश के साथ भारत के राजनयिक संबंध स्थापित हुए।
युद्ध के बाद भारत-यूक्रेन के व्यापार में गिरावट
चूंकि रूस के साथ भारत की करीबी ज्यादा है इसलिए कीव के साथ मजबूत संबंध नई दिल्ली की प्राथमिकता में नहीं रहे। बावजूद इसके यूक्रेन के साथ भारत का कारोबार निराशाजनक नहीं रहा लेकिन युद्ध शुरू होने के बाद भारत और यूक्रेन का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ। साल 2021-22 में दोनों देशों के बीच 3.39 अरब डॉलर का कारोबार हुआ जो कि 2022-23 में घटकर 0.78 अरब डॉलर और 2023-24 में 0.71 अरब डॉलर तक पहुंच गया। युद्ध खत्म होने पर यूक्रेन को दोबारा खड़ा करने में भारत अपने लिए असीम संभावनाएं देख रहा है। खासकर रक्षा एवं व्यापार के क्षेत्र में दोनों देशों को एक दूसरे से फायदा मिल सकता है।
चीन के साथ रूस की बढ़ी करीबी
पीएम मोदी के इस यूक्रेन दौरे के बारे में कहा जा रहा है कि इससे रूस नाराज हो सकता है। वह पाकिस्तान और चीन के साथ नजदीकियां बढ़ा सकता है और इससे रूस-भारत की दोस्ती में दरार आ सकती है लेकिन ऐसा नहीं है। यह हम सभी ने देखा है कि यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद रूस और चीन एक दूसरे के ज्यादा करीब आए हैं। भारत और चीन दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते, यह बात रूस को पता है, फिर भी उसने बीजिंग के साथ अपने संबंध मजबूत किए। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत और रूस की दोस्ती पहले से कमजोर हुई या उसमें किसी तरह का उतार-चढ़ाव आया। जुलाई में पीएम मोदी रूस गए थे। पुतिन के साथ उनकी गर्मजोशी वही थी जो पहले थी।
भारत को अपनी अर्थव्यवस्था बढ़ानी है
कहने का मतलब है यह है कि देशों के आपसी संबंध ऐसे नहीं दरकते जब तक कि उनके व्यापक हितों और सुरक्षा को खतरा न हो। जैसे रूस की जरूरत उसे चीन के करीब लाई वैसे भारत की जरूरत उसे पोलैंड और यूक्रेन के पास लेकर गई है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद भारत रूस की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए उसे कई तरीके से मदद पहुंचाता रहा है। भारत को भी अपनी अर्थव्यवस्था की फिक्र करनी है। भारत और रूस जैसे बड़े देश इन बातों को समझते हैं। अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति कुछ इसी तरह से चलती है।
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