Gyanvapi Masjid Controversy: क्या अयोध्या की राह पर चल रहा ज्ञानवापी विवाद? 350 साल से चल रहे केस की पूरी जानकारी

Gyanvapi Masjid Controversy: ज्ञानवापी विवाद अयोध्या मामले की तरह सर्वे पर आकर टिक गया है। जिस तरह अयोध्या में सर्वे को अहम सबूत मानते हुए कोर्ट ने अयोध्या मामले को सुलझाया था। क्या ऐसे ही कोर्ट ज्ञानवापी मामले में भी ASI सर्वे को अहम मानकर फैसला सुनाएगी।

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क्या ASI के जरिए अयोध्या की तरह सुलझेगा ज्ञानवापी विवाद?

Gyanvapi Masjid Controversy: वाराणसी में जहां एक तरफ सावन मास को लेकर मंदिरों में भक्तों की धूम है तो वहीं दूसरी तरफ ज्ञानवापी को लेकर विवाद जारी है। ज्ञानवापी को कोई आदि विश्वेश्वर महादेव और श्रृंगार गौरी का मंदिर बता रहा है, तो कोई मस्जिद। करीब 350 सालों से इस मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है। साथ ही पिछले 104 सालों से कोर्ट में भी विवाद जारी है। मामले पर कानूनी प्रक्रिया के साथ सियासत भी तेज हो गई है। जहां एक तरफ बीजेपी और हिंदू संगठन सर्वे होने के बाद सच सामने आने की बात कह रहे। तो वहीं मुस्लिम पक्ष ज्ञानवापी को 600 साल पुराना बताते हुए सालों से परिसर में नमाज पढ़े जाने का हवाला दे रहा है

सीएम योगी के बयान ने दिया तूल

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मामला फिर गरमाता नजर आ रहा है। चुनाव में ये क्षेत्र इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वाराणसी प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र है। ऐसे में चुनाव में इस मुद्दे को लेकर खासी गहमागहमी रह सकती है। पिछले दिनों ज्ञानवापी पर सीएम योगी के बयान ने मामले को और तूल दे दिया है। सीएम योगी ने अपने बयान में कहा अगर आप ज्ञानवापी को मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा ही। एक तरफ सरकार के उच्च पदस्थ लोग इस मुद्दे पर पहले ही अपना बयान दे चुके हैं। तो वहीं विपक्ष मुद्दे से बचता नजर आ रहा है। ऐसे में 2024 के चुनाव में बीजेपी पूरी तरह से उस मुद्दे को भुनाने की तैयारी में है।

क्या है ज्ञानवापी विवाद?

कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था। जिसपर हिंदू पक्ष का दावा है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी। जिसे लेकर हिंदू पक्ष की तीन मुख्य मांगें है।
  1. पूरे ज्ञानवापी परिसर को काशी घोषित करना
  2. मस्जिद को ढहाकर परिसर में मुस्लिमों के आने पर लगे रोक
  3. परिसर में हिंदुओं को मंदिर का पुरनिर्माण की अनुमति दी जाए

कब से हुई शुरूआत?

ज्ञानवापी को लेकर पहला मुकदमा 1991 में वाराणसी कोर्ट में दाखिल किया गया था। याचिका में ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेशर ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय इस मामले के याचिकाकर्ता थे। 1993 में विवादित जगह पर वर्शिप एक्ट केस तहत स्टे लगा दिया गया। और यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। 2019 में मामला फिर सर्वे की मांग को लेकर अदालत पहुंचा लेकिन मुस्लिम पक्ष की याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस पर रोक लग गई। अगस्त 2021 में 5 महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन की मांग करते हुए वाराणसी कोर्ट में याचिका डाली। इसके बाद 2022 के अप्रैल में सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने और उसकी वीडियोग्राफ़ी के आदेश दे दिए। मुस्लिम पक्ष के विरोध के बीच सुनवाई जारी रही। और मामले को लेकर हाइकोर्ट ने सिविल कोर्ट के आदेश को आगे बढ़ाते हुए परिसर में सर्वे की अनुमति दे दी।

सर्वे की शुरूआत

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ASI) की टीम ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे की शुरुआत कर दी है। हाईकोर्ट की अनुमति के बाद आज सर्वे का दूसरा दिन है। कल के हुए सर्वे को लेकर हिंदू पक्ष के वकील के अनुसार, अबतक फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की गई है। सर्वे में 4 टीमें तैनात है। और नई टेक्नलॉजी के जरिए पूरे परिसर का सर्वे किया जा रहा है।

पहले दिन के सर्वे में क्या मिला?

सर्वे के पहले दिन ASI टीम का पूरा फोकस पश्चिमी दीवार पर रहा। सर्वे की 2 टीमें वहां मौजूद दीवारों की हर आकृति की बनावट को देख जानकारी दर्ज की। दीवारों पर बने एक दरवाजे को पत्थरों से बंद किया गया है। सर्वे टीम ने दरवाजे पर बने कलाकृतियों की भी जांच की। पूरे सर्वे के दौरान लगातार फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की गई। महत्वपूर्ण बात यह है की इस पूरे सर्वे के दौरान ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जा रहा है।

ज्ञानवापी का सर्वे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

दरअसल, जबसे ज्ञानवापी का मुद्दा उठा है, उसी समय से ये बात कहीं जा रही है की ज्ञानवापी मामला भी अयोध्या वाली राह पर आगे बढ़ रहा है। सर्वे की अनुमति ने इस बात को और भी पुख्ता कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वे पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही पूछा की हाई कोर्ट के आदेश में दखल क्यों देना चाहिए। अयोध्या मामले में भी ASI ने सर्वे किया था। सर्वे से क्या दिक्कत है, साथी ही सर्वे से ज्ञानवापी परिसर को ऐसा क्या नुकसान होगा, जो ठीक नहीं हो सकता? सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा, कि खुदाई न हो, यह सुनिश्चित किया जाए। सर्वे के बाद रिपोर्ट को सीलबंद रखा जाए।

अयोध्या के तर्ज पर ज्ञानवापी मामला

जिस तरह से ज्ञानवापी मामले में ASI की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है, बिल्कुल ऐसे ही अयोध्या मामले में भी ASI का सर्वे अहम माना गया था। मामले में अब जो सबके मन में सवाल उठ रहे है, वो ये है कि क्या ज्ञानवापी का मामला और अयोध्या मामला एक जैसा है? हालांकि, अयोध्या के मामले में मस्जिद बनी थी और इस मामले में मंदिर-मस्जिद दोनों ही बने हुए हैं। ज्ञानवापी में सारी चीजें एक दम अयोध्या जैसी हो रही है। अयोध्या में भी समतलीकरण के काम के दौरान हिंदू मंदिर एवं मूर्तियों के अवशेष मिले थे। वहां भी सर्वे के दौरान परिसर में त्रिशूल, फूल और कलश के निशान मिले थे। जिस तरह ज्ञानवापी में मलबे की जांच की बात कही जा रही है। उसी तरह अयोध्या में एक मलबे की जांच हुई थी जिसमें टूटा हुआ शिलालेख बरामद हुआ था। इस शिलालेख में इस बात का उल्लेख था, कि जहां बाबरी मस्जिद बनी थी, वहां 12 वीं शताब्दी का एक मंदिर था। ज्ञानवापी मामले में कोर्ट के आदेश पर पिछले साल तीन दिन तक सर्वे किया गया। जिसके बाद हिंदू पक्ष ने शिवलिंग मिलने का दावा किया था। दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है। इसको लेकर मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं है, बल्कि एक फव्वारा है। इसी तरह की संशय स्थिति तब बनी थी, जब समतलीकरण के दौरान अयोध्या में हिंदू मंदिर के अवशेष मिले थे। और उस वक्त भी अवशेष की जांच के लिए ASI सर्वे की मांग गई थी। ज्ञानवापी और अयोध्या को लेकर हिंदू पक्ष के वकील सुधीर त्रिपाठी ने कहा, कि जैसे अयोध्या में सर्वे के दौरान मंदिर होने के अवशेष मिले थे। वैसे ही ज्ञानवापी में भी सर्वे के दौरान मंदिर के अवशेष सामने आ रहे है।

क्या अयोध्या मामले की तरह सुलझेगा विवाद?

अयोध्या विवाद और ज्ञानवापी मामले में समानताएं है, लेकिन ज्ञानवापी मामला अयोध्या विवाद से अलग भी है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है, कि आजादी से पहले से अयोध्या मामले में कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। जिसके कारण ही उसे 1991 प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत छूट दी गई थी। लेकिन क्योंकि ज्ञानवापी का मामला 1991 में ही दायर किया गया था। जिसे लेकर पहले भी कोर्ट ने मामले स्टे लगाया था। इसलिए इस एक्ट के तहत अदालत में चुनौती मिलने की उम्मीद पूरी है।
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सोनाली ठाकुर author

मैं सोनाली ठाकुर टाइम्स नाउ नवभारत में बतौर सीनियर रिपोर्टर कार्यरत हूं। मेरी महिलाओं से जुड़े मुद्दों के साथ-साथ एंटरटेनमेंट और ऐतिहासिक मुद्दों पर भ...और देखें

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