पटेल किसके हैं? देश के पहले गृह मंत्री की विरासत पर छिड़ी जंग, कांग्रेस को क्यों याद आने लगे 'सरदार'

Sardar Patel : सरदार पटेल पर कांग्रेस के इस बयान को और ओबीसी पर राहुल गांधी के बयान की टाइमिंग को जोड़कर देखा जा रहा है और इसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। राहुल ने कहा क्या है, उसे भी जानना जरूरी है। राहुल गांधी ने मंगलवार को देश में कांग्रेस के कमजोर होने और चुनाव में खराब प्रदर्शन की वजह बताई। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक से कांग्रेस ने ओबीसी को नजरंदाज किया ।

Sardar Patel

देश के पहले गृह मंत्री थे सरदार पटेल।

Sardar Patel : देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल की विरासत पर कांग्रेस ने मजबूती से अपना दावा ठोका है। अहमदाबाद में अपने राष्ट्रीय अधिवेशन से एक दिन पहले पार्टी की विस्तारित कार्य समिति की बैठक में कांग्रेस ने कहा कि देश के प्रथम उप प्रधानमंत्री ‘हमारे सरदार’ हैं और पार्टी उनके बताए रास्ते पर चलते हुए सांप्रदायिकता, धार्मिक ध्रुवीकरण और विभाजन की राजनीतिक के खिलाफ संघर्ष करने के लिए कमर कस चुकी है। यही नहीं, कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस पर भी तीखा हमला बोला। पार्टी ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के रिश्तों को लेकर झूठ फैलाया गया, जबकि दोनों के बीच ‘अनोखी जुगलबंदी’थी। दोनों नेताओं ने महात्मा गांधी की अगुवाई में साथ मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी तथा राष्ट्र का निर्माण किया।

ओबीसी पर राहुल गांधी ने दिया बयान

पटेल पर कांग्रेस के इस बयान को और ओबीसी पर राहुल गांधी के बयान की टाइमिंग को जोड़कर देखा जा रहा है और इसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। राहुल ने कहा क्या है, उसे भी जानना जरूरी है। राहुल गांधी ने मंगलवार को देश में कांग्रेस के कमजोर होने और चुनाव में खराब प्रदर्शन की वजह बताई। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक से कांग्रेस ने ओबीसी को नजरंदाज किया और वह इससे दूर होती चली गई। इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी लगातार कमजोर हुई। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि कांग्रेस को यदि अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन अगर दोबारा हासिल करनी है तो उसे ओबीसी समुदाय को दोबारा अपने साथ जोड़ा होगा। खास बात यह है कि सरदार पटेल भी गुजरात के ओबीसी समुदाय से आते हैं।

पटेल को कमतर आंकती आई है कांग्रेस

ओबीसी के प्रति अचानक से उभरे कांग्रेस के इस प्रेम को जानकार सियासी मजबूरी मान रहे हैं। देश भर में ओबीसी समुदाय को साधने के लिए उसने पटेल पर एक बड़ा दांव चला है। ओबीसी समुदाय पटेल को एक बड़े नायक के रूप में देखता है। उसके मन में आज भी उनके लिए बहुत मान-सम्मान है। कांग्रेस शुरू से ही पटेल को नेहरू से कमतर आंकती और दिखाती आई है, उसने कभी भी खुलकर पटेल की तारीफ नहीं की लेकिन अब उसे लगता है कि पटेल को उनका वाजिब हक देने से वह ओबीसी के उस वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती है जो भाजपा और अन्य दलों के साथ है। भाजपा की राजनीतिक सफलता के पीछे ओबीसी की कितनी ताकत है, बीते लोकसभा और राज्यसभा चुनावों कांग्रेस को इस बात का अहसास हो चुका है। शायद उसे समझ में आ गया है कि यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे बड़े हिंदी राज्यों में ओबीसी को साधे बगैर उसकी हालत में सुधार नहीं होगा।

कई मुद्दों पर दोनों की राय अलग थी

कांग्रेस यह दिखाने और बताने की कोशिश कर रही है कि नेहरू और कांग्रेस के बीच कोई मतभेद नहीं था। दोनों एक पेज पर थे। दोनों के बीच ‘अनोखी जुगलबंदी’थी लेकिन क्या यह बात पूरी तरह से सही है। राजनीति के जानकार कांग्रेस की इस बात से पूरी तरह से सहमत नहीं होंगे। नेहरू और पटेल दोनों कांग्रेस के बड़े नेता थे, इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन क्या घरेलू और वैश्विक मुद्दों पर दोनों नेताओं की राय एक जैसी थी, जवाब होगा नहीं। ऐसे कई मुद्दे थे जिन पर नेहरू और पटेल के बीच असहमति और खुला मतभेद था। एक्सपर्ट और इतिहासकार अपनी किताबों में इस बात का जिक्र कर चुके हैं।

दोनों के नजरिए में था बड़ा अंतर

प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और अंतरराष्ट्रीयतावाद की ओर झुके हुए थे। वे एक आधुनिक, औद्योगीकृत और धर्मनिरपेक्ष भारत की कल्पना करते थे जो वैश्विक समाजवादी आंदोलनों से जुड़ा हो। जबकि पटेल व्यावहारिक थे। वे राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक कुशलता और आंतरिक स्थिरता को प्राथमिकता देते थे। उनका दृष्टिकोण भारतीय परंपराओं और यथार्थवाद पर आधारित था। धर्मनिरपेक्षता पर भी दोनों नेताओं की राय अलग-अलग थी। नेहरू धर्मनिरपेक्षता को पश्चिमी शैली में अपनाते थे और अक्सर अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति रखते थे, जिससे बहुसंख्यक वर्ग की नाराजगी भी हो जाती थी। वहीं पटेल व्यावहारिक धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखते थे, जहां धर्म और शासन अलग हों, लेकिन कानून व्यवस्था और राष्ट्रीय एकता सर्वोपरि हो।

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कश्मीर मुद्दे को यूएन में ले जाने के पक्ष में नहीं थे पटेल

देशी रियासतों के एकीकरण पर भी दोनों के विचार भिन्न थे। नेहरू जहां शांतिपूर्ण वार्ता और कूटनीति के पक्षधर थे। वहीं पटेल कूटनीति के साथ-साथ बल के प्रयोग से रियासतों का एकीकरण सुनिश्चित किया। उनके नेतृत्व में हैदराबाद, जूनागढ़ और अन्य 560 से अधिक रियासतें भारत में मिलीं। आरएसएस और हिंदू राष्ट्रवाद को नेहरू सांप्रदायिकता से जोड़ते थे। जबकि पटेल जिन्होंने गांधीजी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन बाद में उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी स्वयंसेवक दोषी नहीं हैं और शर्तों के साथ प्रतिबंध हटाया। विदेश नीति की अगर बात करें तो नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन के समर्थक थे और सोवियत संघ तथा चीन के करीब थे। तो वहीं पटेल चीन को लेकर सतर्क थे। उन्होंने नेहरू को चीन से खतरे के बारे में पहले ही चेतावनी दी थी, जो बाद में 1962 के युद्ध में सच साबित हुआ। पटेल नहीं चाहते थे कि भारत कश्मीर मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र में जाए। नेहरू दूरदर्शी और सैद्धांतिक थे, लेकिन अक्सर व्यवहारिकता से दूर समझे जाते थे। पटेल एक व्यावहारिक, परिणामोन्मुख और कुशल प्रशासक थे। उन्होंने संस्थाओं के निर्माण और शासन को प्राथमिकता दी।

कुल मिलाकर नेहरू और पटेल के बीच संबंधों में प्रेम और विरोध दोनों ही मौजूद थे। गांधीजी की उपस्थिति में उन्होंने साथ काम किया, लेकिन उनके दृष्टिकोण में भारी अंतर था। नेहरू की राय और नजरिया जहां आदर्शवाद पर आधारित होता था वहीं पटेल व्यावहारिक और यथार्थवादी थे। दोनों नेताओं के ये मतभेद स्वतंत्र भारत की राजनीति और विकास की दिशा को गहराई से प्रभावित करते हैं।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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