फंदों पर लटकीं बेटियां - धिक्कार है...वहशीपन की दास्तां पर शर्मसार तो हम सबको होना ही चाहिए

बेटी पिता के आंगन में खिला वो फूल है, जो कोमल और प्यारी है। लेकिन दुनिया की नजरें उसी फूल पर हैं। निगाहों में हवस लिए दुनिया की निगाहें इतनी पैनी हैं कि घड़ी-घड़ी उसके कपड़ों के अंदर तक झांक आती हैं। हमें शर्म आनी चाहिए... बेटियां ऐसी नजर को अच्छे से समझती भी हैं...

महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले लगातार बढ़ रहे

'बेटी को लेकर मैं बहुत सेंसिटिव हूं। उसको लेकर तो मैं अपने पति पर भी भरोसा नहीं कर सकती। मैं उनके साथ भी बेटी को नहीं छोड़ना चाहूंगी।' ये एक ऐसी मां का कथन है, जिनकी बेटी अभी 11 वर्ष की है और पति एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर हैं। लेकिन ये अविश्वास क्यों? साफ कर दूं कि यह अविश्वास उस मां का अपने पति को लेकर नहीं बल्कि पुरुषों को लेकर है। हो भी क्यों न, अखबारों के पन्ने रेप, मर्डर, छेड़छाड़ जैसी महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा की असंख्य घटनाओं से पटे पड़े हैं।

हमीरपुर की दिल तोड़ देने वाली घटना

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले की दो किशोरियों के साथ कानपुर के घाटमपुर में सामूहिक दुष्कर्म की घटना हुई। किशोरियों का अश्लील वीडियो भी बनाया गया, जिसके बाद दोनों ने ही कथिततौर पर आत्महत्या कर ली। अभी घर की दो मासूम बेटियों का जनाजा उठे एक हफ्ता ही हुआ था कि पिता ने भी जान दे दी। गांव में दबे स्वर चर्चा है कि सामूहिक दुष्कर्म के आरोपित भट्टा संचालकों का परिवार उन पर समझौते का दबाव बना रहा था और धमकी दे रहा था।

दो बेटियों की अर्थी उठा चुके पिता की आत्महत्या ने कई सवाल खड़े किए हैं। भले ही सामने से देखने पर आरोपितों की धमकी और दबाव इसका कारण नजर आता हो, लेकिन इसके लिए हमारा समाज भी जिम्मेदार है। समाज इसलिए, क्योंकि हम अपने बेटों को ऐसे संस्कार ही नहीं देते कि वह महिलाओं को सम्मान दें। यही नहीं, हमारा समाज दुष्कर्म पीड़ित को ही शक की निगाह से देखता है और उसका व उसके परिजनों का समाज में जीना मुश्किल कर देता है।

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