दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति, आप और बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश
Delhi Chunav: दिल्ली चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में कांग्रेस ने हाई-प्रोफाइल सीट पर बड़े चेहरे उतारे है। नई दिल्ली सीट विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है, जो शीला दीक्षित के बेटे और पूर्व सांसद हैं। कांग्रेस ने महिला कांग्रेस प्रमुख अलका लांबा को कालकाजी विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है।
आप और BJP के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश कर रही कांग्रेस
Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में कांग्रेस ने हाई-प्रोफाइल सीट पर बड़े चेहरे उतारे है। बड़े चेहरों की बदौलत चुनाव प्रचार तो रोचक हो गया है लेकिन जमीनी हकीकत इससे परे है, पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस के लिए यह राह बेहद कठिन है। 2013 के बाद से नई दिल्ली, कालकाजी और जंगपुरा जैसी प्रमुख सीटों पर कांग्रेस का वोट प्रतिशत कम हुआ है।
नई दिल्ली-कांग्रेस की खोई प्रतिष्ठा पाने की लड़ाई
नई दिल्ली सीट कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक रूप से बेहद अहम रही है। 2008 में शीला दीक्षित ने यहां से 39778 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी। लेकिन 2013 में अरविंद केजरीवाल के राजनीति में प्रवेश के बाद कांग्रेस का दबदबा खत्म हो गया। शीला दीक्षित को 2013 में केजरीवाल के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा, और कांग्रेस के वोट घटकर 18405 हो गये। 2020 के चुनावों में कांग्रेस को इस सीट पर महज 3220 वोट मिले, इस बार कांग्रेस ने संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है, जो शीला दीक्षित के बेटे और पूर्व सांसद हैं। संदीप आक्रामक प्रचार कर रहे हैं, लेकिन केजरीवाल की लोकप्रियता और आप के मजबूत संगठन और बीजेपी से प्रवेश वर्मा के सामने यह लड़ाई कठिन है।
कालकाजी: आतिशी के गढ़ में कांग्रेस की कमजोर स्थिति
कालकाजी सीट पर आप ने लगातार अपना दबदबा बढ़ाया है। 2013 में पार्टी ने यहां 28639 वोट हासिल किए थे, जो 2020 में बढ़कर 55897 हो गए। आतिशी, जो 2020 में पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ी थीं, ने अपने प्रभावशाली काम और शिक्षा क्षेत्र में योगदान के चलते बड़ी जीत दर्ज की। दूसरी ओर, कांग्रेस के वोट लगातार गिरते रहे। 2008 में कांग्रेस को 38360 वोट मिले थे, जो 2020 में घटकर केवल 4956 रह गए। इस बार कांग्रेस ने महिला कांग्रेस प्रमुख अलका लांबा को उतारा है। अलका का राजनीति में लंबा अनुभव है, लेकिन कमजोर संगठन और गिरे हुए जनाधार के चलते यह सीट कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
जंगपुरा: कांग्रेस के पूर्व गढ़ में अब आप और भाजपा का कब्जा
जंगपुरा एक और सीट है, जहां कांग्रेस ने कभी अपना दबदबा बनाया था। 1998 से 2008 के बीच कांग्रेस उम्मीदवार तरविंदर सिंह मारवाह ने तीन बार यहां जीत दर्ज की थी। लेकिन 2013 से स्थिति बदल गई। आप और भाजपा ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। 2013 में आप ने यहां 29701 वोट हासिल किए थे, जो 2020 में बढ़कर 45086 हो गए। भाजपा ने भी अपने वोटों में इजाफा किया और 2013 में 18978 से 2020 में 29070 तक पहुंच गई। इसके विपरीत कांग्रेस के वोट लगातार गिरते रहे और 2020 में 13565 पर सिमट गए। कांग्रेस ने इस बार पूर्व मेयर फरहाद सूरी को उतारा है, लेकिन उनके लिए भी यह मुकाबला आसान नहीं होगा।
आम आदमी पार्टी और भाजपा के मजबूत गढ़ों में सेंध लगाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। हालांकि, पार्टी के उम्मीदवार यदि जमीनी मुद्दों और स्थानीय भावनाओं को भुनाने में सफल होते हैं, तो यह उनके लिए एक नई शुरुआत हो सकती है।
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13 साल के राजनीतिक पत्रकारिता के अनुभव में मैंने राज्य की राजधानियों से लेकर देश की राजधानी तक सियासी हलचल को करीब से देखा है। प्लांट की गई बातें ख़बरे...और देखें
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