क्या बाबा साहेब अंबेडकर को नापसंद करते थे नेहरू? इन मुद्दों पर थी दोनों नेताओं की अलग राय
Nehru VS Ambedkar: देश के आजाद होने पर देश की पहली सरकार और मंत्रिमंडल का गठन हुआ। पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। कुछ दिनों के बाद पंडित नेहरू ने बीआर अंबेडकर को बुलाया और उन्हें अपनी कैबिनेट में शामिल होने के लिए कहा। नेहरू की कैबिनेट के ज्यादातर मंत्री कांगेसी थे। अंबेडकर कांग्रेस पार्टी से नहीं थे
नेहरू सरकार में मंत्री थे बीआर अंबेडकर।
Nehru VS Ambedkar: बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर का अपमान किसने किया, इसे लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में तकरार चल रही है। संसद से सड़क तक एक दूसरे को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश है। गुरुवार सुबह संसद परिसर में जो धक्का-मुक्की हुई, उसकी पृष्ठभूमि में अंबेडकर का यही कथित अपमान था। कांग्रेस का कहना है कि संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर राज्यसभा में चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर के बारे में जो टिप्पणी की उससे उनका अपमान हुआ। भाजपा की दलील है कि कांग्रेस गृह मंत्री के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है। बवाल बढ़ने पर खुद अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की और मामले को शांत करने का प्रयास किया। भाजपा की दलील है कि कांग्रेस वर्षों से अंबेडकर का अपमान करती आई है। उन्हें भारत रत्न नहीं दिया, उनका स्मारक नहीं बनवाया, उन पर कार्यक्रम नहीं किए। उन्हें नजरंदाज करती रही। भाजपा का दावा है कि ऐसा इसलिए था क्योंकि नेहरू उन्हें पसंद नहीं करते थे। नेहरू, अंबेडकर को कितना पसंद या नापसंद करते थे, यह बहस का विषय है लेकिन राजनीति के जानकार इतना जरूर कहते हैं कि दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों पर गतिरोध और टकराव था। आरक्षण, योजनाओं का लागू करने और विदेश नीति को लेकर नेहरू और अंबेडकर के विचार मिलते नहीं थे।
महात्मा गांधी के कहने पर कैबिनेट में आए अंबेडकर
देश के आजाद होने पर देश की पहली सरकार और मंत्रिमंडल का गठन हुआ। पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। कुछ दिनों के बाद पंडित नेहरू ने बीआर अंबेडकर को बुलाया और उन्हें अपनी कैबिनेट में शामिल होने के लिए कहा। नेहरू की कैबिनेट के ज्यादातर मंत्री कांगेसी थे। अंबेडकर कांग्रेस पार्टी से नहीं थे और न ही वे उनकी तरह उन विचारधाराओं और मूल्यों में विश्वास करते थे जैसा कि नेहरू और कांग्रेस के अन्य नेताओं का था। शुरुआत में कैबिनेट में अंबेडकर को न मिलने की एक वजह यह भी रही। नेहरू की पसंद में वह शामिल नहीं थे। यह महात्मा गांधी थे जिनका मानना था कि आजादी कांग्रेस को नहीं बल्कि देश को मिली है, इसलिए खासकर अंबेडकर जैसे दूसरी विचारधाराओं वाले लेकिन प्रतिभावान लोगों को भी सरकार में शामिल होने के लिए कहा जाना चाहिए।
कई मुद्दे पर थे दोनों नेताओं में मतभेद
नेहरू के कहने पर अंबेडकर उनकी कैबिनेट में तो शामिल हो गए लेकिन कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं से वैचारिक दूरी उनकी हमेशा बनी रही। एक्सपर्ट्स का मानना है कि जहां तक विचारधारा का सवाल था तो नेहरू और अंबेडकर एक दूसरे के ज्यादा विरोधी नहीं थे लेकिन खासकर जाति आधारित आरक्षण, हिंदू कानून, विदेश नीति को लागू करने को लेकर उनमें एक गतिरोध था। कश्मीर मुद्दे पर भी दोनों नेताओं के बीच मतभेद गहरे थे। बावजूद इसके नेहरू, अंबेडकर का काफी सम्मान करते थे। 1956 में अंबेडकर के निधन का समाचार सुनने पर नेहरू ने उन्हें श्रंद्धांजलि देते हुए लिखा कि 'भारतीय राजनीति में अंबेडकर बेहद विवादास्पद शख्सियत रहे हैं लेकिन उनकी प्रतिभा, योग्यता के बारे में कोई संदेह नहीं है।'
दो अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते थे नेहरू-अंबेडकर
नेहरू और अंबेडकर दो अलग-अलग और विपरीत पृष्ठभूमि से आते थे। नेहरू जहां एक कुलीन ब्राह्मण परिवार से आए थे तो अंबेडकर का जन्म एक दलित एवं गरीब परिवार में हुआ था। वह गरीबी का दंश झेलकर और संघर्षों के बाद यहां तक पहुंचे थे। छूआछूत, अगड़ा-पिछड़ा जैसी सामाजिक बुराइयों से उनका सामना बचपन में ही हुआ। अंग्रेजी संस्कृति वाली परवरिश की वजह से नेहरू के विचारों में धर्मनिरपेक्षता, बौद्धिकता, आधुनिकता पर जोर ज्यादा और जीवन के प्रति उनका एक रोमांसवादी नजरिया था। तो अंबेडकर जिन्होंने समाजिक असमानता को बहुत नजदीकी से महसूस किया था, ऐसे में उनके आदर्श एवं विचार वास्तविकता के ज्यादा करीब थे। नेहरू चाहते थे कि जाति व्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो लेकिन अंबेडकर का जोर इसे पूरी तरह से खत्म करने पर था।
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आरक्षण पर थे गंभीर मतभेद
आरक्षण को लेकर भी नेहरू और अंबेडकर के विचार पूरी तरह से भिन्न थे। अंबेडकर जहां एससी-एसटी को आरक्षण दिए जाने के पक्ष में थे तो नेहरू उनसे अलग सोच रखते थे। नेहरू मानते थे कि समाज के दबे-कुचले और हाशिए के लोगों को मदद मिलनी चाहिए लेकिन वह आरक्षण दिए जाने के खिलाफ थे। 1961 में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में नेहरू ने कहा कि 'अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को मदद की जरूरत है, उन्हें मदद दी जाए लेकिन मैं उन्हें किसी तरह का आरक्षण देना नापसंद करूंगा। खासकर यह आरक्षण सेवा में नहीं होना चाहिए। ऐसी कोई भी चीज जो अक्षमता और औसत दर्जे की चीजों को आगे बढ़ाए, उसका मैं कड़े रूप से विरोध करता हूं।' आरक्षण का मुद्दा ऐसा रहा जिस पर दोनों नेता अलग-अलग राय रखते आए। आरक्षण के अलावा नेहरू से अंबेडकर की नाराजगी उनके मुस्लिम तुष्टिकरण से भी रही। अंबेडकर को लगता था कि नेहरू मुस्लिमों की ज्यादा परवाह करते हैं। अंबेडकर कहते थे कि उन्हें मुस्लिमों को अधिकार देने से परहेज नहीं है लेकिन समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए भी उपाय एवं कार्यक्रम लागू होने चाहिए। अंबेडकर कहते थे मुस्लिमों से ज्यादा इन वर्गों के बारे में सोचने की जरूरत है।
हिंदू कोड बिल पास नहीं हो सका
अंबेडकर मानते थे कि देश को आगे बढ़ने में जाति व्यवस्था बहुत बड़ा अवरोधक है। उनका पूरा जोर लैंगिंक समानता और सामाजिक न्याय पर था। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इसे 1948 में पेश किया। इस बिल का मकसद हिंदू समाज में लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय स्थापित करना था। इसमें विवाह, तलाक, और विरासत से जुड़े मुद्दों को संबोधित किया गया लेकिन इस बिल के सामने आते ही देश भर में बवाल और हंगामा होने लगा। देश भर में धर्माचार्य और कट्टरपंथी सड़कों पर आ गए। कांग्रेस में भी इस बिल के विरोध में आवाज उठने लगी। विरोध के चलते यह बिल उस समय पास नहीं हो सका। बाद में अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल समेत अन्य मुद्दों को लेकर कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल पर नेहरू का समर्थन अंबेडकर था। लेकिन जब यह बिल संसद से पारित नहीं हो पाया तो अंबेडकर ने इसे नेहरू की एक असफलता के रूप में देखा। अंबेडकर चाहते थे कि नेहूरू इस विधेयक को पारित कराएं।
कश्मीर पर नेहरू की नीति को सही नहीं मानते थे
भारत की विदेश नीति को लेकर भी नेहरू और अंबेडकर के बीच मतभेद थे। अंबेडकर कहते थे भारत के रिश्ते केवल रूस और चीन के साथ ही प्रगाढ़ नहीं होने चाहिए बल्कि पश्चिम के अमेरिकी जैसे जितने भी ताकतवर देश हैं, उनके साथ भी भारत को अपने रिश्ते मजबूत करने चाहिए। भारत के तीव्र विकास के लिए वह पश्चिमी देशों का साथ होना जरूरी मानते थे। अंबेडकर मानते थे कि रूस और चीन के साथ करीबी बढ़ाकर नेहरू ने पश्चिमी देशों से खुद को दूर कर लिया है। अंबेडकर आरोप लगाया करते थे कि नेहरू दुनिया की समस्याओं को सुलझाने में ज्यादा दिलचस्पी लेते थे। यही नहीं, कश्मीर पर नेहरू की नीति का भी अंबेडकर ने विरोध किया। 1951 के अपने एक इंटरव्यू में अंबेडकर ने कहा कि कश्मीर में जनमत संग्रह भारत के खिलाफ जा सकता है। यही नहीं अनुच्छेद 370 के बारे में उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम देश की संप्रभुता और एकता के लिए चुनौती बनेगा।
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