Explained: क्या देश में मुस्लिमों के होते हैं ज्यादा बच्चे, क्या कहता है सरकारी आंकड़ा?
देश में धार्मिक समूहों के बारे में कोई विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि इससे कुछ डेटा मौजूद हैं जो इसका अनुमान देते हैं कि मुस्लिम की आबादी में कितनी बढ़ोतरी हुई है।
देश में मुस्मिमों की आबादी
Muslim Population: 21 अप्रैल को राजस्थान में एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान से मुस्लिमों की आबादी को लेकर फिर चर्चा छिड़ गई है। इस रैली में पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस का इरादा लोगों की संपत्ति को घुसपैठियों और जिनके अधिक बच्चे हैं को बांटने का है। पीएम ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 2006 के उस बयान का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है। पीएम मोदी के इस बयान को कांग्रेस ने मुस्लिमों के खिलाफ माना और इसे लेकर समूचा विपक्ष खास तौर पर कांग्रेस पीएम पर हमलावर हो उठी। आइए पुराने सरकारी आंकड़े के आधार पर जानते हैं कि देश में क्या वाकई मुस्लिमों के अधिक बच्चे हैं।
जनगणना के आंकड़े अब 13 साल पुराने
धार्मिक समूहों पर जनगणना के आंकड़े अब 13 साल पुराने हैं और धार्मिक समूहों के बारे में कोई विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि इससे कुछ डेटा मौजूद हैं जो इसका अनुमान देते हैं कि मुस्लिम की आबादी में कितनी बढ़ोतरी हुई है।
भारत की मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि
2011 की जनगणना में मुसलमानों की जनसंख्या 17.22 करोड़ थी, जो उस समय भारत की जनसंख्या 121.08 करोड़ का 14.2% थी।
पिछली जनगणना (2001) में मुसलमानों की जनसंख्या 13.81 करोड़ थी, जो उस समय भारत की जनसंख्या (102.8 करोड़) का 13.43% थी।
2001 से 2011 के बीच मुसलमानों की जनसंख्या में 24.69% की वृद्धि हुई। यह भारत के इतिहास में मुसलमानों की जनसंख्या में सबसे धीमी वृद्धि थी।
1991 से 2001 के बीच भारत की मुस्लिम जनसंख्या में 29.49% की वृद्धि हुई।
धार्मिक समूहों का औसत घरेलू आकार
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 68वें दौर (जुलाई 2011-जून 2012) के आंकड़ों के अनुसार, प्रमुख धार्मिक समूहों का औसत घरेलू आकार इस प्रकार था। यह आंकड़ा बताता है कि मुस्लिमों औसत घरेलू आकार सबसे अधिक है।
हिंदू - 4.3
इस्लाम - 5
ईसाई धर्म - 3.9
सिख धर्म - 4.7
अन्य - 4.1
औसत - 4.3
श्रम बल भागीदारी दर और मुसलमानों के बीच बेरोजगारी अनुपात
मुसलमानों के लिए श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) और श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) सभी धार्मिक समूहों में सबसे कम है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के अनुसार, यह एकमात्र धार्मिक समूह है जिसका एलएफपीआर और डब्ल्यूपीआर गिर रहा है। हालांकि, मुसलमानों के बीच बेरोजगारी दर (UR) अखिल भारतीय संख्या से कम है।
एलएफपीआर को जनसंख्या में श्रम बल (यानी काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या उपलब्ध) व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है। WPR को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है। यूआर श्रम बल में शामिल व्यक्तियों में से बेरोजगार व्यक्तियों का प्रतिशत है।
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