बांग्लादेश को एक और मौका देना चाहता है भारत? बैंकॉक में PM मोदी से मो. यूनुस की हुई मुलाकात के मायने समझिए
PM Modi-Md. Yunus Meeting: यह मुलाकात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसी राय थी कि वर्तमान हालात और बांग्लादेश के रवैये को देखते हुए शायद ही पीएम मोदी, यूनुस से मिलने के लिए राजी हों..पीएम मोदी बिम्स्टेक सम्मेलन में शामिल होने के लिए गुरुवार को थाईलैंड पहुंचे। बिम्स्टेक का पूरा नाम बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन है।

बैंकॉक में पीएम मोदी-मोहम्मद यूनुस की मुलाकात।
PM Modi-Md. Yunus Meeting: बांग्लादेश और भारत के रिश्ते पटरी पर नहीं हैं उसमें तल्खी और कड़वाहट है। इस तल्खी और कड़वाहट के पीछे भारत विरोधी भावनाओं और बांग्लादेश के गतिविधियों की एक लंबी श्रृंखला है। यह बात सभी को पता है कि बीते पांच अगस्त को बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ और इस तख्तापलट के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा। हसीना ने भारत में शरण ली। इसके बाद आठ अगस्त को बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का गठन हुआ। इस अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार न्यूयॉर्क से पैराशूट से उतारे गए नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस बनाए गए। अंतरिम सरकार के मुखिया यूनूस ही क्यों बने? यह एक अलग चर्चा का विषय है। यहां हम बात शुक्रवार को बैंकॉक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोहम्मद यूनुस की हुई मुलाकात के बारे में करेंगे।
बिम्स्टेक सम्मेलन में शरीक हुए पीएम मोदीयह मुलाकात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसी राय थी कि वर्तमान हालात और बांग्लादेश के रवैये को देखते हुए शायद ही पीएम मोदी, यूनुस से मिलने के लिए राजी हों। पीएम मोदी बिम्स्टेक सम्मेलन में शामिल होने के लिए गुरुवार को थाईलैंड पहुंचे। बिम्स्टेक का पूरा नाम बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन है। गुरुवार रात बिम्स्टेक नेता जब रात्रि भोज के लिए बैठे थे तो उस समय पीएम मोदी के बगल में यूनुस भी थे। इस तस्वीर के सामने आने के बाद इस बात की अटकलें लगने लगीं कि हो सकता है कि शुक्रवार को दोनों नेताओं के बीच एक औपचारिक और शिष्टमंडल स्तर की बैठक और बातचीत हो जाए। यह अटकल सही साबित हुई। शुक्रवार को दोनों नेता मिले और शिष्टमंडल स्तर की बैठक भी हुई।
बीते पांच अगस्त को बांग्लादेश में हुआ तख्तापलट
बांग्लादेश में पांच अगस्त के बाद हिंदू सहित अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जिस तरह की लगातार हिंसा हुई, जिस तरह से उन्हें निशाना बनाया गया और बांग्लादेश के मंत्रियों, मजहबी, कट्टर नेताओं ने जिस तरह से भारत के खिलाफ जहर उगला। उससे दोनों देशों के रिश्ते पटरी से उतरते चले गए। खुद मोहम्मद यूनुस ने एक बार नहीं बल्कि कई बार भारत विरोधी बयान दिया। एक अंतरिम सरकार के मुखिया के तौर पर भारतीय हितों और उसकी रणनीतिक स्थिति को चुनौती देने के लिए कुछ न कुछ करते रहे। बांग्लादेश की इस अंतरिम सरकार और उसके मंत्रियों, नेताओं की इन हरकतों पर भारत सरकार ने कोई तीखा और जवाबी पलटवार नहीं किया। वह अपने इस पड़ोसी देश के कारनामे देखती रही। हां, पीएम मोदी ने लाल किले के प्राचीर से और विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश से हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बार-बार अपील की। हमलों में जब कमी नहीं आई तो विदेश सचिव ने ढाका का दौरा किया लेकिन भारत की इन अपीलों को यूनुस सरकार ने एक तरह से नजरंदाज करती रही। इस दौरान अल्पसंख्यकों पर हमले और अत्याचार होते रहे।
यूनुस ने पाकिस्तान के साथ मेलजोल बढ़ाया
इसका असर यह हुआ कि भारत और बांग्लादेश के रिश्ते पटरी से उतरते चले गए। बाइडेन के प्यारे मोहम्मद यूनुस ने खुद भी रिश्ते को संभालने की कोशिश नहीं की। वह उस पाकिस्तान के साथ दोस्ती करने में जुट गए जिसने 1971 के युद्ध में लाखों बांग्लादेशी मुसलमानों को मौत के घाट उतारा और उनकी बहू-बेटियों की अस्मत लूटी। वह मुक्ति वाहिनी की लड़ाई और बांग्लादेश को बनाने में भारत के योगदान को भूल गए। पाकिस्तान के साथ वह इस तरह जुगलबंदी करने लगे जैसे कि मानों कब से दोनों के बीच गहरी दोस्ती रही हो। भारतीय हितों के खिलाफ जाकर यूनुस ने पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के अफसरों को अपने यहां बुलाया, दावत दिया और उस चिकेन नेक की ओर दौरा कराया जो रणनीतिक और सामरिक लिहाज से भारत के लिए अत्यंत संवेदनशील है। इस बीच, पाकिस्तानी मिसाइलें, तुर्किये के ड्रोन भारतीय सीमा पर तैनात करने की रिपोर्टों सामने आती रहीं। जाहिर ये सारी हरकतें यूनुस जानबूझकर करते रहे। वह इतने भी नासमझार नहीं हैं कि उन्हें पता नहीं है कि उनकी ये सारी गतिविधियां नई दिल्ली पसंद नहीं करेगी। बावजूद इसके वह भारत को चिढ़ाने में लगे रहे।
चीन जाकर दिया भारत विरोधी बयान
यूनुस को इतने से भी मन नहीं भरा तो वह चीन चले गए। बीजिंग जाकर उन्होंने तो एक तरह से सीमा लांघ दी। यूनुस ने भारतीय मामलों में दखल देने वाला अत्ंयत भड़काऊ बयान दिया। उन्होंने चीन से कहा कि भारत के सात राज्य जिन्हें सेवेन सिस्टर्स कहा जाता है, वे लैंडलॉक्ड हैं और इनकी समुद्र तक पहुंच नहीं है। उन्होंने कहा कि चिकन नेक भारत की कमजोर कड़ी है। यूनुस ने चीन को बांग्लादेश में निवेश करने का न्योता दिया। उन्होंने कहा कि चीन को बांग्लादेश के बंदरगाहों और उसके यहां अपने निवेश को बढ़ाना चाहिए। यही नहीं, एक रिपोर्ट में तो यह भी दावा किया गया है कि यूनुस ने अपने यहां चीन को एयरबेस बनाने के लिए अपनी रजामंदी दी है। यानी कि यूनुस उन दो देशों के साथ गलबहियां कर रहे हैं जो स्थायी रूप से भारत के दुश्मन देश हैं। ये सब करने के बावजूद वह चाहते हैं कि भारत उन्हें तवज्जो दे। प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी यह मुलाकात ऐसे नहीं हुई है। इस मुलाकात के लिए मोहम्मद यूनुस छटपटा रहे थे। मार्च महीने में ही उनके विदेश मंत्रालय ने बैंकॉक में इस मुलाकात के लिए भारत सरकार के पास औपचारिक अनुरोध भेजा था। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह भारतीय विदेश मंत्रालय से चाहता है कि वह बैंकॉक में यूनुस की कम से कम एक मुलाकात पीएम मोदी के साथ करा दे।
एक मौका देना चाहता है भारत?
हो सकता है कि यह मुलाकात बहुत हद तक भारतीयों को पसंद नहीं आई हो। लोग इस मुलाकात पर सवाल भी उठाएंगे। लोगों की राय हो सकती है कि भारतीय पीएम को यूनुस से नहीं मिलना चाहिए था लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि भारत एक जिम्मेदार और बड़ा देश है। वह बांग्लादेश और यूनुस की तरह ओछी हरकतें नहीं कर सकता। दूसरा जियोपॉलिटिक्स में फैसले पसंद और नापसंद के आधार पर नहीं बल्कि व्यापक रणनीतिक नफे-नुकसान और हितों को देखते हुए लिए जाते हैं। हो न हो इस मुलाकात के पीछे बांग्लादेश को एक और मौका देने की भारत की भावना काम कर रही हो।
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