क्या नीतीश कुमार को लगने लगा है मुस्लिम वोटर अब उनके साथ नहीं? पिछली बार एक भी मुसलमान उम्मीदवार नहीं जीता
Waqf Bill and Nitish Kumar : नीतीश कुमार को मन ही मन पता है कि एनडीए के साथ रहने पर मुस्लिम वोट उन्हें नहीं मिलने वाला। साथ ही नीतीश अपनी राजनीति के अंतिम दौर में चल रहे हैं ऐसे में भाजपा के साथ रहना उनकी मजबूरी है तो हिंदू वोटरों में पिछड़ा, अति पिछड़ा, महिला वोटरों को साधने के लिए बीजेपी को भी उन्हें साथ रखना जरूरी है।

बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होंगे।
Waqf Bill and Nitish Kumar : वक्फ संशोधन विधेयक -2025 के संसद से पास हो जाने के बाद यह कानून की शक्ल अख्तियार कर चुका है।अब यह वक्फ की संपत्तियों, उसके कामकाज पर लागू होगा। इसके विरोध में पहले से लामबंद विपक्ष संसद में अपनी लड़ाई हारने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। विपक्ष को लगता है कि संसद में भले ही वह हार गया हो लेकिन कोर्ट और जनता की अदालत में उसके लिए एक मौका है। खासकर सड़क पर इस विधेयक के खिलाफ उसकी जोर-अजमाइश जारी है। बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए उसने मोर्चेबंदी तेज कर दी है। करीब आठ महीने बाद अक्टूबर-नवंबर में हिंदी बेल्ट के इस राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में वक्फ बिल एक बड़ा सियासी मुद्दा बन गया है।
बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 18 प्रतिशत
चूंकि बिहार में मुस्लिमों की आबादी 17-18 प्रतिशत के करीब है और राज्य में विधानसभा की लगभग 60 सीटों पर इस समुदाय का दबदबा है। ऐसे में कांग्रेस, राजद और महागठबंधन के अन्य दल इस विधेयक को मुस्लिम धर्म के खिलाफ बताकर मुसलमान वोटरों में अपनी ज्यादा से ज्यादा पैठ बनाना चाहते हैं। यानी वक्फ विधेयक ऐसा सियासी पिच बन गया है जिस पर एनडीए बनाम इंडिया का मैच चलता रहेगा। भाजपा, जदयू, राजद, कांग्रेस सभी दल खुलकर इस पिच पर खेलेंगे। संसद में वक्फ बिल का समर्थन करने पर नीतीश कुमार कांग्रेस, राजद, एआईएमआईएम सहित विपक्षी दलों के बुरी तरह निशाने पर हैं। इस बिल को पारित होने के लिए विपक्षी दल भाजपा से ज्यादा नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जद-यू को ज्यादा कसूरवार ठहरा रहे हैं।
नीतीश को कसूरवार मान रहा विपक्ष
इन दलों का कहना है कि मुस्लिमों खासकर पसमंदा मुसलमानों की राजनीति और खुद को सेक्युलर बताने वाले नीतीश यदि इस बिल का समर्थन करने से पीछे हट जाते तो यह विधेयक पारित नहीं हो पाता। कांग्रेस, राजद यह बता रहे हैं कि बिल पारित होने के लिए असली विलेन नीतीश हैं न कि भाजपा। यानी नीतीश को खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है। यह बात सही है कि नीतीश कुमार की नीतियों और योजनाओं के चलते मुस्लिमों खासकर पिछड़े और पसमंदा मुस्लिमों का एक तबका जद-यू के साथ रहा है और उसे वोट देता आया है। वक्फ बिल और नीतीश कुमार को लेकर विपक्ष जो अपना नरेटिव चला रहा है उसमें यदि वह सफल हो जाता है तो हो सकता है कि चुनाव में मुस्लिम वोटर जद-यू से खिसककर पूरी तरह से राजद के साथ हो जाएं।
राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं नीतीश
जाहिर है कि ऐसा होने पर जद-यू का वोट बैंक कमजोर होगा लेकिन सवाल है कि वक्फ बिल पर अपने इस स्टैंड के नफा-नुकसान को क्या नीतीश ने देखा और परखा नहीं होगा? बिहार की राजनीति में नीतीश एक मझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। वह कोई भी दांव ऐसे नहीं चलते। तो क्या जेडीयू यह मान चुकी है कि मुस्लिम तबके का वोट उन्हें नहीं आने वाला। यह वोट बैंक राजद के साथ ही जाएगा। दूसरा या तो उन्हें भरोसा है कि मुस्लिम विपक्ष के बहकावे में नहीं आएंगे। जद-यू के साथ रहने वाले मुस्लिम मतदाता उसके साथ ही रहेंगे।
जद-यू से कई मुस्लिम नेताओं ने दिया इस्तीफा
हालांकि, बिल के समर्थन पर जद-यू का जो स्टैंड है उसे भी जानना जरूरी है। जनता दल यूनाइटेड के नेता राजीव रंजन का कहना है कि इस बिल को लेकर कई भ्रांतियां हैं और इसे लेकर विपक्षी दलों ने दुष्प्रचार किया है। यह विधेयक जब कानून की शक्ल लेकर धरातल पर आएगा तो कई तरह के भ्रम का निवारण स्वत: हो जाएगा। राजीव रंजन की बात अपनी जगह ठीक हो सकती है लेकिन जद-यू से मुस्लिम नेताओं के इस्तीफे की जिस तरह से झड़ी लगी है। वह पार्टी में एक दूसरे संकट और चुनौती की तरफ इशारा करता है।
2010 में मुसलमानों का अच्छा समर्थन मिला
रिपोर्टों के मुताबिक जद-यू के 5 बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। अन्य जिलों में भी मुस्लिम पदाधिकारी पार्टी छोड़ रहे हैं। इस पूरे मामले पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि 2005 में मुस्लिमों का कुछ वोट नीतीश को मिला था, उसके बाद नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए बहुत सारे काम किए। करीब 6 हजार कब्रिस्तान की घेराबंदी करवाई। इससे मुस्लिम प्रभावित हुए और 2010 में मुसलमानों का अच्छा समर्थन मिला। 2015 में वह आरजेडी के साथ महागठबंधन में थे लेकिन 2020 में मुस्लिम वोट उन्हें नहीं मिला। चुनाव में जदयू ने 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।
फिलहाल एनडीए मजबूत स्थिति में
नीतीश कुमार को मन ही मन पता है कि एनडीए के साथ रहने पर मुस्लिम वोट उन्हें नहीं मिलने वाला। साथ ही नीतीश अपनी राजनीति के अंतिम दौर में चल रहे हैं ऐसे में भाजपा के साथ रहना उनकी मजबूरी है। तो हिंदू वोटरों में पिछड़ा, अति पिछड़ा, महिला वोटरों को साधने के लिए बीजेपी को भी उन्हें साथ रखना जरूरी है। चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए में साथ है। तो जातीय ध्रुवीकरण के हिसाब से अगर MY समीकरण को छोड़ भी दिया जाए तो एनडीए मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहा है। दूसरा इस बिल के जरिए भाजपा अपना सियासी दांव साध रही है। भगवा पार्टी मुस्लिम वोटों को अपने लिए हमेंशा नहीं मानकर चलती है और उसकी रणनीति मुस्लिम वोटों के विभाजन की रहती है। वफ्फ संसोधन बिल से वह गरीब और पसमांदा मुस्लिम को अपने साथ लाने की कोशिश में जुटी है। भाजपा इसे भुनाने, पसमांदा मुस्लिम और अगड़ी जाति के मुस्लिम को तोड़ने की राजनीति करेगी। हिंदू वोटरों को एकजुट करने और मुस्लिम वोटों के विभाजन की राजनीति में भाजपा यदि सफल होती है तो बिहार ही नहीं वह कई राज्यों में उसे इसका लाभ मिल सकता है।
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बिहार में होगी 'अग्निपरीक्षा'
बहरहाल, सेक्युलर राजनीति करने वाले नीतीश और चंद्रबाबू को वक्फ बिल पर अपने साथ लाकर भाजपा ने अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया है। फिलहाल वह इंडिया ब्लॉक से एक कदम आगे दिख रही है लेकिन वक्फ बिल पर गरमाई सियासत और राजनीतिक बवंडर अभी कई करवट लेगा और बिहार चुनाव में इस बिल पर एनडीए और इंडिया ब्लाक दोनों का टेस्ट होगा।
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