क्या रूस को सीरिया में उलझाना चाहता है अमेरिका? असद के खिलाफ अचानक हुए विद्रोह की इनसाइड स्टोरी समझिए

Syria Crisis: सवाल है कि अचानक से सीरिया में सोए हुए विद्रोही गुट अचानक से जाग कैसे गए। असद की सेना को पीछे खदेड़ते हुए सबसे बड़े शहर अलेप्पो को अपने कब्जे में ले लिया। सीरिया के दूसरे बड़े शहर हमा पर भी वे धावा बोल चुके हैं। जैसी रिपोर्टें आई हैं उससे तो यही पता चलता है कि यह शहर भी मिलिशिया और विद्रोही गुटों के पास आ जाएगा।

vladirmir Putin

सीरिया में असद की सेना पर भारी पड़ रहे विद्रोही गुट।

Syria Crisis: मध्य पूर्व के एक और देश सीरिया में अचानक से हुए उथल-पुथल ने दुनिया को चौंका दिया है। विद्रोही गुटों ने जिस तेजी के साथ सीरिया के सबसे बड़े शहर अलेप्पो और दूसरे शहरों को अपने कब्जे में लिया। उसने राष्ट्रपति बशर अल असद को देश छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया। असद भागकर मास्को पहुंच गए। वह व्लादिमीर पुतिन से मदद की गुहार लगा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सीरिया में हमले या विद्रोही गुटों का असद की सेना के साथ भिड़ंत नहीं हो रही थी, लेकिन ये टकराव कभी-कभी और छोटे पैमाने पर होते थे। मोटे तौर पर सीरिया में एक तरीके की शांति थी लेकिन अचानक से दबी हुई यह चिंगारी भड़क क्यों गई तो इसकी भी एक इन साइड स्टोरी है।

2015 से रूस ने सीरिया में दखल देना शुरू किया

कुछ दिनों पहले इजरायल ने सीरिया में हवाई हमले किए। ये बात आई-गई हो गई लेकिन इसके तार कहीं न कहीं मौजूदा बगावत से जुड़े हैं। सीरिया एक शिया बहुल देश है। यहां के राष्ट्रपति असद रूस और ईरान के आशीर्वाद से शासन करते आ रहे थे। इससे पहले साल 2011 में उनके खिलाफ बगावत हुई और विद्रोही गुटों ने सीरिया के बड़े हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया। उस समय भी असद का तख्तापलट करने की कोशिश हुई लेकिन विद्रोही दमिश्क तक नहीं पहुंच पाए। असद की सेना ने उनका कड़ा मुकाबला किया। तीन चार साल तक असद की सेना और विद्रोही गुटों के बीच लड़ाई चलती रही लेकिन पुतिन के आदेश पर 2015 से रूस की सेना ने सीरिया में सीधा दखल देना और हवाई हमले करने शुरू किए जिसके बाद सूरत बदल गई। यहां एक और बात का जिक्र करना जरूरी है। असद के साथ तो रूस और ईरान हैं लेकिन सीरिया के विद्रोही गुटों को हथियार, पैसा और लड़ाई जारी रखने के लिए जितने भी लॉजिस्टिक होते हैं, उसे कौन दे रहा है। तो इसका जवाब है तुर्किये और अमेरिका। तुर्किये लंबे समय से सीरिया के विद्रोही गुटों को हथियार और पैसा देता आ रहा है। 2020 में तुर्किये और रूस के बीच सीजफायर हो गया। इसके बाद सीरिया के ज्यादातर इलाकों पर असद की हुकूमत चलने लगी।

हयात तहरीर अल शाम की मदद कर रहा तुर्किये

सवाल है कि अचानक से सीरिया में सोए हुए विद्रोही गुट अचानक से जाग कैसे गए। असद की सेना को पीछे खदेड़ते हुए सबसे बड़े शहर अलेप्पो को अपने कब्जे में ले लिया। सीरिया के दूसरे बड़े शहर हमा पर भी वे धावा बोल चुके हैं। जैसी रिपोर्टें आई हैं उससे तो यही पता चलता है कि यह शहर भी मिलिशिया और विद्रोही गुटों के पास आ जाएगा। किसी भी सेना से टकराने के लिए बख्तर बंद गाड़ियों, घातक हथियार, गोला-बारूद, तरह-तरह के लॉन्चर्स और मिसाइलों की जरूरत होती है, जाहिर है कि युद्ध लड़ने की सारी सामग्री तुर्किये से मिल रही हैं। तुर्की नाटो का सदस्य देश है और नाटो का मुखिया अमेरिका है। बिना उसके कहे या इशारे के नाटो का कोई देश दुनिया में कहीं भी इस तरह के पचड़े और टकराव में नहीं कूदेगा। लेकिन तुर्की विद्रोही गुट हयात तहरीर अल शाम यानी HTS की मदद कर रहा है। एचटीएस एक समय अल कायदा का ही एक धड़ा था। इसके अलावा और भी छोटे-छोटे मिलिशिया गुट हैं जो एक साथ मिलकर असद की सेना पर चढ़ाई कर रहे हैं। तो बात हो रही है अचानक से हुए इस हमले की। दरअसल, यूक्रेन ने जब रूस पर लंबी दूरी की अमेरिकी मिसाइल दागी तब से मामला दूसरा हो गया है।

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यूक्रेन में रूस को रोकना चाहता है अमेरिका

अपने इलाके में अमेरिकी मिसाइल गिरने के बाद पुतिन का पारा सांतवें आसमान पर है। यूक्रेन पर हमले तो हो ही रहे थे लेकिन इस हमले के बाद रूस राजधानी कीव और अन्य इलाकों में ड्रोन, मिसाइलों और अपनी नई हाइपरसोनिक IRBM मिसाइल ओरेश्निक से हमला किया। यूक्रेन पर रूसी हमले काफी बढ़ गए हैं। इससे यूक्रेन को भारी नुकसान हो रहा है। रिपोर्टों में कहा गया कि रूसी हमलों की वजह से यूक्रेन के कई इलाके अंधेरे में चले गए हैं। यही नहीं, रूसी सेना कई इलाकों में आगे बढ़ रही है। ऐसे में अमेरिका और नाटो को लगा कि रूस को रोकना बेहद जरूरी है। हमले तभी कम होंगे जब रूस का ध्यान कहीं और लगे। उसका फोकस बंटे। इसलिए, सीरिया में रूस के लिए रातों रात एक नया मोर्चा तैयार कर दिया गया। पश्चिमी देश सीरिया के बहाने रूस और ईरान दोनों को जवाब दे रहे हैं।

सीरिया में रूस के ज्यादा सैनिक-संसाधन लगाने होंगे

सीरिया, रूस के लिए बहुत अहमियत रखता है। इस देश में रूस के नौसैनिक और एयर बेस हैं। नौसेनिक बेस पर उसके कई युद्धपोतों की तैनाती है। इनमें भी जो सबसे अहम रूसी सैन्य बेस हैं, उनमें से एक लटकिया का खमेमिम एयरबेस और दूसरा तारतूस का नेवल बेस है। यही नहीं बताया जाता है कि सीरिया में रूसी सेना की स्पेशल फोर्स और नियमित सैनिक हैं। इनकी तादाद करीब 60 हजार है। हमा जहां अभी लड़ाई चल रही है, वह तारतुस नेवल बेस से करीब 100 किलोमीटर दूर है। रिपोर्टें यह भी है कि विद्रोही गुटों के खतरों को देखते हुए पांच रूसी युद्धपोत वहां से निकल गए हैं। जाहिर है कि सीरिया में रूस के हित और असेट्स दोनों बड़े हैं। वह असद सरकार को गिरने नहीं देगा। रिपोर्टें यह भी हैं कि असद की सेना को मदद पहुंचाने के लिए ईरान, इराक और दूसरे खाड़ी देशों से मिलिशिया गुटों को भेज रहा है।

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विद्रोही गुटों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए रूसी एयरफोर्स भी उन पर हमले कर रही है। लेकिन सवाल है कि विद्रोही गुट जिसकी मदद तुर्की और अमेरिका कर रहे हैं, उनका मुकाबला करना पहले जितना आसान भी नहीं है। सीरिया के मिलिशिया गुटों पर भारी पड़ने और उन्हें पीछे धकेलने के लिए रूस को अपने ज्यादा सैनिक और संसाधन खर्च करने होंगे। अभी रूस का पूरा ध्यान यूक्रेन पर लगा हुआ है। ऐसे में अगर वह सीरिया पर फोकस अपना बढ़ाता है तो जाहिर तौर पर यूक्रेन पर से उसे अपना हाथ थोड़ा पीछे खींचना पड़ेगा।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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