राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बनें या कमला हैरिस, भारत सहित दुनिया पर होगा ये असर, 5 नवंबर को 'मेगा वोटिंग'
US Presidential Election 2024: दुनिया के लिए अगले चार साल कैसे होंगे, हैरिस और ट्रंप में से कौन राष्ट्रपति बनता है, यह इस पर निर्भर करेगा। पहले बात कमला हैरिस की करते हैं। कमला डेमोक्रेट हैं। अमेरिका में अभी डेमोक्रेट पार्टी ही सत्ता में है। यानी हैरिस के राष्ट्रपति बनने पर अमेरिकी सरकार की घरेलू और वैश्विक नीतियों बहुत बड़ा या आमूलचूल परिवर्तन देखने को नहीं मिलेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2024
US Presidential Election 2024: अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की वह घड़ी भी आ गई है जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था। पांच नवंबर यानी मंगलवार को करोड़ों अमेरिकी जनता मतदान करेगी और दोनों उम्मीदवारों डेमोक्रेट कमला हैरिस और रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी किस्मत पर अपना फैसला सुनाएगी। यह फैसला अमेरिका के लिए तो होगा ही, दुनिया भी इससे अछूती नहीं रहेगी। ट्रंप और हैरिस में से किसी को एक को राष्ट्रपति बनना है, राष्ट्रपति पद पर दोनों के मायने और असर घरेलू और वैश्विक दोनों मर्चों पर अलग-अलग होंगे। मुद्दों के इन दोनों मोर्चों पर अब तक अर्ली वोटिंग में 7.5 करोड़ मतदाता अपना फैसला सुना चुके है। बाकी अमेरिकी नागरिक आधिकारिक वोटिंग के दिन यानी पांच नवंबर को वोट डालने जा रहे हैं।
चुनाव नतीजों में दिलचस्पी सभी की
अमेरिका में 47वां राष्ट्रपति कौन बनता है, इसका व्यापक असर दुनिया पर देखने को मिलेगा। यही वजह है कि दुनिया भर का मीडिया और देश इस चुनाव पर बहुत करीबी नजर बनाए हुए हैं। सर्वे और रेटिंग में कौन आगे है, इसे जानने और समझने की दिलचस्पी शुरू से ही देखी गई। अमेरिका दुनिया का सबसे पुराने लोकतंत्र है और सबसे शक्तिशाली भी। हालांकि विगत दशकों में उसकी ताकत में थोड़ी कमी जरूर आई है लेकिन आज भी आर्थिक एवं सैन्य मोर्चे पर वह सबसे मजबूत है, इसमें कोई संदेह नहीं है। दुनिया की चलाने वाली यूएन, आईएमएफ, बड़े-बड़े एनजीओ सहित जितनी भी बड़ी संस्थाएं हैं, उन सभी पर उसकी पकड़ और प्रभाव है। बिना उसकी मर्जी और रजामंदी के किसी भी देश को काम करना मुश्किल है। वह आज भी दुनिया का चौधरी है।
अमेरिका में अभी डेमोक्रेट पार्टी सत्ता में
दुनिया के लिए अगले चार साल कैसे होंगे, हैरिस और ट्रंप में से कौन राष्ट्रपति बनता है, यह इस पर निर्भर करेगा। पहले बात कमला हैरिस की करते हैं। कमला डेमोक्रेट हैं। अमेरिका में अभी डेमोक्रेट पार्टी सत्ता में है। यानी हैरिस के राष्ट्रपति बनने पर अमेरिकी सरकार की घरेलू और वैश्विक नीतियों बहुत बड़ा या आमूलचूल परिवर्तन देखने को नहीं मिलेगा। हां, कमला ने जो चुनावी वादे किए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए वे आगे बढ़ेंगी जैसा कि उन्होंने माइग्रेशन, अबॉर्शन, टैक्स और युद्ध पर किया है। व्हाइट हाउस के प्रशासन और विदेश नीति में बहुत हद तक बाइडेन प्रशासन वाली नीतियां ही जारी रह सकती हैं। युद्ध के मोर्चे पर रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास-हिजबुल्ला-ईरान जंग और संघर्ष चलता रहेगा। यूक्रेन के लिए हैरिस आगे भी आर्थिक फंड का बंदोबस्त करती रहेंगी, इससे रूस-यूक्रेन युद्ध जारी रहेगा। इस जंग और संघर्ष के जो दुष्परिणाम दुनिया भुगत रही है, वे हैरिस के कार्यकाल में और तीव्र हो सकते हैं। हालांकि, चुनाव प्रचार के अंतिम घंटों में अरब एवं मुस्लिम वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए हैरिस ने गाजा में हमले रुकवाने का वादा तो जरूर किया है, लेकिन बेंजामिन नेतन्याहू उनकी बात सुनेंगे कि नहीं, यह बहुत कुछ उनके रुख पर निर्भर करेगा।
युद्ध रुकवाना बहुत बड़ी चुनौती
दुनिया के सामने सबसे बड़ी चिंता रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास, हिज्बुल्ला, ईरान संघर्ष ही है। यदि युद्ध और टकराव नहीं रुकता है तो इसका दायरा और बढ़ेगा, फिर दुनिया के सामने समस्याएं एवं चुनौतियां ज्यादा विकराल रूप में सामने आना शुरू हो जाएंगी। अमेरिका और उसके नेतृत्व वाले नाटो देशों की अभी की जो नीति है, वह रूस को चीन की तरफ ज्यादा धकेल रही है, यह खासकर भारत के लिए ठीक नहीं है। भारत के लिए एक बड़ा मसला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी की स्थायी सदस्यता भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा है। व्हाइट हाउस में ट्रंप हों या हैरिस, भारत चाहेगा कि यूएनएससी में सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने और भारत को स्थायी सदस्यता दिलाने में अमेरिका अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे।
ट्रंप कर सकते हैं बड़ा फैसला
व्हाइट हाउस में यदि ट्रंप की वापस होती है तो अमेरिकी प्रशासन की नीतियों में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। खासकर, युद्ध पर ट्रंप बड़ा और चौंकाने वाला फैसला करा सकते हैं, जैसा कि उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने और अरब देशों में शांति लाने का वादा किया है। युद्धों पर ट्रंप की राय भारतीय हितों के अनुकूल है। भारत भी युद्ध खत्म कराना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए लगातार प्रयास भी कर रहे हैं। ट्रंप अपने चुनाव प्रचार में कई बार भारत और पीएम मोदी की प्रशंसा कर चुके हैं लेकिन वीजा, अप्रवासन और कारोबार सहित कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ट्रंप भारत या किसी भी देश को रियायत देने के मूड में नहीं हैं। खासकर, भारतीय उत्पादों पर टैक्स बढ़ाने की बात वह कई बार कह चुके हैं। बावजूद, इसके जानकारों का मानना है कि ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय रिश्ते और रणनीतिक सहयोग एवं साझेदारी ज्यादा मजबूत होगी। ट्रंप के साथ मोदी की केमेस्ट्री भी अच्छी है। सितंबर 2019 में टेक्सास में आयोजित हाउडी मोडी कार्यक्रम आज भी लोगों के जेहन में ताजा है। दूसरा, ट्रंप भी मानते हैं कि अमेरिका और यूरोप के लिए चुनौती और दुश्मन रूस नहीं बल्कि चीन है। यह बहुत बड़ी बात है। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप अपने इस नजरिए के साथ यदि आगे बढ़े तो इससे पूरा जियोपॉलिटिक्स बदल जाएगा।
भारत के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकते हैं ट्रंप
जानकार मानते हैं कि कारोबार, वीजा पर ट्रंप की नीति दक्षिणपंथी रिपब्लकिन पार्टी की संरक्षणवादी नीतियों की वजह से है। भाजपा भी दक्षिणपंथी पार्टी है। ऐसे में माना जा रहा है कि ट्रंप अगर वापसी करते हैं तो कारोबार के मसले पर भारत और अमेरिका के बीच भले ही थोड़ी खींचतान रहे लेकिन बदले हुए वैश्विक परिदृश्य और सत्ता समीकरणों को देखते हुए ट्रंप भारत के लिए ज्यादा मुफीद साबित होंगे। लेकिन यह तभी संभव है जब ट्रंप चुनाव जीतें और सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से हो जाए। चुनाव नतीजों को ट्रंप यदि पिछली बार की तरह स्वीकार नहीं करते हैं और मामला 2020 की तरह कोर्ट तक जाता है तो कैपिटल हिल जैसा हिंसक नजारा एक बार फिर देखने को मिल सकता है। हो सकता है कि रिपब्लिकन समर्थक एक बार फिर उपद्रव और हिंसा पर उतारू हो जाएं। ऐसा होने पर दुनिया भर में एक गलत संदेश जाएगा क्योंकि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले देश में यदि चुनाव नतीजों को नहीं स्वीकारा जाएगा तो दुनिया क्या नजीर लेगी?
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