वो 'काली चुनावी इंक' जिसका निशान Voting की दिलाता है याद, क्या रूक पाई चुनावी धांधली!

भारत में लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच एक चीज ऐसी है जो हर किसी के जेहन में गाहे-बगाहे आ ही जाती है वो वोटिंग के दौरान लगाई जाने वाली स्याही (Election Ink) की जिसका निशान जल्दी नहीं जाता है।

चुनाव में इस्तेमाल होने वाली स्याही से जुड़ी कई जानी-अनजानी बातें

मुख्य बातें
  • पहले आम चुनाव में मतदाताओं की अंगुली में स्याही लगाने का कोई नियम नहीं था
  • 1962 के चुनाव में पहली बार हुआ था इस स्याही का इस्तेमाल
  • 2024 में अमिट स्याही के भारतीय चुनावों में इस्तेमाल को भी 62 साल हो जायेंगे

चुनाव में धांधली रोकने के लिए चुनाव आयोग (Election Commision) का भरोसा चुनाव के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली इंक (Election Ink) पर काफी हद तक है, दरअसल साल 1962 में एक अमिट स्याही के रूप में ऐसा टूल मिला जिसने चुनाव में होने वाली धांधलियों को काफी हद तक रोक दिया था और इसका इस्तेमाल साल दर साल होने वाले इलेक्शन में बदस्तूर होता आ रहा है, Voters यानी मतदाता को भी उंगली पर लगने वाली ये स्याही लंबे समय तक मतदान करने की याद दिलाती रहती है, आइए जानते हैं चुनावी इंक या स्याही से जुड़े कुछ रोचक बातें

क्या आप जानते हैं कि चुनाव में इस्तेमाल होने वाली स्याही से जुड़ी कई जानी-अनजानी बातें ऐसी हैं जिन्हें लोग नहीं जानते हैं जैसे-इसकी कीमत कितनी है और ये कहां से आती है इसे बनाता कौन है साथ ही ये कब से भारत में इस्तेमाल हो रही है।

बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव यानी साल 2019 में चुनाव आयोग ने स्याही की 26 लाख शीशियां खरीदी थीं, जिस पर 33 करोड़ रुपये का खर्च आया था, वहीं जानकारी के मुताबिक बताया जा रहा है कि इस दफा के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में इस्तेमाल होने वाली स्याही का खर्च पिछली बार की तुलना में 66 फीसदी बढ़ गया है यानी आयोग ने इस बार करीब 55 करोड़ रुपये से 26.55 लाख स्याही की शीशियां खरीदी हैं जिनका इस्तेमाल वोटिंग के दौरान होगा।

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