Explained: कौन हैं कुकी और मैतेई, दोनों कैसे बने एक दूजे के जानी दुश्मन? सारा विवाद समझिए

Kuki vs Meitei: मणिपुर के हालात फिलहाल कैसे हैं? इस सवाल का जवाब हर कोई जानना चाहता है, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि कुकी और मैतेई कौन हैं और इन दोनों समुदायों के बीच का असल विवाद क्या है? आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि दोनों में से कौन सियासी रूप से मजबूत हैं।

Meitei vs Kuki in Manipur

मणिपुर में कुकी और मैतेई विवाद की वजह समझिए।

Manipur Violence Explained: जातीय हिंसा की आग में मणिपुर को जलते सारे देश ने देखा। तमाम राजनीतिक ने इसका मुद्दा जमकर उठाया, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर कुकी और मैतेई समुदाय कौन हैं और इन दोनों के बीच आखिर असल विवाद क्या है। मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय- मैतेई है, जिसका सूबे की राजधानी इंफाल में प्रभुत्व माना जाता है। वहीं कुकी पहाड़ी जनजातियों में से एक है। आपको इस लेख में दोनों के बीच छिड़े विवाद से जुड़ी हर छोटे-बड़े पहलुओं से रूबरू करवाते हैं।

मैतेई समुदाय कौन है?

मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय मैतेई ही है, जिसका राज्य की राजधानी इंफाल में बड़ा प्रभुत्व माना जाता है। आमतौर पर इन्हें ही मणिपुरी कहा जाता है। मैतेई की जनसंख्या का जिक्र किया जाए, तो 2011 की जनगणना के अनुसार मणिपुर की आबादी का 64.60 फीसदी हिस्सा मणिपुरी यानी मैतेई का है। इसमें हैरान करने वाली बात ये है कि इतनी संख्या होने के बावजूद मणिपुर की भूमि के करीब 10 फीसदी हिस्से पर ही उनका कब्जा है। इस समुदाय के ज्यादातर लोग हिंदू हैं, जबकि कुकी और नागा मुख्य रूप से ईसाई हैं। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक साल हिंदुओं और ईसाइयों की मणिपुर में आबादी करीब 41 फीसदी है।

कुकी समुदाय कौन है?

मणिपुर और मिजोरम राज्य के दक्षिण पूर्वी हिस्से में रहने वाली एक जनजाति, कुकी है। कई पहाड़ी जनजातियों में एक कुकी भी है, जो भारत, म्यांमार और बांग्लादेश में पाए जाते हैं। कुकी के बारे में ऐसा बताया जाता है कि ये उत्तर पूर्व भारत के करीब सभी राज्यों में मौजूद हैं, अगर अरुणाचल प्रदेश को छोड़ दिया जाए तो...। नागा और कुकी की जनसंख्या मणिपुर की कुल आबादी का 35.40 फीसदी है, लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि राज्य की 90 फीसदी भूमि पर कुकी और नागा का कब्जा है। मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में दोनों ही समुदाय रहते हैं।

कौन ज्यादा मजबूत, कुकी या मैतेई?

यदि सियासी दृष्टिकोण से देखा जाए तो मणिपुर की सियासत में मैतेई समुदाय की मजबूत पकड़ मानी जाती है, आबादी के साथ-साथ राज्य की विधानसभा में भी इस समुदाय का अच्छा खासा दबदबा है। राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस समुदाय के लोग सियासी रूप से अधिक ताकतवर माने जाते हैं। मणिपुर में कुल 60 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से इंफाल घाटी क्षेत्र से 40 सीटें आती हैं। यहां मैतेई समुदाय के लोगों का अधिक वर्चस्व माना जाता है। यदि व्यापार और राजनीति के नजरिये से मणिपुर में मौजूद मैतेई, कुकी और नागाओं की तुलना की जाए, तो मैतेई का प्रतिनिधित्व बेहतर माना जाता है और ये अधिक शिक्षित भी होते हैं।

मैतेई बनाम कुकी विवाद की वजह

वैसे तो नागा और कुकी एक दूसरे का विरोध पारंपरिक रूप से करते आए हैं, लेकिन जब मैतेई की खिलाफत की बारी आती है तो दोनों समुदाय (कुकी और नागा) के लोग एकजुट हो जाते हैं। मैतेई की भिडंत सिर्फ कुकी से नहीं, बल्कि नागा से भी होती है। यदि पुरानी बातों को याद किया जाए तो, मैतेई राजाओं ने ही कुकी को मणिपुर की पहाड़ियों पर बसाया था। इसकी वजह ये थी कि इंफाल घाटी में मौजूद मैतेई पर आक्रमण करने वाले नागाओं बीच कुकी एक बफर के रूप में काम करे। साल 1993 की बात है, जब मणिपुर की पहाड़ियों पर नागा और कुकी के बीच भयंकर हिंसा देखने को मिली। इसमें सौ से अधिक कुकी मारे गए थे। वर्तमान में मैतेई और कुकी के बीच जो विवाद छिड़ा है, उस संघर्ष की वजह आरक्षण का मुद्दा है।

लंबे समय से ये मांग कर रहे हैं मैतेई

मैतेई समुदाय के लोग लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। चूकि पहाड़ियों में रहने वाले कुकी समुदाय के लोगों को अनुसूचित जनजातियों की लिस्ट में शामिल हैं, लेकिन मैतेई को सरकार ने उस सूची में जगह नहीं दी है। यही नजह है कि मैतेई ने अपनी इस मांग को तूल दिया। कुकी और नागा समुदाय के लोग ये आरोप लगाते रहे हैं कि अधिकांश मैतेई समुदाय को विकास का लाभ मिलता है। इस विवाद ने उस वक्त तूल पकड़ लिया, जह राज्य सरकार को मणिपुर हाईकोर्ट ने अनुसूचित जनजाति में मैतेई समुदाय को शामिल करने के लिए केंद्र को एक प्रस्ताव भेजने को कहा था। ये जगजाहिर है कि कुकी और नागा इसके खिलाफ हैं कि मैतेई को एसटी का दर्जा मिले। उनका ऐसा मानना है कि यदि एसटी का दर्जा मैतेई को मिल जाता है तो वो जरूरत से ज्यादा नौकरियां हासिल करने में कामयाब हो जाएंगे और उनका हक मारा जाएगा।

विवाद की एक और बड़ी वजह है कानून

मणिपुर का वो कानून जिसके तहत ये नियम है कि जो मैतेई के लोग घाटी में बसे हैं, वो पहाड़ी इलाकों में ना तो रह सकते हैं और ना ही जमीन खरीद सकते हैं। यदि कुकी और नागा की बात की जाए तो पहाड़ियों में रहने वाले इस समुदाय के लोग घाटी में जमीन भी खरीद सकते हैं और बस भी सकते हैं। ऐसे में मैतेई समुदाय के लोग इस बात से आपत्ति जताते रहे हैं।

जातीय हिंसा के बाद अब कैसे हैं हालात?

मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण विस्थापित हुए लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। मणिपुर की उस दर्दनाक घटना से हर कोई वाकिफ है, जिसे पिछले साल जुलाई माह में अंजाम दिया गया था। महिलाओं के कपड़े उतारकर परेड कराने, उनकी अस्मत लूटने और इंसानियत का गला घोटने की उस वारदात को याद करके किसी की भी रूह कांप उठेगी। इसी बीच दिनों लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मणिपुर के मुद्दे को जोर शोर से उठाया। उन्होंने जिरिबाम और चुराचांदपुर जिले में राहत शिविरों का दौरा किया और वहां रह रहे लोगों से बातचीत की।
मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण विस्थापित हुए लोग इन राहत शिविरों में रह रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ यहां पहुंचे गांधी ने राहत शिविरों में रह रहे लोगों से बात की और उनकी समस्याएं सुनीं। राज्य में पिछले साल मई में मैतेई और कुकी समुदायों के लोगों के बीच जातीय हिंसा शुरू हुई थी। इसमें 200 से अधिक लोगों की मौत हुई है।

सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ा था हस्तक्षेप

4 मई, 2023 की बात है, जब मणिपुर की दो मह‍िलाओं के कपड़े उतारे गए, नग्‍न किया गया, नग्नावस्था में घुमाया गया, पीटा गया, एक के साथ गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया गया। इंसानियत की हत्या करने वाले दरिंदों के खिलाफ कार्रवाई करने, उन्हें पकड़ने और इन महिलाओं को इंसाफ दिलाने के बजाय उस वक्त ये घटना छिपा ली गई थी। करीब ढाई महीने बाद जब ये वीडियो वायरल हुआ, तब दुनिया इस घिनौनी करतूत से रूबरू हुई और ये बात जगजाहिर हुई कि मणिपुर में इंसानियत मर चुकी है। खुद सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और अदालत ने ये चेतावनी दी कि 'कुछ करिए, वरना हम करेंगे।'

मणिपुर में कैसे भड़की थी हिंसा?

अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग मणिपुर में लंबे समय से मैतेई समुदाय द्वारा उठाई जा रही थी, जिसके बाद 14 अप्रैल, 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य की एन बीरेन सिंह सरकार से इस पर कार्रवाई करने को कहा। इसी के बाद तीन मई, 2023 को मैतेई की आरक्षण वाली मांग और अदालत के आदेश के खिलाफ विरोध मार्च बुलाया गया था। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ न‍िकाला, जिसके बाद जगह-जगह हिंसा भड़क गई।

डबल इंजन की सरकार का क्या मतलब?

हिंसा के अगले दिन ही महिलाओं की अस्मत के साथ खिलवाड़ किया गया। डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी नहीं, हिंसा पर काबू नहीं किया जा सका। विपक्ष ने मुद्दे को तूल दिया, तब जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 79वें द‍िन यानी 20 जुलाई को अपनी चुप्पी तोड़ी और राज्य सरकार ने कार्रवाई तेज की। हालांकि अब भी आए दिन गोलीबारी और हिंसा की घटनाएं सामने आती रहती है। सवाल यही है कि आखिर मणिपुर हिंसा पर पूर्णविराम कब लगेगा और बेघर हुए लोगों को उनका हक कब मिलेगा, सारे फसाद का समाधान कब होगा?
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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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