'वन नेशन, वन इलेक्शन' के हक में इंडिया इंक, एक साथ चुनाव होने पर Rs 12,000 करोड़ की हो सकती है बचत
One Nation One Election : पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी 'वन नेशन वन इलेक्शन' के सुझाव पर विचार कर रही है। कमेटी राजनीतिक दलों के साथ बैठक कर इस पर उनके सुझाव ले चुकी है। सहमति होने पर इसे 2029 से लागू किया जा सकता है।
वन नेशन वन इलेक्शन पर इंडिया इंक ने दिए हैं अपने सुझाव।
One Nation One Election : 'वन नेशन वन इलेक्शन' के विचार के समर्थन में इंडिया इंक भी आई है। इंडिया इंक का कहना है कि देश में सभी चुनाव यदि एक साथ होते हैं तो इससे कारोबारी सुगमता बढ़ेगी और इससे सरकार को 12,000 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। भारतीय उद्योग संघ (CII) और FICCI ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का सुझाव दिया है। इन दोनों उद्योग संघों का दावा है कि ये चुनाव एक साथ होने से देश के विकास की गति अवरुद्ध नहीं होगी और इससे अतिरिक्त राशि खर्च करने से बचा जा सकेगा।
राजनीतिक दलों का सुझाव ले चुका है पैनल
दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी 'वन नेशन वन इलेक्शन' के सुझाव पर विचार कर रही है। कमेटी राजनीतिक दलों के साथ बैठक कर इस पर उनके सुझाव ले चुकी है। विधि आयोग के इस प्रस्ताव पर सभी दल अगर सहमत हुए तो इसे 2029 से लागू किया जा सकता है। इसे अमली जामा पहनाने के लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे। हालांकि, कई विरोधी दल इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं। 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर उनकी अपनी आशंकाएं एवं चिंताएं हैं।
सभी चुनाव एक साथ कराने पर उद्योग संघों का प्रस्ताव
CII और FICCI दोनों उद्योग संघ पूर्व राष्ट्रपति की अगुवाई वाली कमेटी से मिले और हर पांच साल पर चुनाव के लिए उसके सामने अपना अलग-अलग प्रस्ताव दिया। अपने प्रस्ताव में फिक्की ने कहा कि प्रत्येक पांच साल पर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के लिए एक चुनाव होना चाहिए। उसके इस प्रस्ताव का समर्थन सीआईआई ने भी किया। रिपोर्ट के मुताबिक CII ने एक वैकल्पिक प्रस्ताव के रूप में हर ढाई साल पर चुनाव कराने का सुझाव दिया।
Ficci
कारोबारी सुगमता में बाधा हैं बार-बार चुनाव
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले सप्ताह हुई बैठक के एक सप्ताह बाद कमेटी को लिखे अपने अपने पत्र में FICCI के महासचिव शैलेष पाठक ने कहा, 'अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग समय पर होने वाले चुनावों से हमारी कारोबारी सुगमता में बाधा खड़ी हो रही है। इन चुनावों के लिए कई तरह की आचार संहित लागू होती हैं। इसकी वजह से सरकारें नीतिगत फैसले नहीं कर पातीं और इसका नुकसान कारोबार एवं उद्योग जगत को उठाना पड़ता है। यही नहीं सरकारें जो जरूरी सुधार करने के लिए कदम उठाना चाहती हैं, उसमें भी ये अलग-अलग स्तर के चुनाव व्यवधान खड़ा करते हैं।'
'बहुमत के साथ 5 साल के लिए चुनी जाए एक सरकार'
FICCI का सुझाव है कि एक बहुमत के साथ एक सरकार को पांच साल के लिए चुना जाना चाहिए। और अगर यह सरकार अपना बहुमत खो देती है तो सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए इसे 10 दिन का समय मिलना चाहिए। अपने सुझाव में उद्योग संघ ने कहा कि यदि कोई भी राजनीतिक दल अपना बहुमत साबित न कर पाए तो बचे हुए समय के लिए एक मध्यावधि चुनाव कराया जाना चाहिए।
India Inc
नीति आयोग की एक रिपोर्ट का हवाला दिया
अपने इस सुझाव के समर्थन में उद्योग संघ ने नीति आयोग की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया। रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में आचार संहिता लागू होने की वजह से विकास की गतिविधियां करीब सात महीने तक ठप रहीं। उद्योग समूह का तर्क है कि चुनावों की संख्या कम करने से देश को 7,500 करोड़ रुपए से लेकर 12,000 करोड़ रुपए तक की बचत हो सकती है। FICCI का सुझाव है कि वोटरों को अपने नजदीकी मतदान केंद्र पर वोट डालने की अनुमति मिलनी चाहिए। यही नहीं समय के बचाने के लिए चुनाव में 'इंडिया स्टैक' जैसी स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल होना चाहिए।
'बुनियादी संरचनाओं पर बुरा असर डालती है आचार संहिता'
कोविंद पैनल के साथ अपनी बैठक में सीआईआई ने 2012 और 2018 में एक साथ चुनाव कराने के लिए अपने सुझावों का भी जिक्र किया। सीआईआई ने कहा कि बुनियादी संरचनाओं के प्रारंभिक चरण में आचार संहिता इन पर बुरा प्रभाव डालती है। केंद्र एवं राज्य के कर्मचारी करीब दो महीने तक चुनावी कामकाज में व्यस्त रहते हैं इससे विकास एवं सरकारी कामकाज में रुकावटें आती हैं। सीआईआई की दलील है कि प्रत्येक चुनाव में एक दिन की उत्पादकता पर असर पड़ता है। मजदूर भी मतदान करने के लिए एक दिन की छुट्टी पर चले जाते हैं इससे आर्थिक उप्तादन पर असर पड़ता है। उनका मतदान केंद्र भी कई बार उनके कार्यस्थल से काफी दूर होता है।
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