चुनाव जीतने के बाद हर बार की तरह पड़ोसी देश नहीं, रूस गए PM मोदी, क्या हो सकती है रणनीति?
PM Modi Russia Visit: अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश लगातार रूस को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। नाटो की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर वाशिंगटन में इसके सदस्य देशों की अहम बैठक हो रही है। इस बैठक में रूस के खिलाफ रणनीति बनाई जाएगी। मास्को में पीएम मोदी की मौजूदगी से दुनिया भर में संदेश जाएगा कि भारत अपने दोस्त रूस के साथ खड़ा है।
रूस के दो दिन के दौरे पर पीएम मोदी।
मुख्य बातें
- दो दिन के आधिकारिक दौरे पर रूस गए हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
- सोमवार शाम मास्को पहुंचने उनका वहां भव्य स्वागत हुआ
- दोनों देशों के बीच कई रणनीतिक समझौते और करार हो सकते हैं
PM Modi Russia Visit : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के रूस दौरे पर हैं। सोमवार शाम वह मास्को पहुंचे जहां उनका भव्य स्वागत किया गया। पीएम मोदी के इस रूस दौरे पर दुनिया भर की नजर है। इस दौरे लेकर कई तरह की बातें और अटकलें लगाई जा रही हैं। मोदी लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने हैं। पीएम बनने के बाद वह पड़ोसी देशों की यात्रा करते आए हैं। 2014 में जब वह प्रधानमंत्री बनें तो उन्होंने अपने पहले दौरे के लिए भूटान को चुना। 2019 में जब वह दोबारा जीतकर आए तो अपने पहले द्विपक्षीय दौरे के लिए मालदीव को चुना। 2024 में वह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने और इस बार वह किसी पड़ोसी देश के दौरे पर जाने के बजाय रूस गए। हालांकि, चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री जी-7 की बैठक में हिस्सा लेने के लिए इटली गए थे लेकिन यह द्विपक्षीय दौरा नहीं था। द्विपक्षीय दौरे पर वह रूस में हैं।
रूस के साथ चीन की करीबी बढ़ी
पीएम मोदी के इस दौरे की बहुत ही कूटनीतिक अहमियत बताई जा रहा है। पीएम का यह रूस दौरा ऐसे समय हुआ जब यूक्रेन युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मास्को अलग-थलग पड़ गया है। वह पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। खुद पुतिन के खिलाफ वारंट जारी है। चीन को छोड़कर बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष रूस की यात्रा करने से परहेज कर रहे हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कुछ समय पहले रूस की यात्रा पर गए थे। यह बात जाहिर है कि यूक्रेन युद्ध के बाद रूस और चीन में करीबी बढ़ी है। इसकी वजह रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हैं, इन प्रतिबंधों की वजह से अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस, चीन के ज्यादा करीब आया है। वैसे-वैसे दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। अमेरिका के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों के लिए यह बात लागू होती है।
मोदी की बात सुन सकते हैं पुतिन
जानकारों की मानें तो पीएम मोदी, पुतिन के लिए दुनिया का संदेश लेकर गए होंगे। जी-7 समिट से इतर उनकी मुलाकात यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से हुई थी। जाहिर है इस मुलाकात के दौरान दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच वार्ता रूस-यूकेन युद्ध पर हुई होगी। जेलेंस्की ने पीएम को यूक्रेन आने का न्योता भी दिया। इस समिट के अन्य नेताओं के साथ भी पीएम मोदी की बैठकें हुईं। इन बैठकों में भी रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने के बारे में चर्चा हुई होगी। दुनिया जानती है कि आज के समय में पीएम मोदी ही ऐसे व्यक्ति हैं जो पुतिन से किसी भी मुद्दे पर बेझिझक होकर बात कर सकते हैं और उनसे अपनी बात मनवाने का सामर्थ्य रखते हैं। मोदी जब बोलेंगे तो पुतिन जरूर सुनेंगे।
भारत ने रूस का साथ नहीं छोड़ा
हाल के वर्षों में भारत की करीबी पश्चिमी देशों के साथ बढ़ी है लेकिन उसने रूस के साथ अपने पुराने संबंधों को कमतर होने नहीं दिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र में जब-जब रूस की निंदा करने का प्रस्ताव आया, भारत उससे अलग रहा। प्रस्तावों पर वोटिंस से अनुपस्थित होकर भारत ने एक तरीके से रूस की मदद की। इसके अलावा उसने पश्चिमी आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए रूस से तेल खरीद की अपनी मात्रा काफी बढ़ा दी। इसके जरिए पैसों की किल्लत से निकलने में उसने रूस की मदद की। अमेरिका दबाव को नजरंदाज करते हुए भारत रूस से मिसाइल वायु रक्षा प्रणाली एस-400 खरीदा। इस बीच, रूस और भारत के बीच कारोबार में कोई कमी नहीं आई बल्कि यह बढ़ा ही।
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चीन नहीं चाहेगा कि रूस की उस पर निर्भरता कम हो
अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश लगातार रूस को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। नाटो की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर वाशिंगटन में इसके सदस्य देशों की अहम बैठक हो रही है। इस बैठक में रूस के खिलाफ रणनीति बनाई जाएगी। ऐसे मौके पर जब दुनिया के ताकतवर देश रूस के खिलाफ जुटे हैं, तो पीएम मोदी की मास्को में मौजूदगी पुतिन को बहुत राहत देगी। मास्को में पीएम की मौजूदगी से यह संदेश जाएगा कि मुश्किल घड़ी में भारत अपने दोस्त देश के साथ मजबूती के साथ खड़ा है। यहां इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि भले ही रूस, चीन के करीब आया है, लेकिन चीन यह कभी नहीं चाहेगा कि रूस की उस पर से निर्भरता कम हो, वह चाहेगा कि प्रतिबंधों के जाल में रूस फंसा रहे और अमेरिका से उलझता रहे। भारत ऐसे में कोई बीच का रास्ता निकाल सकता है।
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आलोक कुमार राव author
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