तेजी से बदल रही जियोपॉलिटिक्स, कल के दुश्मन आज बन गए दोस्त, UN में अमेरिका का U-टर्न देख दुनिया हैरान

Donald Trump U-Turn on Ukraine : सामान्य तौर पर इसमें बड़ा बदलाव नहीं होता लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध पर डोनाल्ड ट्रंप के यू-टर्न से दुनिया सन्न और हैरान-परेशान है। लोग सोच रहे हैं कि आखिर ये चल क्या रहा है। क्योंकि ये वही अमेरिका है जो यूक्रेन पर देशों का समर्थन हासिल करने के लिए 'डर्टी गेम' खेलने से भी नहीं चूका। भारत इसका उदाहरण है।

Donald Trump

यूएन में रूस के साथ खड़ा हुआ अमेरिका।

Donald Trump U-Turn on Ukraine : दुनिया में जियोपॉलिटिक्स बहुत तेजी से बदल रही है। यह इतनी तेजी से बदली है कि कल तक जो दुश्मन थे, वे आज दोस्त बन गए हैं। जानी दुश्मन देश एक साथ आ गए और जो दोस्त थे वे खिलाफत में खड़े हो गए। यह सब कहीं और नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बड़े मंच संयुक्त राष्ट्र में हुआ है। यह सब हुआ है रूस-यूक्रेन युद्ध की तीसरी बरसी पर। इस मौके पर प्रस्तावों को लेकर अमेरिका और यूरोपीय देश आमने-सामने आ गए। दोस्ती में दरार और शत्रुता में मिठास का यह अद्धभूत और अनूठे कॉकटेल को देखकर दुनिया दंग है। देशों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर हो क्या रहा है। कल तक यानी 19 जनवरी तक यूक्रेन को पैसा, हथियार, कूटनीति यानी हर तरीके से मदद करने वाला अमेरिका अब रूस की निंदा नहीं कर रहा है। इस युद्ध के लिए वह जेलेंस्की को ही कसूरवार ठहरा रहा है। सरकारें बदलने पर विदेश नीति में उन्नीस-बीस का फर्क होता है लेकिन विदेश नीति कमोबेश पुरानी ही रहती है।

यूक्रेन पर समर्थन के लिए US ने भारत पर बनाया दबाव

सामान्य तौर पर इसमें बड़ा बदलाव नहीं होता लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध पर डोनाल्ड ट्रंप के यू-टर्न से दुनिया सन्न और हैरान-परेशान है। लोग सोच रहे हैं कि आखिर ये चल क्या रहा है। क्योंकि ये वही अमेरिका है जो यूक्रेन पर देशों का समर्थन हासिल करने के लिए 'डर्टी गेम' खेलने से भी नहीं चूका। भारत इसका उदाहरण है। एक्सपर्ट मानते हैं कि यूएन में रूस की निंदा करने के लिए अमेरिका ने तमाम प्रस्ताव पेश किए। वह चाहता था कि भारत रूस की निंदा करे लेकिन निंदा करना तो दूर भारत वोटिंग से अनुपस्थित रह कर उसके मंसूबों पर पानी फेरता रहा। यह बात बाइडेन को नागवार गुजरी। फिर उसने भारत पर दबाव बनाने के लिए कई तरह के पैंतरे आजमाए। गुरपतवंत सिंह पन्नू, अडानी मामला हो या बांग्लादेश में तख्तापलट, ये सभी भारत को परेशान और दबाव बनाने के लिए हुए लेकिन भारत, बाइडेन प्रशासन के झांसे में नहीं आया। वह अपने स्टैंड पर कायम रहा। लेकिन अब वही अमेरिका यूक्रेन का साथ छोड़ रूस के साथ खड़ा है। ट्रंप, पुतिन के समर्थन में प्रस्ताव पेश कर रहे हैं।

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यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका-यूरोप में दरार!

दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध की तीसरी बरसी पर रूस की निंदा करने के लिए यूरोपीय देशों ने सोमवार को यूक्रेन की ओर से तैयार प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में पेश किया। यह प्रस्ताव रूसी हमले की निंदा और यूक्रेन के क्षेत्रीय अखंडता के समर्थन से जुड़ा था। रूस, उत्तर कोरिया की तरह अमेरिका ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया। इसके बाद अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के समर्थन में प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में युद्ध खत्म करने की बात तो कही गई लेकिन रूस को आक्रमणकारी नहीं बताया गया। सुरक्षा परिषद से यह प्रस्ताव तो पारित हो गया लेकिन अमेरिका के दो करीबी सहयोगी ब्रिटेन और फ्रांस वोटिंग से अनुपस्थित हो गए। यह यूक्रेन के मुद्दे पर अमेरिका और यूरोप के देशों में बढ़ती दरार को दर्शाता है। ट्रंप का रुख पश्चिमी देशों को चिंतित कर रहा है। उन्हें लगता है कि अपनी पीस डील को कामयाब बनाने के लिए ट्रंप जो रास्ता चुन रहे हैं, वह यूक्रेन और यूरोपीय देशों की सुरक्षा खतरे में डाल सकती है। क्योंकि अभी तक के युद्ध में यूक्रेन के पीछे अमेरिका और नाटो पूरी ताकत से खड़े थे। उसे पैसे, हथियार, लॉजिस्टिक सपोर्ट से लेकर हर तरह की मदद कर रहे थे लेकिन अब ट्रंप ने मदद देने से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। यूरोप चाहता है कि किसी पीस डील से पहले अमेरिका यूक्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने का वादा करे। क्योंकि कोई भी पीस डील तभी टिक पाएगी जब उसके पीछे अमेरिका खड़ा हो। लेकिन यूरोप की इस पहल पर ट्रंप खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं। उन्होंने सस्पेंस बनाकर रखा है।

नाटो में शामिल है 32 देश

यूरोप को लगता है कि पुतिन अगर यूक्रेन में यदि सफल हो गए तो वे वहीं नहीं रुकेंगे। वे आगे बढ़ेंगे। चूंकि यूक्रेन की मदद करने वाले देशों को भी उन्होंने अपना दुश्मन मान लिया है तो देर-सबेर वह उन्हें भी सबक सिखाने के लिए कोई आक्रामक पहल कर सकते हैं। सबसे बड़ा खतरा यूक्रेन के पड़ोसी यूरोपीय देशों पोलैंड, स्लोवाकिया, हंगरी और रोमानिया जैसे देशों को है जो कि नाटो के सदस्य हैं। नाटो का कवच इनकी सुरक्षा करता है, कोई भी देश इनके खिलाफ युद्ध छेड़ने या हमला करने से पहले सौ बार सोचता है। नाटो में 32 देश शामिल हैं। इसका चार्टर कहता है कि नाटो के किसी एक देश पर हमला सभी देशों पर हमला माना जाएगा और सभी 32 देश मिलकर उस देश का सामना करेंगे। लेकिन 20 जनवरी को राष्ट्रपति बनने के बाद नाटो के सुरक्षा खर्च और यूरोप के रक्षा बजट पर ट्रंप ने जो बातें कहीं हैं, वह पश्चिमी देशों में घबराहट लाने के लिए काफी है। दरअसल, ट्रंप का मन और मिजाज जिस तरह से बदलता है और जिस तरह अचानक से वह फैसला करते हैं, उससे यूरोपीय देशों के मन में यह शंका उठी है कि अमेरिका राष्ट्रपति उनकी सुरक्षा पर होने वाले खर्च में कटौती कर सकते हैं। वह नाटो से अलग होने जैसे बड़ा कदम भी उठा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो यूरोप के छोटे मुल्कों के लिए बहुत बड़ा सुरक्षा संकट खड़ा हो जाएगा।

हथियार के लिए भारत है विकल्प

यूरोप में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी तीन देश ही ऐसे हैं जिनके पास पेशेवर फौज है। इसमें भी ब्रिटेन और फ्रांस परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। बाकी ज्यादातर यूरोपीय देशों के पास फौज के नाम पर महज खाना-पूर्ति है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये देश अपने रक्षा बजट पर बहुत कम पैसा खर्च करते आए हैं। इसकी वजह भी है। नाटो की सुरक्षा गांरटी मिली होने की वजह से ये देश अपने रक्षा बजट पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं करते। सुरक्षा की मद में खर्च होने वाली रकम को ये अपने शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सुविधाओं पर खर्च करते हैं। लेकिन अब इन्हें अपनी सुरक्षा का डर सता रहा है। अपनी सुरक्षा मजबूत करने के लिए इन्हें नए और आधुनिक हथियारों की जरूरत होगी। सवाल है कि अगर ये हथियार खरीदना भी चाहें तो इनके सामने विकल्प क्या है। अमेरिकी हथियार बहुत महंगे हैं। रूस से ये खरीदेंगे नहीं। अपनी राष्ट्रीय नीति में चीन को इन्होंने अपना दुश्मन देश घोषित कर रखा है। तो ले देकर भारत बचता है जिससे ये देश हथियार खरीद सकते हैं। फ्रांस पहले ही भारत के मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर पिनाका में दिलचस्पी दिखा चुका है। भारत के हथियार सस्ते, भरोसेमंद हैं और तकनीकी रूप से दक्ष भी। ऐसे में यूरोपीय देश आने वाले समय में भारत से हथियार खरीदने की पहल कर सकते हैं।

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भारत आ रहीं यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष

खास बात यह है कि जियोपॉलिटिक्स में तेजी से हो रहे इस बदलाव के बीच यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन 27-28 फरवरी को भारत की आधिकारिक यात्रा पर आ रही हैं। उनका यह दौरा भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) संबंधो के लिए काफी अहम माना जा रहा है। अपनी इस यात्रा के दौरान वह व्यापार, निवेश, तकनीक, जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा जैसे विषयों पर बातचीत करेंगी। लेयेन इस साल के अंत में होने वाले भारत-ईयू शिखर सम्मेलन की नींव रखेगी जहां दोनों पक्ष भविष्य की रणनीति पर एक नया समझौता कर सकते हैं। जाहिर है कि EU प्रेसिडेंट अपनी इस यात्रा के दौरान यूरोप की सुरक्षा के लिए भारत से कुछ खास हथियारों की डील कर सकती हैं।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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