Gita Press: 41 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें छाप चुका है गीता प्रेस, कम रोचक नहीं है इसका इतिहास

History of Gita Press: गीता प्रेस गोरखपुर को शुरुआत करने का श्रेय तीन महापुरुषों जयदयाल गोयदंका, घनश्याम दास जालान व महावीर प्रसाद पोद्दार को जाता है। सेठ गोयदंका धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वह कारोबार के सिलसिले में कोलकाता जाया करते थे।

गीता प्रेस ने सनातन धर्म को जन-जन तक पहुंचाया है।

History of Gita Press: हिंदू सनातन धर्म को जन-जन तक पहुंचाने वाले गीता प्रेस गोरखपुर को साल 2023 को गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा जाएगा। अपने स्थापना के शताब्दी वर्ष में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलना संस्था के लिए बेहद खास है। गीता प्रेस की शुरुआत गोरखपुर में वर्ष 1923 में हुई और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। गीता प्रेस हिंदू धार्मिक पुस्तकों को छापने वाला दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशक है। पुरस्कार मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे बधाई दी है। गीता प्रेस को यह पुरस्कार ‘हिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान’ के लिए दिया गया है।

बहुत रोचक है गीता प्रेस का इतिहास

गीता प्रेस का इतिहास बहुत ही रोचक है। बताया जाता है कि इसके संस्थापक सेठजी जयदयाल गोयदंका सस्ती एवं शुद्ध गीता छपवाकर लोगों के बीच वितरित कराना चाहते थे। कोलकाता में पुस्तक छपने के दौरान उन्होंने इतनी बार इसमें संशोधन कराया कि प्रेस मालिक परेशान हो गया और उनसे कहा कि इतनी शुद्ध गीता अगर छपवानी है तो वह अपना प्रेस लगवा लें। इसके बाद गोरखपुर के उर्दू बाजार में 10 रुपए मासिक किराए पर एक कमरा लिया गया। वहीं वैशाख शुक्ल त्रयोदशी के दिन 29 अप्रैल को गीता की छपाई शुरू हुई थी। जुलाई 1926 में साहबगंज के पीछे एक मकान खरीदा गया जो आज गीताप्रेस का मुख्यालय है।

रंग लाई तीन महापुरुषों-गोयदंका, जालान, पोद्दार की पहल

गीता प्रेस गोरखपुर को शुरुआत करने का श्रेय तीन महापुरुषों जयदयाल गोयदंका, घनश्याम दास जालान व महावीर प्रसाद पोद्दार को जाता है। सेठ गोयदंका धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वह कारोबार के सिलसिले में कोलकाता जाया करते थे। उन्होंने कोलकाता में सत्संग की शुरुआत की थी। बाद में घनश्याम दास जालान एवं महावीर प्रसाद पोद्दार के प्रस्ताव पर 23 अप्रैल 1923 को गोरखपुर के हिंदी बाजार में गीता प्रेस की शुरुआत हई। सेठ जी के कहने पर जालान और पोद्दार ने गीता प्रेस का कामकाज संभाला। प्रेस के लिए पहली प्रिंटिंग प्रेस 600 रुपए में खरीदी गई।
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