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नेपाल में 17 साल में 14 बार बदली सरकार, नेताओं की नाकामी से उठी राजशाही की वापसी की मांग

Nepal Hindu Rashtra Demand : राजशाही की वापसी की मांग और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के प्रति लोगों की बढ़ती लोकप्रियता ने नेपाल के कम्युनिस्ट दल, विशेष रूप से प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व वाली 'नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (संयुक्त मार्क्सवादी-लेनिनवादी)' और पूर्व माओवादी विद्रोही पुष्प कमल दहल (प्रचंड) के नेतृत्व वाली 'नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र)' काफी चिंतित हैं।

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नेपाल को हिंदू राष्ट्र फिर से बनाने की मांग तेज हो गई है।

Nepal Hindu Rashtra Demand : भारत के पड़ोसी देश नेपाल में इन दिनों हलचल काफी बढ़ी हुई है। यह हलचल 2007 में समाप्त हुए राजशाही की वापसी के लिए हो रही है। लोग फिर से राजशाही की मांग कर रहे हैं। पूरे नेपाल में रैलियां निकल रही हैं। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र का जगह-जगह स्वागत हो रहा है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्या लोकतंत्र से लोगों का मोहभंग हो गया है। आखिर वे क्यों उसी राजशाही के दौर में लौटने की मांग कर रहे हैं जिसके खिलाफ करीब 18 साल पहले इन्होंने एक तरीके से विद्रोह कर दिया था। लोकतंत्र से नाउम्मीदी की वजह भी है। बीते 17-18 सालों में नेपाल में जो कुछ हुआ है उससे लोग काफी हताश और निराश हैं। लोकतंत्र को लेकर उन्होंने जो सपने देखे थे, वे पूरे नहीं हुए। उनकी हालत राजशाही से भी बदतर हो गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह इस हिमालयी देश की राजनीतिक अस्थिरता है।

17 साल में 14 सरकारें बदलीं

नेपाल में बीते 17 साल में 14 सरकारें बदल चुकी हैं। लोकतंत्र की जीवंतता बनाए रखने के लिए राजनीतिक स्थिरता, लोकतांत्रिक संस्थाओं का कामकाज और नेताओं का नेतृत्व, लोगों की भागीदारी सब जरूरी होती है लेकिन लोकतंत्र की खूबसूरती बनाए रखने में नेपाल के सियासी दल नाकाम हुए हैं। आपसी खींचतान, एक दूसरे को पटखनी देने और सरकार में बने रहने के लिए ये सत्ता समीकरणों में उलझे रहे हैं। देश, लोगों और अर्थव्यवस्था की परवाह इन्होंने नहीं की। ये एक दूसरे को नीचे गिराने और अपनी रोटी सेकने के लिए आपस में ही उलझे रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि महंगाई, बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई। अर्थव्यवस्था की बुरी हालत है। भ्रष्टाचार चरम पर है। घपले, घोटालों की भरमार है। चाहे नेपाली कांग्रेस हो या कम्युनिस्ट पार्टियां सभी ने लोगों को निराश किया है। लोगों को इनसे अब कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। लोगों को लगने लगा है कि इन राजनीतिक दलों ने देश और उनका बेड़ा गर्क कर दिया है। इससे अच्छी तो राजशाही थी।

काठमांडू एयरपोर्ट पर पूर्व राजा का जोरदार स्वागत

अब राजशाही की वापसी के लिए नेपाल में जगह-जगह लोगों का जो भारी हुजूम उमड़ रहा है, उसे देखकर कम्युनिस्ट पार्टियों की दिलों की धड़कन बढ़ गई है, उनकी हालत खराब है। दरअसल, पिछले तीन महीनों में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र ने नेपाल के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया, जहां उन्हें भारी जनसमर्थन मिला। विशेष रूप से बीते 9 मार्च को जब वह काठमांडू लौटे, तो हजारों लोगों की भीड़ ने उनका जोरदार स्वागत किया। ऐसा अनुमान है कि त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर करीब 40,000 लोग उन्हें देखने पहुंचे। लोगों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि पूर्व राजा के निजी आवास 'निर्मल निवास' तक लोग छह किलोमीटर सड़क के किनारे खड़े रहे।

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