ज्ञानवापी मस्जिद है या मंदिर? ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखे काशी विश्वनाथ मंदिर के नक्शे से समझिए

Map of Kashi Vishwanath Mandir: मुहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1194 में आदि विश्वेश्वर मंदिर को नष्ट कर दिया था, लेकिन फिर से इसका निर्माण हुआ और 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वेश्वर मंदिर को फिर से ध्वस्त किया, उसी की नींव और सामग्री का उपयोग करके ज्ञानवापी मस्जिद बनवाया गया था।

Gyanvapi Mandir or Masjid

जेम्स प्रिंसेप के नक्शे से समझिए ज्ञानवापी का सच।

Benares Illustrated: लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी में एक नक्शा रखा है, जो काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी के सच से झूठ की परतों को हटाने का दावा करता है। इसे जेम्स प्रिंसेप के नाम ब्रिटिश मुद्राशास्त्री और पुरातत्वविद् ने बनाया था। इस नक्शे में ये दर्शाया गया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर (उस वक्त का विश्वेश्वर मंदिर) का गर्भगृह बिल्कुल बीचो बीच है। इन नक्शे में उन्होंने इस स्थान पर महादेव लिखा है और इसके चारो ओर अन्य मंदिर बने हुए हैं।

क्या है ज्ञानवापी का सच?

भारत के स्वर्णिम इतिहास पर आक्रांताओं ने कितनी बार कालिख पोता, ये किसी से छिपा नहीं है। गुजरात से लेकर अयोध्या और काशी तक मंदिरों को तुड़वाकर वहां मस्जिद का निर्माण करने के अनेकों किस्से कई किताबों में पढ़ने को मिल जाएंगे। इतिहासकारों की कलम ने कई ऐसी गाथाओं का जिक्र किया है, उन्हीं में से एक प्रचलित विवाद है- काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का। भगवान शिव की इस धरोहर की लड़ाई वर्षों पुरानी है, हालांकि अब ये भारतीय न्यायपालिका के खेमे में है। कानूनी लड़ाई में हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष दोनों के अपने-अपने दावे हैं। लेकिन सवाल यही है कि ज्ञानवापी मस्जिद है या मंदिर, जिसकी व्याख्या जेम्स प्रिंसेप ने अपनी किताब और काशी विश्वेश्वर मंदिर के नक्शे में किया है। आपको इस लेख के जरिए इसकी सच्चाई तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले आपको बताते हैं कि आखिर जेम्स प्रिंसेप कौन थे।

आखिर कौन थे जेम्स प्रिंसेप?

भारत के इतिहासलेखन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले जेम्स प्रिंसेप 28 वर्ष की आयु में भारत आए थे और ब्रिटिश एशियाटिक सोसाइटी के सबसे कम उम्र के सदस्य थे। दुनिया को सम्राट अशोक के शासनकाल के बारे में अवगत कराने में प्रिंसेप की अहम भूमिका मानी जाती है, जिन्होंने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को समझकर उन्होंने अशोक के बारे में उल्लेख किया और ये स्थापित किया कि श्रीलंका से लेकर अफ़गानिस्तान तक के कई शिलालेखों में जिस राजा देवानामप्रिय पियादसि का उल्लेख मिलता है, वो कोई और नहीं बल्कि सम्राट अशोक ही थे।
बताया जाता है कि भारत आने के बाद प्रिंसेप ने पहले कलकत्ता और उसके बाद बनारस में 10 साल तक सेवा की। वाराणसी में 1820 से 1830 तक रहते हुए जेम्स प्रिंसेप ने कई दिलचस्प खोज किए। उन्होंने उस वक्त बनारस में भूमिगत सीवेज प्रणाली का निर्माण किया, जो अब तक चालू है। इसके अलावा 1669 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने जो आलमगीर मस्जिद बनाई थी, उसका जीर्णोद्धार किया और साथ ही बनारस शहर का नक्शा बनाया। 1830 के अगले ही साल यानी वर्ष 1831 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका नाम- 'बनारस इलस्ट्रेटेड, ए सीरीज ऑफ ड्रॉइंग्स' है। इसी किताब में ज्ञानवापी परिसर और काशी विश्वेश्वर मंदिर से जुड़े अहम साक्ष्य मौजूद है।

प्रिंसेप के नक्शे में क्या है?

लिथोग्राफी का इस्तेमाल करके जेम्स प्रिंसेप ने इस पुस्तक 'बनारस इलस्ट्रेटेड' में हर दृश्य को कागज पर उकेरा। उन्होंने साक्ष्य के साथ मणिकर्णिका घाट, ब्रह्मा घाट और ताजियों के जुलूस का चित्रण किया। उन्होंने इसी पुस्तक में ये बताया है कि कैसे विश्वेश्वर मंदिर और मूल पूजा स्थल को ज्ञानवापी मस्जिद में बदल दिया गया। अपनी पुस्तक 'बनारस इलस्ट्रेटेड' में प्रिंसेप ने ये बताया है कि उन्होंने पुराने विश्वेश्वर मंदिर का नक्शा कैसे तैयार किया।
इस पुस्तक में एक अध्याय है- 'पुराने विश्वेश्वर मंदिर की योजना' इसी में प्रिंसेप ने विश्वेश्व मंदिर का नक्शा साझा किया है, उन्होंने इस नक्शे में बताया कि पुराने काशी विश्वेश्वर मंदिर (अब के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद) में आठ मंडप थे। अपने इस नक्शे में प्रिंसेप ने मध्य भाग को 'महादेव' कहकर चित्रण किया है। मंदिर की पुरानी योजना का खुलासा करते हुए प्रिंसेप ने न सिर्फ नक्शा बनाया, बल्कि अपनी पुस्तक में ये भी बताया है कि कैसे मंदिर के स्थान पर औरंगजेब ने मस्जिद खड़ी कर दी थी।

नक्शे के बारे में क्या कहा?

प्रिंसेप द्वारा इस नक्शे को ध्यान से देखा जाए तो उन्होंने कैप्शन में लिखा है, 'The doted line shows the portion of the temple occupied by the present masjid.' इसका अर्थ ये है कि 'नक्शे में बनाई गई डॉटेड लाइन मौजूदा मस्जिद के कब्जे वाले मंदिर के हिस्से को दर्शाती है। यह नक्शा सन 1832 में तैयार किया गया था।'

मस्जिद बनाई पर कर दी गलती!

'बनारस इलस्ट्रेटेड' में प्रिंसेप ने लिखा है कि "पुरातत्ववेत्ता इस बात से बहुत प्रसन्न होंगे कि मुसलमानों ने अपने धर्म की विजय के उत्साह में, मूल संरचना को एक विशाल मस्जिद में परिवर्तित करने की विधि खोज ली, वह भी इसकी आधी से अधिक दीवारों को नष्ट किए बिना; जिससे न केवल भूतल योजना, बल्कि संपूर्ण वास्तुशिल्पीय ऊंचाई का पता अभी भी लगाया जा सकता है।" आसान शब्दों में प्रिंसेप को समझा जाए तो वो कहना चाहते थे कि मुगलों ने मंदिर तोड़कर मस्जिद तो बनवा ली, लेकिन उन्होंने दीवारों पर हिंदू आकृतियों और साक्ष्यों को नष्ट नहीं किया।
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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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